सिम्फर के निदेशक डॉ. पी के सिंह का इंडियन साइंस एकाडेमी के फेलो के रूप में हुआ चयन, उपलब्धि हासिल करने वाले माइनिंग क्षेत्र के पहले शख्स

धनबाद, (प्रशांत झा): केंद्रीय खनन एवं ईंधन अनुसंधान संस्थान (सीएसआइआर-सीआइएमएफआर), धनबाद के निदेशक, डॉ. पी. के. सिंह (प्रदीप कुमार सिंह)  को पृथ्वी विज्ञान के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने एवं खनन और रणनीतिक क्षेत्रों के साथ-साथ कोयला विज्ञान के हित में वैज्ञानिक तकनीकी जानकारी का हस्तांतरण करने के लिए इंडियन साइंस एकाडेमी यानी भारतीय विज्ञान अकादमी (एफएएससी), बंगलुरू के फेलो (अध्येता) के रूप में चयनित किया गया है.  

खनन क्षेत्र के पहले शख्स, जिन्हें मिली यह उपलब्धिः

डाॅ. प्रदीप कुमार सिंह यह उपलब्धि हासिल करने वाले माइनिंग क्षेत्र के पहले शख्स हैं. सिंफर के साथ साथ-साथ खनन वैज्ञानिकों व शिक्षाविदों के लिए भी यह एक विशिष्ट उपलब्धि है क्योंकि इस क्षेत्र में डॉ. सिंह से पूर्व इस प्रतिष्ठित अकादमी की अध्येतावृत्ति किसी को भी प्राप्त नहीं हुई थी.

सच में, यह मेरे लिए गर्व का विषयः डाॅ प्रदीप कुमार सिंह

इस उपलब्धि पर सिटी लाइव से बातचीत में सिंफर के डायरेक्टर डाॅ प्रदीप कुमार सिंह ने कहा कि, ‘‘इंडियन साइंस एकाडेमी के फेलो के रूप में चयन होना, सही मायनों में मेरे लिए गर्व का विषय है. मैंने अपने सिद्धांतों के अनुरूप अपनी कर्तव्यनिष्ठता और वैज्ञानिक कार्यों के जरिए देश-सेवा के लक्ष्य को पूरा करने का प्रयास किया है, जो सतत् जारी है. इस क्रम में यह उपलब्धि मेरे लिए और मुझसे जुड़े उत्साही वैज्ञानिकों, शिक्षाविदों, सिंफर के तमाम साथियों-सहयोगियों और देशप्रेमियों के लिए प्रतिष्ठा का विषय है. इससे मुझे इस क्षेत्र में और इनोवेटिक कार्य करने की ऊर्जा मिलेगी. ’’ 

बीएचयू, जर्मनी और कनाडा से की शिक्षा ग्रहण:

डॉ. सिंह ने भारत के वाराणसी स्थित बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में अपने स्नातक से स्नातकोत्तर स्तर की शिक्षा पूरी की और क्लॉस्टल, जर्मनी के टेक्निकल यूनिवर्सिटी से डॉक्टर ऑफ इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त की. डॉ. सिंह ने लोसांडे इंस्टिट्यूट ऑफ जिओसाइंसेज, टोरंटो विश्वविद्यालय कनाडा में पोस्ट डॉक्टरेट अध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया. उन्होंने इस संस्थान में वर्ष 1990 में वैज्ञानिक के पद पर कार्यारंभ किया एवं अपने परिश्रम व समर्पण से निदेशक के रूप में सेवा दे रहे हैं.

डाॅ सिंह के अबतक 240 रिसर्च पेपर हो चुके हैं प्रकाशित:

विभिन्न प्रतिष्ठित राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय जर्नलों में डॉ. सिंह के  240 वैज्ञानिक शोध पत्र प्रकाशित हुए हैं. उन्होंने 14 पेटेंट दर्ज और 13 विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी रिपोर्ट लिखे हैं. वे 13 पुस्तकों तथा 4 पुस्तिकाओं के भी लेखक हैं.

जर्मन एकाडेमी के भी हैं फेलो:

डॉ. सिंह वर्ष 2018 से राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी, भारत, इलाहाबाद  (एफएनएएससी) के अध्येता हैं. उन्हें प्रतिष्ठित राष्ट्रीय खनिज पुरस्कार 2007, रमन अनुसंधान पुरस्कार 2005 एवं वर्ष 2017, 2018 और 2019 के लिए व्यवसाय विकास एवं प्रौद्योगिकी विपणन हेतु सीएसआइआर प्रौद्योगिकी पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है. डॉ. सिंह जर्मन अकादमी के भी अध्येता हैं.

प्रौद्योगिकी विकास, ऊर्जा, सड़क, रेल, मेट्रो, हवाई अड्डा आदि क्षेत्रों में दी है अपनी वैज्ञानिक विशेषज्ञता: 

