क्या कोल सिटी के पुन: नाथ बन पाएंगे पशुपतिनाथ ?

धनबाद (मनोज मिश्र) : आज से 17वीं लोकसभा के पांचवें चरण के चुनाव को लेकर नामांकन की प्रक्रिया शुरू हो गयी है. भाजपा के धनबाद लोकसभा प्रत्याशी निवर्तमान सांसद पशुपतिनाथ सिंह संभवतः 22 अप्रैल को नामांकन करेंगे.

वहीं, महागठबंधन की ओर से, पैराशूट उम्मीदवार कहे जानेवाले कांग्रेस के उम्मीदवार कीर्ति झा आजाद ने 20 अप्रैल को नामाकंन करने की घोषणा की है.

इधर, झरिया भाजपा विधायक संजीव सिंह के अनुज सिद्धार्थ गौतम उर्फ मनीष सिंह भी 22 अप्रैल को नामांकन करने की घोषणा कर चुके हैं. जनसंपर्क अभियान जारी है.

भाजपा कार्यकर्ता और समर्थक पशुपतिनाथ सिंह को जिताने के लिए दिन-रात एक किए हुए हैं और उत्साहित दिख रहे है. वहीं, कांग्रेस अपने अंर्तकलह से परेशान है. इन सब के बीच आइए हम आपको धनबाद लोकसभा क्षेत्र का सूरतेहाल बताते हैं.. . .

धनबाद लोकसभा सीट एक विशेष पहचान रखती है. इसलिए धनबाद लोकसभा सीट को लेकर अटकलों का बाजार चढ़ा हुआ है. धनबाद लोकसभा संसदीय क्षेत्र पर नजर दौड़ाएं तो एक निरसा विधानसभा सीट को छोड़कर बाकी पांच सिंदरी, धनबाद, झरिया, चंदनकियारी और बोकारो विधानसभा सीट पर बीजेपी का कब्जा है.

मेयर, नगर पंचायत अध्यक्ष समेत 80 प्रतिशत पंचायत व निकाय प्रतिनिधि बीजेपी कार्यकर्ता या समर्थक हैं. ऐसे में बीजेपी के लिये लोकसभा चुनाव में धनबाद सीट को जीतना सांगठनिक नजरिये से जीतना आसान है, उतना ही राजनीतिक लिहाज से जरूरी भी है.

शायद यही कारण है कि उम्मीदवारों की दावेदारी में बड़े नेताओं के नाम लगातार सामने आने के बाद भी सांसद पीएन सिंह का टिकट नहीं कटी. बीजेपी ने रिस्क नहीं उठाया और महागठबंधन को मात देने का माद्दा रखने वाले पशुपतिनाथ सिंह पर भाजपा ने फिर भरोसा जताया.

जबकि सच्चाई यह है कि अंदर ही अंदर गंभीर टिकट की दावेदारी करने वालों की संख्या कम नहीं थी. बताया जा रहा है कि आधा दर्जन ने तो तैयारी भी शुरू कर दी थी. धनबाद का सबसे रसूख घराना माने जानेवाला परिवार सिंह मेंशन ने भी दाबेदारी खुलकर मीडिया के सामने रखी, निर्रदलीय चुनाव भी लड़ेंगे, अपना मेनीफेस्टो भी जारी किया है.  


पशुपतिनाथ पर जनता का कितना भरोसा?

तीन महीना पहले धनबाद भाजपा सांसद पशुपतिनाथ सिंह ने विशेष बातचीत के दौरान सही कहा था कि पशुपतिनाथ सिंह का विकल्प खुद पशुपतिनाथ ही हैं. उन्होंने सही कहा था क्योंकि धनबाद लोकसभा क्षेत्र के मतदाता भी यही कहते हैं.

मतदाता कहते हैं कि देखा जाये तो कार्य संस्कृति, लोकप्रियता, कार्यकुशलता, राजनीतिक अनुभव, समाजिक पैठ समेत विभिन्न मुद्दों पर पशुपतिनाथ सिंह अव्वल माने जाते हैं. अन्य उम्मीदवार पशुपतिनाथ सिंह से कोसो पीछे है.

धनबाद संसदीय सीट के सभी छह विधानसभा निरसा, सिंदरी, झरिया, धनबाद, चंदनकियारी और बोकारो की जनता पशुपतिनाथ सिंह पर और पशुपतिनाथ सिंह खुद से ज्यादा जनता पर भरोसा जताते हैं.

जनता का यही सपोर्ट उन्हें जीत का सबसे प्रबल दाबेदार बनाता है. हालांकि धनबाद संसदीय सीट की जनता सांसद पशुपतिनाथ सिंह से कई मुद्दों पर बेहद नाराज हैं. लेकिन जब उनसे सांसद पीएन सिंह के विकल्प पूछा जाता है तो वे शून्य हो जाते हैं.

