सभी व्रत में सबसे ज्यादा महत्व एकादशी व्रत का होता है. एकादशी व्रत रेगुलर और नियम से करने से धन, आरोग्य और संतान की प्राप्ति होती है. जी हां यह व्रत आपकी लगभग हर मनोकामना को पूरा और मन की चंचलता दूर करता है. पंचाग के अनुसार, 22 नवम्बर को यानि आज उत्पन्ना एकादशी मनाई जा रही है. इस एकादशी से साल भर की एकादशी व्रत की शुरुआत हो जाती है. यह एकादशी इस बार शुक्रवार के दिन है. शुक्रवार के दिन पड़ने से उत्पन्ना एकादशी का महत्व और बढ़ जाता है क्योंकि उत्पन्ना एकादशी में भगवान विष्णु के लिए व्रत रखा और उनकी पूजा की जाती है और शुक्रवार के दिन मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है. आज के दिन विष्णुजी के साथ ही देवी लक्ष्मी की पूजा करने से धन संबंधी परेशानियां भी दूर हो जाती है.
उत्पन्ना एकादशी
आज के दिन ही एकादशी माता का जन्म हुआ था इसलिजए इसे एकादशी का नाम उत्पन्ना एकादशी रखा गया. जैसे की हम आपको बता चुके हैं कि इस दिन भगवान विष्णु की पूजा, अराधना और व्रत से विशेष कृपा मिलती है और साथ ही मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं. देवी एकादशी को सृष्टि के पालनहार श्री हरी विष्णु की ही एक शक्ति माना जाता है. कहते हैं इस दिन मां एकादशी ने उत्पन्न होकर अति-बलशाली और अत्याचारी राक्षस मुर का वध किया था. कहा जाता है कि इस दिन स्वयं भगवान विष्णु ने माता एकादशी को आशीर्वाद देते हुए इस व्रत को पूज्यनीय बताया था.
उत्पन्ना एकादशी का महत्व
हिन्दू धर्म मानने वालों में उत्पन्ना एकादशी का खास महत्व होता है. श्री विष्णु की जीत की खुशी में भी इस एकादशी को मनाया जाता है. इस एकादशी में भगवान विष्णु और माता एकादशी की सही विधि से पूजा की जाती है. मान्यता है कि इस व्रत को करने से मनुष्य के सभी पाप नष्ट नष्ट हो जाते हैं. जो लोग एकादशी का व्रत करना चाहते हैं उन्हें उत्पन्ना एकादशी के व्रत से ही शुरुआत करनी चाहिए. आपकी जानकारी के लिए हम आपको बता दें कि साल में 24 एकादशी पड़ती हैं और हर महीने दो एकादशी आती हैं.
एकादशी पूजा विधि
इस दिन भगवान भगवान विष्णु की पूजा की जाती है. व्रत रखने वालों को सबसे पहले सुबह उठकर स्नान करने के बाद भगवान विष्णु की धूप, दीप, पुष्प, चंदन, फूल, तुलसी से पूजा करनी चाहिए. भगवान विष्णु की कथा पढ़े या अगर कोई अन्य पढ़ रहा है तो ध्यान से सुनें. अगर आप व्रत कर रहे हैं तो आपको भगवान विष्णु को ध्यान करने उनसे संबंधित धार्मिक पुस्तकों को पढ़ना चाहिए. पूजा में तुलसी के पत्ते जरूर अर्पित करें क्योंकि भगवान विष्णु को तुलसी अति प्रिय है.
व्रत को रखने के नियम?
यह व्रत दो प्रकार से यानि निर्जल और फलाहारी व्रत के रूप में रखा जाता है. सामान्यतः निर्जल व्रत पूर्ण रूप से हेल्दी व्यक्ति को ही रखना चाहिए और अन्य या सामान्य लोगों को फलाहारी व्रत ही रखना चाहिए. इस व्रत में केवल फलों का ही भोग लगाया जाता है, इसलिए इस व्रत में सिर्फ पानी और फलों का सेवन ही करना चाहिए.