विस्फोटन कंपनों के परिणामस्वरूप होने वाली संरचनात्मक क्षति को सहसंबद्ध करने के अलावा शैल विखंडन में विस्फोटक ऊर्जा के इष्टतम उपयोग, विस्फोटक ऊर्जा विभाजन, विस्फोट कंपन, भित्ति-नियंत्रण, विखंडन नियंत्रण, खानों तथा सुरंगों में विस्फोटन डिजाइन, प्रि-स्प्लिट विस्फोटन डिजाइन, कास्ट विस्फोटन डिजाइन के क्षेत्रों को शामिल करते हुए खनन उद्योग में व्यावहारिक समस्याओं का समाधान करने हेतु विस्फोटक विज्ञान तथा विस्फोटन प्रौद्योगिकियों में डाॅ सिंह ने उल्लेखनीय योगदान दिया है. उनके मार्गदर्शन में स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन के लिए मिथेनॉल इकोनॉमी, सर्फेस कोयला गैसीफिकेशन और हाइड्रोजन इकोनॉमी पर राष्ट्रीय मिशन परियोजना की शुरुआत की गई है. उन्होंने 1. 5 टीपीडी कोयले का गैस में रूपांतरण के लिए ऑक्सी-ब्लोन प्रेशराइज्ड फ्लुइडाइज्ड बेड गैसीफिकेशन (पीएफबीजी) पायलट संयंत्र की स्थापना की है. इसके अतिरिक्त डॉ. सिंह नवी मुंबई अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे, सीमा सड़क संगठन की सड़कों, रेल, मेट्रो और सुरंगों के रणनीतिक निर्माण हेतु अपनी वैज्ञानिक विशेषज्ञता भी प्रदान करते आ रहे हैं.

देश-विदेश की कई संस्थानों में महत्वपूर्ण पदों पर हैं डाॅ सिंह:

वर्तमान में डॉ. सिंह विद्युत उत्पादन हेतु गुणवत्ता कोयला पर अखिल भारतीय परियोजना के राष्ट्रीय समन्वयक हैं. उनके अथक प्रयासों से बिटुमिनस कोयले के रासायनिक विश्लेषण के गुणवत्ता आश्वासन और अंशांकन के लिए प्रमाणित संदर्भ सामग्री (सीआरएम) विकसित कर उद्योग और प्रयोगशालाओं में उसका वितरण संभव हुआ है.  

डॉ. सिंह ठोस खनिज ईंधन सेक्शनल समिति (पीसीडीसी-7) पर बीआईएस समिति के अध्यक्ष, एनआईआरएम के शासी निकाय, आरजीआईपीटी के शासक मंडल, संसाधनों तथा संधारणीयता पर वल्र्ड फोरम ऑफ यूनिवर्सिटी पर अंतर्राष्ट्रीय समिति, जर्मनी, विस्फोटन के माध्यम से शैल खंडन (फ्रैगब्लास्ट) की अंतर्राष्ट्रीय समिति, स्पेन  एवं अन्य कई प्रतिष्ठित संस्थाओं के सदस्य हैं. डॉ. सिंह टेक्निकल यूनिवर्सिटी, बर्गकाडेमी, फ्रेइबर्ग, जर्मनी के भू-विज्ञान, भू-अभियांत्रिकी और खनन विभाग में अतिथि प्रोफेसर के रूप में अपना योगदान दे रहे हैं.

अब तक लगभग दो दर्जन देशों में जाकर किया है वैज्ञानिक कार्य:  

डॉ सिंह वैज्ञानिक कार्यों को संपन्न करने के उद्देश्य से ऑस्ट्रेलिया, ऑस्ट्रिया, कनाडा, चिली, चीन, फ्रांस, जर्मनी, जापान, नीदरलैंड, नॉर्वे, पोलैंड, पुर्तगाल, रूस, दक्षिण अफ्रीका, स्पेन, स्वीडन, तंजानिया और संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रतिनियुक्ति पर विदेश दौरा कर चुके हैं.

जानिए  इंडियन साइंस एकाडेमी एवं इसके कार्यों को:  

विज्ञान की प्रगति एवं प्रसार करने के उद्देश्य से एशिया के पहले नोबेल पुरस्कार विजेता सर सी. वी. रमन द्वारा सन् 1934 ई. में स्थापित भारत की सर्वाधिक प्रतिष्ठित भारतीय विज्ञान अकादमी (इंडियन साइंस एकाडेमी) को 27 अप्रैल 1934 ई. को एक सोसाइटी के रूप में पंजीकृत किया गया था. अकादमी ने उस समय 65 संस्थापक अध्येताओं के साथ कार्य करना प्रारंभ किया और इसका औपचारिक उद्घाटन भारतीय विज्ञान संस्थान, बंगलुरू में हुआ था. स्थापना के बाद से, भारत के लगभग 2000 प्रमुख वैज्ञानिक (भारत से बाहर के कुछ वैज्ञानिकों सहित) भारतीय विज्ञान अकादमी के अध्येता चुने गए हैं. यह अकादमी देश में विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से विज्ञान को बढ़ावा देने तथा उसे और अधिक आगे बढ़ाने में एक प्रमुख भूमिका निभाती है. साथ ही अकादमी के अध्येता न केवल अपने विषयों पर प्रवक्ता के रूप में कार्य करते हैं, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर विज्ञान को बढ़ावा देने के लिए भी कार्य कर रहे हैं. वर्तमान में विज्ञान एसोसिएशन के साथ मिलकर अकादमी विज्ञान से संबंधित विभिन्न विषयों पर 13 पत्रिकाओं का प्रकाशन करती है और विज्ञान के हितार्थ महत्वपूर्ण विषयों पर कई बैठकें भी आयोजित करती है. अकादमी द्वारा एक व्यापक और सक्रिय विज्ञान शिक्षा कार्यक्रम का भी आयोजन किया जाता है, जिसमें अध्येता और देश के वैज्ञानिक समुदाय एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. अकादमी प्रत्येक वर्ष एसोसिएट्स के रूप में कुछ उत्कृष्ट युवा वैज्ञानिकों का भी चयन करती है. अकादमी का विज्ञान और समाज के क्षेत्र में योगदान इसकी नीतियों, मूल्यों और इसकी गतिविधियों से भी स्पष्ट परिलक्षित होता है.