युवाओं को मिलने चाहिए ये अधिकार

10 दिसंबर के दिन को दुनिया भर में ह्यूमन राइट्स डे के रुप में मनाया जाता है. आज ही के दिन 1948 में मानव अधिकार आयोग का गठन किया गया था. यह एक ऐसी संस्था है जो विश्व में मानव हित में किए जा रहे अधिकारों की रक्षा करती है. मानव के अधिकारों की रक्षा तो मानव अधिकार आयोग कर रहा है लेकिन उन्हीं मानवों में एक बहुत बड़ा हिस्सा युवाओं का है. जिन्हें अब भी उनके परिवार की सोच के चलते कुछ अधिकार नहीं मिल पा रहे हैं जोकि उन्हें अच्छी जिंदगी जीने के लिए मिलने जरुरी हैं. तो आइए जानते हैं कौन-से हैं वे अधिकार…

जीवनसाथी चुनने का अधिकार

हमारे समाज और परिवार में आज भी युवाओं को अपना जीवनसाथी चुनने की आजादी नहीं है. माता-पिता जबरदस्ती अपनी पसंद को अपने बच्चों के ऊपर थोप देते हैं और इस तरह उनका भविष्य अधर में चला जाता है. यदि वो अपना जीवनसाथी अपनी मर्जी से चुन भी लेते हैं तो उसके विरोध में ऑनर किलिंग जैसे मामले हमारे सामने आ जाते हैं. शादी जैसे अटूट बंधन में ये जरुरी है कि दोनों एक-दूसरे को अच्छी तरह से जानें और समझें क्योंकि जीवन भर साथ निभाने वाला जीवनसाथी ही होता है. इसलिए युवाओं को ये अधिकार होना चाहिए कि वो अपना जीवनसाथी अपनी पसंद से चुन सकें.

करियर चुनने का अधिकार

कई बार माता-पिता का जो सपना अधूरा रह जाता है वो उस सपने को अपने बच्चों में दखने लगते हैं. उन्हें लगता है कि जो हम नहीं कर पाए वो हमारा बच्चा करेगा. लेकिन माता-पिता को ये बात समझनी चाहिए कि जिस तरह उन्हें अपना सपना पूरा न कर पाने का दुख है उसी तरह उनका बच्चों ने भी अपने कैरियर को लेकर कुछ सपने देखे होंगे. यदि वो पूरे नहीं हो सके तो फिर उनका बोझ आने वाली पीढ़ी को उठाना पड़ेगा. यदि इसी तरह चलता रहा तो ये कभी न खत्म होने वाला सिलसिला बन जाएगा. इसलिए माता-पिता को अपनी सोच बदलनी चाहिए और अपने बच्चों के सपनों को पूरा करने में पूरा सहयोग देना चाहिए.

बड़ों के बीच राय देने का अधिकार

आज भी कई परिवार ऐसे हैं जिसमें घर के बड़े लोगों की बात को ही महत्व दिया जाता है, भले ही वे गलत क्यों न हों. वहीं दूसरी घर ओर घर के युवा जो काफी पढ़े-लिखे भी हैं उनको या तो किसी विषय पर बोलने ही नहीं दिया जाता या फिर ये बोलकर चुप करा दिया जाता है कि वो अभी छोटे हैं. उन्हें इस बात को समझना चाहिए कि हर बात को हम अनुभव के पैमाने पर नहीं तौल सकते. कुछ बातें ऐसी भी होती हैं जिनमें अनुभव से ज्यादा शिक्षा काम आती है. इसलिए पढ़े-लिखे युवाओं को अपने घर के बड़ों के बीच अपनी राय देने का अधिकार मिलना चाहिए.

रूढ़िवादी परंपराओं को बदलने का अधिकार

समाज के कई परिवार ऐसे हैं जो अब भी रूढ़िवादी विचारों को अनुसरण करते हैं और ऐसी ही परंपराओं को मानते हैं. इसके चलते सबसे ज्यादा नुकसान युवाओं का होता है जो आज की दुनिया से रूबरू होना चाहता है उसे जीना चाहता है. लेकिन घर की परंपराएं उसे इस बात की इजाजत नहीं देती. माता-पिता को चाहिए कि वे भी बदलते जमाने के साथ अपनी सोच के बदलें और अपने बच्चों से उनकी आजादी न छीनें.

हुनर को निखारने का अधिकार

ये जरुरी नहीं होता कि हर बच्चा पढ़ाई में ही आगे रहे. किसी के पास पढ़ाई का हुनर होता है तो किसी के पास कढ़ाई का. किसी के पास डांसिंग का तो किसी के पास सिंगिंग का. लेकिन माता-पिता अपने स्टेटस को देखते हुए चाहते हैं कि उनके बच्चे भी भेड़ चाल ही चलें और पढ़-लिख कर अच्छी नौकरी करें. उनकी क्षमता को पहचाने बिना ही बार-बार उनकी पढ़ाई पर जोर देने के लिए दुनिया भर के कोचिंग इंस्टीट्यूट्स का सहारा लिया जाता है. इतना सब होने बाद भी अच्छे परिणाम नहीं मिलते. माता-पिता को चाहिए कि वे अपने बच्चों के हुनर को पहचानें, उसकी कद्र करें और उसमें ही उन्हें अपना करियर बनाने दें.

खुली हवा में सांस लेने का अधिकार

समाज में आज भी बहू और बेटी को समान अधिकार नहीं दिए जाते हैं. जहां बेटी को अपनी मर्जी से घूमने-फिरने की आजादी होती है वहीं बहू को बंद दरवाजे के अंदर भी घूंघट में रहना पड़ता है. केवल कहने का बहुएं अपने सास-ससुर की बेटी होती हैं लेकिन उन्हें ये अधिकार अब तक नहीं मिला है कि वो अपनी जिंदगी सुसराल में भी बहू की तरह न जीकर बेटी की तरह जी सके. यहां माता-पिता को अपनी सोच में बदलाव लाने की जरुरत है. बेटियों की तरह बहुओं को भी खुली हवा में सांस लेने का अधिकार मिलना चाहिए.

बेटा-बेटी की समानता का अधिकार

आज भी भारत के कई गांव ऐसे हैं जहां बेटियों को पैदा होते ही मार दिया जाता है और बेटे के पैदा होने पर जश्न मनाया जाता है. इसके अलाव कई गांव और शहर ऐसे भी हैं जहां बेटे को पढ़ा-लिखा कर अफसर बनाने का सपना देखा जाता है और बेटी के नसीब में बचपन से ही चूल्हा-चौका लिख दिया जाता है. ये रूढ़िवादी सोच का ही नतीजा है. माता-पिता को चाहिए कि वे बेटा-बेटी को समान अधिकार दें. दोनों को ही अपनी जिंदगी अपनी तरह से जीने का अधिकार दें. बेटी न केवल बड़ी होकर माता-पिता का सहारा बन सकती है बल्कि भाई की जिम्मेदारियों को भी बांट सकती है.

Web Title : YOUTH MUST GET THESE RIGHTS