जिले में धूमधाम से मनाया गया लोहड़ी का त्यौहार

बालाघाट. नगर सहित जिले में सिक्ख समाज में मकर संक्रांति से एक दिन पूर्व लोहड़ी का त्यौहार धूमधाम से मनाया गया. हर साल की तरह इस साल भी लोहड़ी का त्योहार 13 जनवरी को मनाया जाएगा. इस त्योहार की खासियत है कि इसमें किसी प्रकार का पूजन या कोई व्रत जैसा कोई नियम नहीं होता बल्कि लोहड़ी के दिन लोग तरह-तरह के पकवान बनाते हैं और लोक-गीत गाकर जश्न मनाते हैं.  

पौराणिक कथाओं के अनुसार, लोहड़ी के दिन आग जलाने को लेकर माना जाता है कि यह आग्नि राजा दक्ष की पुत्री सती की याद में जलाई जाती है. एक बार राजा दक्ष ने यज्ञ करवाया और इसमें अपने दामाद शिव और पुत्री सती को आमंत्रित नहीं किया. इस बात से निराश होकर सती अपने पिता के पास पहुंचकर पूछा कि उन्हें और उनके पति को इस यज्ञ में निमंत्रण क्यों नहीं दिया गया. इस बात पर अहंकारी राजा दक्ष ने सती और भगवान शिव की बहुत निंदा की. इससे सती बहुत आहत हुईं और क्रोधित होकर खूब रोईं. उनसे अपने पति का अपमान नहीं देखा गया और उन्होंने उसी यज्ञ में खुद को भस्म कर लिया. सती के मृत्यु का समाचार सुन खुद भगवान शिव ने वीरभद्र को उत्पन्न कर उसके द्वारा यज्ञ का विध्वंस करा दिया. तब से माता सती की याद लोहड़ी को आग जलाने की परंपरा है.

लोहड़ी साल का पहला त्यौहार होता है. जो मकर संक्रांति से ठीक एक दिन पहले मनाया जाता है. लोहड़ी कृषि आधारित त्यौहार है. आज के दिन नई फसल को काटा जाता है. शाम में लकड़ी और उपलों से आग जलाई जाती है, जिसमें इस कटी हुई फसल को भोग के तौर पर सबसे पहले अर्पित किया जाता है. मान्यता है कि अग्नि में नई फसल का भोग लगाकर भगवान को भोग चढ़ाया जा रहा है. इस मौके पर स्वादिष्ट पकवान बनते हैं. लोग संज संवर कर अग्नि की पूजा करते हैं और अपने दोस्तों एवं प्रियजनों को लोहड़ी की शुभकामना देते हैं.

हालांकि श्री गुरूद्वारा प्रबंधक कमेटी सेवादार हीरासिंघ भाटिया का कहना है कि यह कोई ऐतिहासिक त्यौहार नहीं है, किसी घर में शिशु का जन्म हो, या नया कोई विवाह हो तो इसकी खुशी लोहड़ी के रूप में मनाई जाती है. आग को जलाकर उसका पूजन किया जाता है और लोहड़ी की खुशी मनाई जाती है.  


Web Title : LOHRI FESTIVAL CELEBRATED WITH FANFARE IN THE DISTRICT