बिल के प्रावधान से लेकर संसद के गतिरोध तक, यहां समझें नागरिकता बिल की हर बात

नई दिल्ली : अनुच्छेद 370 और एनआरसी के बाद मोदी सरकार ने सोमवार को संसद में एक और बिल को पास करा लिया. 2019 के भारतीय जनता पार्टी के घोषणापत्र में नागरिकता संशोधन बिल का वादा किया गया था, जो कि अब लोकसभा से पास हो गया है. लोकसभा में गृह मंत्री अमित शाह ने बिल पेश किया, जिसके बाद 7 घंटे तक सदन में बहस हुई. कांग्रेस, AIMIM समेत कई विपक्षी नेताओं के साथ अमित शाह की तीखी बहस हुई लेकिन नंबरगेम में भाजपा बाजी मार गई.

सोमवार शाम नागरिकता संशोधन बिल पर बहस शुरू हुई जो रात को 12 बजे खत्म हुई. रात 12 बजे जब मतदान हुआ, तो बिल के पक्ष में 311 वोट और विरोध में मात्र 80 वोट पड़े. कांग्रेस, टीएमसी, डीएमके समेत अन्य पार्टियों ने इस बिल का विरोध किया, जबकि एनडीए से अलग होने के बावजूद शिवसेना ने बिल के समर्थन में मतदान किया.

विपक्षी दलों ने इसे बुनियादी तौर पर असंवैधानिक बताया और भारतीय संविधान के अनुच्छेद-14 का उल्लंघन करार देते हुए विधेयक पर कड़ी आपत्ति जताई. कांग्रेस का कहना था कि अनुच्छेद 14 के तहत भारत में समानता का अधिकार है, लेकिन मोदी सरकार का ये बिल देश में धर्म के आधार पर बंटवारा करता है जो कि भारत के मूल नियमों के खिलाफ है. हालांकि, अमित शाह ने विपक्ष के इस तर्क को सिरे से नकार दिया.

विधेयक के बारे में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने विपक्षी नेताओं के आरोपों को खारिज कर दिया. उन्होंने कहा, मैं विश्वास दिलाता हूं कि विधेयक भारतीय संविधान के किसी भी अनुच्छेद का उल्लंघन नहीं करता है और किसी भी नागरिक को उनके अधिकारों से वंचित नहीं किया जाएगा. प्रत्येक नागरिक को उचित वर्गीकरण के आधार पर विधेयक में जगह दी गई है.

अमित शाह ने सदन में कहा कि विधेयक पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में उत्पीड़न के कारण भाग रहे हिंदुओं, ईसाई, सिख, पारसी, जैन और बौद्धों को भारतीय राष्ट्रीयता प्रदान करना चाहता है. पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में हिंदुओं, ईसाइयों, सिखों, पारसियों, जैनों और बौद्धों को प्रताड़ना का सामना करना पड़ा.

विपक्ष के आरोपों को दरकिनार करते हुए अमित शाह ने कहा कि विधेयक मुस्लिम समुदाय के खिलाफ नहीं है और अगर कोई भी मुस्लिम नियम के अनुसार भारत में नागरिकता चाहता है तो इसका निर्णय विधेयक के अनुच्छेद के अनुसार लिया जाएगा.

गौरतलब है कि कांग्रेस, AIMIM, टीएमसी की ओर से आरोप लगाया गया है कि ये बिल धर्म के आधार पर बंटवारे वाला है और देश में मुसलमानों के बीच भय बढ़ाने वाला है.

कांग्रेस पार्टी शुरुआत से ही इस बिल का विरोध कर रही थी और इसे संविधान विरोधी करार दे रही थी. मंगलवार को मतदान और बहस के दौरान भी कांग्रेस ने इस बिल के खिलाफ में ही रुख अपनाया. मुख्य रूप से इस बिल के विरोध में कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी, द्रविड़ मुनेत्र कड़गम, ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल-मुस्लिमीन और इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग सहित प्रमुख विपक्षी दल रहे.

AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने इस बिल का पुरजोर विरोध किया और अपने संबोधन के दौरान बिल की कॉपी को भी सदन में फाड़ दिया. हालांकि, बाद में इस संसद की कार्यवाही से निकाल दिया गया. असदुद्दीन ओवैसी इस बिल पर कुल तीन संशोधन लाए, इनमें से दो मतदान के बाद और एक ध्वनि मत से गिर गया. ओवैसी के संशोधन के पक्ष में पहले 12 और बाद में 9 ही वोट पड़े.   

नागरिकता संशोधन बिल की बड़ी बातें

अफगानिस्तान, पाकिस्तान, श्रीलंका से आने वाले हिंदू, जैन, बौद्ध, ईसाई, पारसी, सिख शरणार्थियों को भारत की नागरिकता दी जाएगी.

पहले नागरिकता पाने के लिए 11 साल का समय लगता था, लेकिन अब 6 साल रुकने के बाद ही नागरिकता मिल जाएगी.

अमित शाह के बयान के अनुसार, जिन शरणार्थियों को नागरिकता दी जाएगी उनके पास कागज हो या नहीं हो, उससे फर्क नहीं पड़ेगा.

अमित शाह के अनुसार, क्योंकि मुस्लिम पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में अल्पसंख्यक नहीं है इसलिए इस बिल में उनको शामिल नहीं किया गया है. तीनों देशों में संविधान के धर्म को इस्लाम माना गया है.

इस बिल में अभी अरुणाचल प्रदेश और मिजोरम इनर लाइन परमिट से सुरक्षित हैं, यानी वहां बिल का कोई असर नहीं होगा. इनके अलावा नगालैंड, दिमापुर का कुछ हिस्सा छोड़कर इनर लाइन परमिट से सुरक्षा प्राप्त है. केंद्र सरकार ने सोमवार को ही मणिपुर को भी इनर लाइन परमिट में लाने का ऐलान किया.

Web Title : FROM THE PROVISION OF THE BILL TO THE IMPASSE OF PARLIAMENT, UNDERSTAND HERE EVERYTHING ABOUT THE CITIZENSHIP BILL

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