धनबाद की जनता एक ही बात बार-बार और लगातार कहती है पशुपतिनाथ भले ही मजबूरी हो पर धनबाद के लिए जरूरी हंै. जनाधार का मानना है कि बदलाव होनी चाहिए मगर स्थानीय भाजपा राजनेताओं में पशुपतिनाथ के मुकाबले दूसरा अभी कोई नहीं है और बाहरी के लिए जगह नहीं है.  


पशपुति बीजेपी के तेजतर्रार नेताओं में शुमार

पशपुति नाथ सिंह की गिनती बीजेपी के तेजतर्रार नेताओं में होती है. पेशे से व्यापारी पशुपति नाथ सिंह ने 2005 के विधानसभा चुनाव के दौरान बीजेपी के टिकट पर धनबाद सीट से जीत दर्ज की थी.

इसके बाद वह 2009 का लोकसभा चुनाव धनबाद लोकसभा सीट से लड़े और जीते. 2014 में उन्होंने सीट पर दोबारा जीत दर्ज की. लोकसभा चुनाव के दौरान दिए हलफनामे के मुताबिक, उनके पास 2. 42 करोड़ की संपत्ति है.

इसमें 50 लाख की चल संपत्ति है और 1. 92 करोड़ की अचल संपत्ति शामिल है. उनके ऊपर एक आपराधिक मुकदमा भी दर्ज है. जनवरी, 2019 तक  mplads. gov. in पर मौजूद आंकड़ों के अनुसार, पशुपति नाथ सिंह ने अभी तक अपने सांसद निधि से क्षेत्र के विकास के लिए 17. 79 करोड़ रुपए खर्च किए हैं.

उन्हें सांसद निधि से अभी तक 22. 78 करोड़ मिले हैं. इनमें से 5 करोड़ रुपए अभी खर्च नहीं किए गए हैं. उन्होंने 77 फीसदी अपने निधि को खर्च किया है.

वहीं महागठबंधन से कांग्रेस उम्मीदवार कीर्ति झा आजाद को धनबाद से कांग्रेस का प्रत्याशी बनाए जाने का विरोध थम नहीं रहा है. कांग्रेसियों ने बार-बार काला झंडा दिखाया है. यह विरोध प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डॉ. अजय कुमार के सामने भी हुआ है.  


कोयलांचल की मांगः इन मुद्दों पर देना होगा ध्यान

धनबाद कोयलांचल के व्यवसायी, बिल्डर्स, ब्रिक्स व्यपारी, लघू और कुटिर उद्योग व्यवसायी, मझौले इंडस्ट्रलिस्ट, युवा, आधी आबादी की मानें तो धनबाद मुख्य पांच कारणों से लगातार पिछड़ रहा है.

केन्द्र व राज्य की योजनाएं पूर्ण रूप से धरातल पर नहीं उतरती, युवाओं को रोजगार व व्यपार नहीं मिलता और आम नागरिक असुरक्षित महसूस हर पल करता है. पांच कारकों पर केन्द्र व राज्य सरकार को ध्यान दिलाने और सुधार कराने की जबावदेही सांसद और विधायक की है.

सांसद को इन पांच मुद्दो पर गहरी चिंतन और मंथन कर निराकरण कराना होगा. तभी धनबाद सबल और झारखंड प्रदेश की आर्थिक राजधानी बन पाएगी.  

बीसीसीएल की पॉलिसी के कारण धनबाद कोयलांचल पिछड़ापन का शिकार है. धनबाद जिले की आम जनता से लेकर बुद्धिजीबी व्यवसायी, इंडस्ट्रलिस्ट, बिल्डर्स आदि का मानना है कि आउटसोर्सिंग के कारण धनबाद का पैसा बाहर चला जा रहा है. जिससे यहां के स्थानीय स्पलायर, छोटे छोटे उद्योग बुरी तरह प्रभावित हैं.  

गुंडागर्दी, दूसरा पिछड़ापन का सबसे बड़ा कारक धनबाद की जनता ने माना है. व्यवसायी से लेकर ग्रामीण किसान तक का मानना है कि धनबाद संसदीय क्षेत्र में दबंगई, गुंडागर्दी के कारण हार्डकोक उद्योग से लेकर सभी छोटे-बड़े उद्योग प्रभावित है. साथ ही छोटे-बड़े ठेकेदारी, इन्फ्रास्ट्रक्चर वर्क, कुटिर उद्योग भी प्रभावित है.  

नये उद्योग धनबाद को नहीं मिलना पिछड़ापन का एक बड़ा कारक बताया है. हालांकि सिंदरी एफसीआइ कारखाना पुनरूद्धार के कार्य को सराहना की जा रही है. वहीं धनबाद जिले को कोयला आधारित पावर प्लांट की मांग भी है.

