ये अन्याय है! मजदूरों के काम के घंटे को 8 से 12 कर दिया गया

धनबाद: जयप्रकाश नगर स्थित राष्ट्रीय कोलियरी मजदूर संघ कार्यालय में ब्रजेंद्र प्रसाद सिंह कार्यकारी अध्यक्ष राष्ट्रीय कोलियरी मजदूर संघ सह जिला अध्यक्ष धनबाद जिला कांग्रेस कमेटी की अध्यक्षता में एक आपातकालीन बैठक हुई. बैठक में मन्नान मल्लिक पूर्व मंत्री, ओमप्रकाश लाल पूर्व मंत्री, अजब लाल शर्मा, संतोष कुमार महतो, सुरेश चंद्र झा, रामप्रीत यादव, रामचंद्र पासवान, मिथिलेश सिंह एवं संघ के महामंत्री एके झा आदि सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए उपस्थित थे.  

   सबों ने भारत सरकार द्वारा कोरोना संकट के समय में श्रमिकों की कार्य अवधि 8 घंटे से 12 घंटे बढ़ने पर मौन रहने की घटना को दुखद एवं आश्चर्यजनक बताया है.  

 एके झा ने कहा भाजपा शासित राज्यों ने कोरोना संकट का राजनीतिक लाभ लेते हुए पूंजीपतियों के हितार्थ मजदूरों के कार्य अवधि को 8 घंटे से बढ़ाकर 12 घंटे कर दिया है. इतना ही नहीं सभी श्रम  सुविधाओं के कानून को निरस्त करते हुए पूंजीपतियों के लाभ के लिए मजदूरों के मौलिक अधिकार, हड़ताल करने के अधिकार को भी पूरी तरह समाप्त कर दिया है. औद्योगिक विवाद नियम को भी निरस्त कर दिया है, अगले 4 साल तक मजदूर और मजदूर संगठन इन राज्यों में मजदूर हित में कोई आवाज नहीं उठा सकते हैं, ना कंसीलेशन कर सकते हैं, ना मजदूरों के लिए सरकार के सामने प्रतिवेदन दे सकते हैं. पूरी तरह से मजदूरों को बंधुआ मजदूर बनाकर पूंजीपतियों के हवाले करने का काम भारतीय जनता पार्टी सरकार ने किया है.

 देश के एक सौ मजदूरों ने सरकार की मजदूर विरोधी नीति का शिकार होकर अपनी बेबसी लाचारी मानवीय कष्ट को जलते हुए इस संकट काल में सरकार के गलत फैसले के कारण अपने को शहीद कर दिया है.         14 करोड़ मजदूर इस लॉक डाउन में पूरी तरह से बेरोजगार हो गए हैं. ग्रामीण अर्थव्यवस्था पूरी तरह चौपट हो गई है. वर्तमान भारत सरकार ने पिछले 52 दिन में इन गरीब मजदूरों के लिए अपनी संवेदना का एक शब्द भी देश के नाम प्रस्तुत नहीं किया है, जिससे मजदूर और किसानों का विश्वास सरकार से उठ गया है. नब्बे लाख केंद्रीय और राज्य कर्मचारियों की बहाली रोक दी गई है. पूरा देश बेरोजगारी की अग्नि में जल रहा है. यहां तक कि जो सारे सार्वजनिक प्रतिष्ठान के मजदूर इस संकट में देश के लिए काम कर रहे हैं, उनके वेतन-महंगाई भत्ते लंबे समय के लिए काट दिये गये हैं. इतना ही नहीं पेंशन पाने वाले सेवा मुक्त कामगार भी उनके परिवार के लोग भी बेबसी की जिंदगी जी रहे हैं. बंद कमरे में फफक-फफक कर रो रहे हैं. दूसरी ओर सरकार 10 लाख करोड़ रूपया बैंकों से लोन लेने वाले पूंजीपतियों पर कोई कार्रवाई नहीं कर रही है. 68 हजार करोड रूपया रिजर्व बैंक द्वारा पूंजीपतियों के मदद के लिए राइट ऑफ कर दिया है. आजादी के बाद ग्रामीण, मजदूर किसान, असंगठित मजदूर इतने संकट की जिंदगी जीने का काम नहीं किया था. सरकार के खजाने पर मजदूर और किसानों का अधिकार समाप्त कर दिया गया है. ऐसे समय में, इंटक सरकार के इस मजदूर विरोधी फैसले का घोर विरोध करती है और इसके खिलाफ सभी मजदूर आंदोलनकारियों से सभी संगठनों से अंतिम सांस तक लड़ने के लिए अपील करती है ताकि सरकार अपने गलत फैसले को वापस ले.