इतिहास के पन्नों से निकलकर मंच पर जीवंत हुआ शहीदों का संघर्ष 'कामागाटामारू-1914'

धनबाद : इतिहास के पन्नों में गुम हुआ 100 वर्ष पहले की घटना टाउन हॉल के मंच पर जीवंत हो उठा.

इतिहासकारों ने कामागाटामारू घटना के शहीदों को नजरअंदाज ही किया गया है.

इस घटना में मरने वाले शहीदों को भी उसी तरह से सम्मान मिले, जैसे आजादी की लड़ाई में अहम भूमिका निभाने वाले अन्य शहीदों को मिली है.

नाटक का मंचन का मुख्य उद्येश्य था कामागाटामारू घटना की याद को ताजा करना.

गुरुवार को इस संघर्ष की झलक देखने को मिली. नाटक का नाम था  ‘कामागाटामारू-1914 : एक जख्मी परवाज’.

इस कार्यक्रम का आयोजन बैंक मोड़ बड़ा गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी एवं गुरु नानक कॉलेज की ओर शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में पंजाबी नाटक का मंचन हुआ.

पटियाला स्थित पंजाब विश्वविद्यालय की टीम ने अपने शानदार अभिनय से 100 साल पुरानी उस दास्तान को मंच पर उतारा. करीब 100 मिनट के इस नाटक के मंचन में 42 कलाकारों ने मंच पर और नेपथ्य में अपनी भूमिकाओं को बखूबी अंजाम दिया.

भारत सरकार के निर्देश पर तैयार किए गए इस नाटक का पूर्वी भारत में पांच जगहों पर मंचन किया जाना है.

नाटक को युनिवर्सिटी के थियेटर एंड टेलिविजन डिपार्टमेंट के रिसर्च स्कालर गुरूप्रीत सिंह राटोल ने लिखा है.

नाटक की निदेशिका डॉ.जसपाल कौर दियोल ने बताया कि धनबाद में यह 13वां नाटक था. 20 अप्रैल को दिल्ली में मंचन होगा.

इस अवसर पर एसपी राकेश बंसल, बड़ा गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के राजिंदर सिंह चहल, जीएन कॉलेज के सचिव दविंदर सिंह गिल, दिलजोन सिंह, जीएन कॉलेज के प्राचार्य पी.शेखर, सतपाल सिंह आदि मौजूद थे.

 

घर-परिवार छोड़कर जाना मजबूरी

एसपी राकेश बंसल भी अपने परिवार के साथ उपस्थित हुए जिन्होने नाटक के समापन पर सभी को सम्बोधित करते नाटक की सहराना की साथ ही कहा कि एक व्यक्ति चाहे जिस भी मुल्क का हो हर किसी को मदद के लिए आगे आना चाहिए देश की आजादी के लिए जिन्होने कुर्बानी दी वह कुर्बानी तभी सार्थक होगी जब हम निःस्वार्थ बनकर देश के लिए काम करेंगे.

घर-परिवार छोड़कर कोई भी जाना नहीं चाहता. परदेस जाने की हमेशा कोई-न-कोई मजबूरी होती है.

 

क्या है कहानी

साल1914. देश के पंजाब प्रांत से 376 लोग कनाडा जाने के लिए समुद्री मार्ग से प्रस्थान करते हैं. वे कामागाता मारू जहाज पर सवार होते हैं.

लम्बे सफर के बाद जब वह कनाडा पहुंचतें है तो उनको बर्तानवी सरकार वहां उतरने नहीं देती. इसके साथ ही शुरू हो जाता है उनका संघर्ष.

दो महीने तक उनको कामागाटामारू जहाज पर ही समंदर के भीतर बिताना पड़ता है, भूखे-प्यासे, रोते-बिलखते.

कनाडा जाने और वहां उनके साथ किए गए बर्ताव की गाथा. वहां रह रहे पंजाबियों के सहयोग से वे किसी तरह वे लोग कनाडा से निकलकर अपने वतन पहुंचते हैं.

उनकी लड़ाई लड़ने से लेकर वापसी यहां कोलकाता बंदरगाह पहुंचने पर भी उन्हें राहत नहीं मिलती. वहां उन्हें पुलिस की क्रूरता का शिकार होना पड़ा.

Web Title : HISTORICAL DRAMA KOMAGATA MARU 1914 PLAY AT NEW TOWN HALL DHANBAD