कुम्हारों के सामने रोजी-रोटी का संकट,साल भर की मेहनत और सीजन में नहीं कर पा रहे कारोबार

बालाघाट. मिट्टी को खोदकर अपनी कला के जरिए उसे आकार देने वाले कुम्हार भूखे मरने की कगार पर है. बालाघाट के कुम्हारी मोहल्ला और ग्राम लिंगा के मटके जो अपनी गुणवत्ता के लिए जाने जाते है. इन्हे बनाने वाले कुम्हारों के सामने भी रोजी रोटी का संकट है. साल भर मेहनत करके उन्होंने मटके और मिट्टी के बर्तन तैयार किये और जब सीजन आया तो कोरोना कर्फ्यू लग गया. बना माल घर पर तैयार है, इसे बेचकर साल भर की रोटी का जुगाड़ होता था, जबकि सामने बारिश है सीजन चला गया. अक्षय तृतीया पर भी नये कलश भरने का रिवाज है लेकिन लॉकडाउन में इस पर्व पर भी कुम्हारों को कोई रोजी नसीब होगी इसकी संभावना उन्हें नहीं है.

मिट्टी के बर्तन बनाकर अपनी आजीविका चलाने वाले कुम्हार जाति के लोगों के लिए कोरोना कर्फ्यू में दोहरी मार पड़ रही है. पहले से ही ये लोग सरकार की उदासीनता के चलते उपेक्षा के शिकार है, हालात इसलिए भी बदतर होते जा रहे हैं कि अब मिट्टी के बर्तनों के ग्राहक कम मिल रहे हैं. ऐसे में पीढ़ियों से इस कला को जीवित रखकर अपना पेट पालने वालों को मुश्किल दौर से गुजरना पड़ रहा. ऐसा ही बालाघाट और ग्राम पंचायत लिंगा और आसपास क्षेत्रों में देखने को मिल रहा है. जहां पर कुम्हार अपनी आजीविका चलाने के लिए चाक पर मिट्टी के बर्तन बनाकर इस कला को जीवित रखने का प्रयास कर रहे हैं.  

कुम्हार गणेश की मानें तो इस बार के सीजन में भी इक्का दुक्का माल बिक रहा है बाहर से हमको नगद मिट्टी बुलाना पड़ता है व्यापारी पैसे मांग रहा है. कुम्हार डेविड कुमार हमलोग का माल नही बिक रहा है. सरकार ने ठंडे पानी पीने पर रोक लगाई है पर आरोह और प्रिज का पानी तो लोग पी ही रहे हैं सरकार को हमारे बारे में सोचना चाहिये. महिला मीरा बाई ने बताया कि पिछले बार का माल भी वैसे ही पड़ा हुआ है इस बार भी माल नही बिक रहा. मिट्टी मिलने में भी दिक्कत हो रही है सरकार से कोई मदद नहीं मिल रही.  

बताया जाता है कि हर साल 6- 8 महीने पहले यह तबका मटके बनाता है. गर्मी की शुरुआत से लेकर अक्षय तृतीया तक इन्हें बेचकर साल भर की रोटी का जुगाड़ कर लेता है, आज अक्षय तृतीया है, कुम्हारों का बनाया लाखों का माल बिकने को तैयार है लेकिन कोरोना में कहीं से ना तो व्यापारी यह माल लेने आ रहे हैं और ना ही ग्राहक गरीब मजदूरों की साल भर की मेहनत जो मिट्टी को आकार देकर बिकने के लिए तैयार है, अब मिट्टी में मिलती दिख रही है.

कोरोना महामारी के चलते लोगों में दहशत है, लोग ठंडे पानी की जगह गरम पानी पी रहे हैं. यही वजह है कि मिट्टी के बर्तन नहीं बिक रहे. कुम्हार परिवारों ने महीनों पहले मटकों और सुराही का निर्माण शुरू कर दिया था, ताकि जैसे ही ग्रीष्म ऋतु की शुरुआत होगी तो इसकी बिक्री कर सकें. लेकिन इस बार के सीजन में भी कुम्हारों की उम्मीदों में मिट्टी में मिलती दिखाई दे रही है.


Web Title : POTTERS FACE LIVELIHOOD CRISIS, YEAR LONG HARD WORK AND NOT BEING ABLE TO DO BUSINESS DURING THE SEASON