तर्क दिया जा रहा है कि धनबाद में प्रचुर कोयला, सस्ता श्रमिक, के साथ जमींन उपलब्ध है. बाबजूद कोल आधारित पावर प्लांट धनबाद को नहीं मिला और न ही अन्य नये उद्योग लगे. इस दिशा में ठोस पहल जरूरी है.  

भ्रष्टाचार, अधिकारियों के बीच तालमेल नहीं होना, विभागीय तालमेल नहीं होना धनबाद के पिछड़ने का एक प्रमुख कारक में शामिल है.

माडा, रेलवे, बीसीसीएल, निगम आदि विभागों का उदाहरण देते हुए धनबाद कोयलांचल ने कहा इन विभागों के तालमेल नहीं होने से पानी, बिजली, सड़क, नाली, सिवेज जैसी मूलभुत सुविधाओं में दिक्कतें आती है. अधिकारियों, विभागों और जनप्रतिनिधि साल दर साल तालमेल बैठाने में गुजार देते हैं और विकास कोसो पीछे छुट जाता है.  

पर्यटन, खेल, मेडिकल टुरिजम, स्वरोजगार, स्वव्यपार, के  साथ इन्फ्ररास्ट्रकचर क्षेत्र में विकास को समय की मांग बताते हुए हवाईअड्डा, भीड़ वाले इलाकों में जगह जगह फलाईओवर, और प्रदूषण मुक्त धनबाद बनाने की मांग को महत्वपूर्ण बताया.  


धनबादः सामाजिक तानाबाना

धनबाद लोकसभा सीट पर शहरी मतदाताओं का दबदबा है. इस सीट पर करीब 62 फीसदी शहरी मतदाता और 38 फीसदी ग्रामीण मतदाता है. इस सीट पर अनुसूचित जाति की तादात 16 फीसदी और अनुसूचित जनजाति की तादात 8 फीसदी है.

इसके अलावा सीट पर उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल के लोगों की अच्छी तादात है. इस संसदीय क्षेत्र के तहत 6 विधानसभा सीटें (बोकारो, सिन्दरी, निरसा, धनबाद, झरिया, चन्दनकियारी) आती है.

इसमें चंदनकियारी सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है. 2014 के विधानसभा चुनाव के दौरान बीजेपी ने चार सीटें (बोकारो, सिन्दरी, धनबाद, झरिया), मार्कि्सस्ट कोआॅर्डिनेशन ने एक सीट (निरसा) और झारखंड विकास मोर्चा ने एक सीट (चन्दनकियारी) पर जीत हासिल की.

इस सीट पर वोटरों की संख्या 18. 89 लाख है, जिनमें 10. 32 लाख पुरुष वोटर और 8. 57 लाख महिला वोटर शामिल है. 2014 के चुनाव में सीट पर करीब 61 फीसदी मतदान हुआ था.

मोदी लहर में इस सीट पर बीजेपी के पशुपति नाथ सिंह दोबारा जीते. उन्होंने कांग्रेस के अजय कुमार दूबे को करीब 2. 92 लाख वोटों से हराया. पशुपति नाथ सिंह को 5. 43 लाख वोट मिले थे, जबकि अजय कुमार दूबे को 2. 50 लाख.

तीसरे नंबर पर मार्कसिस्ट को-आॅर्डिनेशन के आनंद महतो (1. 10 लाख) और चैथे नंबर पर झारखंड विकास मोर्चा के समरेस सिंह (90 हजार) रहे.  


धनबाद लोकसभाः राजनीतिक पृष्ठभूमि

धनबाद लोकसभा सीट से 1951 और 1957 का चुनाव कांग्रेस के पीसी बोस ने जीता. 1962 में इस सीट से कांग्रेस पीआर चक्रवर्ती जीतने में कामयाब हुए. 1967 में निर्दलीय प्रत्याशी रानी ललिता राज्य लक्ष्मी जीतीं. 1971 में फिर इस सीट पर कांग्रेस ने वापसी की और उसके टिकट पर राम नारायण शर्मा जीते.

1977 में इस सीट पर कम्यूनिस्ट पार्टी का कब्जा हो गया और उसके टिकट पर एके रॉय जीते. 1980 के चुनाव में भी एके रॉय जीतने में कामयाब हुए. 1984 में कांग्रेस ने फिर वापसी की और उसके टिकट पर शंकर दयाल सिंह जीते. 1989 का चुनाव कम्यूनिस्ट पार्टी के ही एके रॉय जीते और तीसरी बार सांसद बने.

1991 में इस सीट पर पर पहली बार बीजेपी का खाता खुला और उसके टिकट पर रीता वर्मा जीतीं. वह लगातार चार बार (1991, 1996, 1998 और 1999) जीतीं. अटल बिहारी सरकार में कई मंत्रालयों की मंत्री भी रहीं.

2004 में इस सीट से कांग्रेस के चंद्र शेखर दूबे जीते. 2009 और 2014 में बीजेपी ने फिर वापसी की और उसके टिकट पर पशुपति नाथ सिंह जीते.