बालाघाट द नेचर एंड द बिल्ट हेरिटेज: किताब में होगा शताब्दियों से वर्तमान तक बालाघाट का दर्शन, विद्यार्थियों और शोधार्थियों के महत्वपूर्ण होगी किताब

बालाघाट. पिछली शताब्दियों में बालाघाट जिला अनेक परिवर्तन के दौर से गुजरा हैं. मप्र के गठन से पूर्व यह जिला, मध्य प्रांत एवं बरार का हिस्सा रहा. नए मप्र सहित महाराष्ट्र एवं निकटवर्ती राज्यों के पुनर्गठन के परिणामस्वरूप बालाघाट अपनी नई सीमाओं के साथ अस्तित्‍व में आया. अब बालाघाट मप्र का सबसे दक्षिण-पूर्वी जिला है, जिसकी सीमा पूर्व में छत्तीसगढ़ और दक्षिण में महाराष्ट्र से लगती है. यह जिला घने सागौन, साल और बांस के घने जंगल के साथ खनिजों की समृद्ध प्राकृतिक संसाधनों से परिपूर्ण है. जो देश के सबसे बड़े टाइगर रिजर्व-कान्हा राष्ट्रीय उद्यान का घर है. यह निकटवर्ती मंडला जिले तक फैला है और इसका अपना अनूठा पारिस्थितिकी तंत्र है.  

बालाघाट को मैंगनीज और तांबे के भंडार ने इसे देश के खनिज मानचित्र में एक अद्वितीय स्थान दिया है. सुंदर नदियों, वनस्पतियों, जीवों और घने जंगलों से घिरे समृद्ध ऐतिहासिक परिदृश्य में कई राजवंशों द्वारा शासित क्षेत्रों को बालाघाट ने देखा है. तिरोड़ी का ताम्रपत्र, महाराजा प्रवरसेन के राजवंश के शासन के बारे में बताता है कि यह मध्य भारत के विशाल क्षेत्र तक फैला था. मध्ययुगीन काल में ऐतिहासिक घटनाओं का अपना हिस्सा था. जिसे जिले के मंदिरों, किलों, जल निकायों और अन्य विरासत संरचनाओं में देखा जा सकता है.

अनोखी और अनुपम विशेषताओं वाली भूमि के इस टुकड़े में कई विशेषताएं मौजूद है. जो अब तक नवीन विद्यार्थियों एवं शोधार्थियों के लिये लुप्त रही. इसकी समृद्धि को नागरिकों के सामने लाने का प्रयास कलेक्टर ड़ॉ. गिरीश कुमार मिश्रा ने करीब 6 माह पूर्व प्रारंभ किया था, जो आज एक महत्वपूर्ण दस्तावेज किताब के रूप में सामने आया है. अब यह किताब जिले की हर लायब्रेरी में रखी जायेगी. इस किताब की रचनाशीलता इसका कवर फोटो है, जो लांजी किले के मंदिर का स्‍वर्णिम दौर बताता है. साथ ही बेक कवर हट्टा की बावड़ी का है. यह जल संरक्षण की विरासत का अनुपम उदाहरण प्रस्‍तुत करता है. 350 पन्नों में शताब्दियों से अब तक के शब्‍द और फोटो बालाघाट का परिचय करायेंगे. इसमें 4 महत्वपूर्ण किलो के अलावा 49 धार्मिक संरचनाएं, 5 मेमोरियल स्थल, 17 हवेलियों एवं रेसिडेंशियल भवन, बालाघाट के विशेष हाट बाजार, 12 विश्राम गृह, 8 बांध, 5 बावड़ियों, 12 झरनों के अलावा बहुत कुछ ऐसी विषयवस्तु है. जिससे जिले की समृद्धता को समझा जा सकता है. भवनों के निर्माण समय से लेकर, डिजाइन की विशेषताओं, निर्माण में उपयोग की गई सामग्री सहित अन्य बिंदु किताब को रोचक बनाते है. किताब में लिए गए फोटो हमको गौरवान्वित करते है. इस दस्तावेज को बालाघाट प्रकृति और विरासत की तस्वीर नाम दिया गया है.

इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज भोपाल चैप्टर ने बालाघाट जिले की प्राकृतिक विरासत को एक दस्‍तावेज या किताब में संकलित करने का कार्य किया. इस दस्तावेजीकरण ने हमारे सभी संसाधनों और सूचनाओं को एक ही स्थान पर समेकित किया है. पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य और विरासत के संरक्षण की दिशा में जिला पुरातत्‍व, पर्यटन एवं संस्‍कृति परिषद और प्रशासन के द्वारा यह दस्‍तावेज तैयार कराया गया.

इस दस्तावेजीकरण कार्य ने कुछ प्राथमिकता वाले क्षेत्रों की पहचान की है. जिन पर आने वाले वर्षों में न केवल हमारी प्राकृतिक और निर्मित विरासत को संरक्षित करने के लिए बल्कि इन संसाधनों के हितधारकों को उनके बारे में और अधिक जागरूक बनाने के लिए भी काम करने की आवश्यकता है. लेखन कार्य, सेवानिवृत आईएएस मदन मोहन उपाध्याय द्वारा किया गया है. पुरातत्‍व एवं पर्यटन परिसर के सदस्‍य एवं एडीएम  ओपी सनोडिया ने बुधवार को कलेक्‍टर डॉ. मिश्रा को किताब की एक प्रति भेंट की.


Web Title : BALAGHAT THE NATURE AND THE BUILT HERITAGE: THE BOOK WILL HAVE A PHILOSOPHY OF BALAGHAT FROM CENTURIES TO THE PRESENT, WILL BE IMPORTANT FOR STUDENTS AND RESEARCHERS