मल्लिका-ए-गजल बेगम अख्तर का जन्मदिन आज, ट्रेजेडी से भरा रहा पूरा जीवन

ऐ मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया.. . . हम तो समझे थे कि बरसात में बरसेगी शराब, आई बरसात तो बरसात ने दिल तोड़ दिया.. . . एकाकीपन, खामोशी, ढलते सूरज के बाद बढ़ता अंधेरा, हाथ में जाम.. . और उसके बीच बेगम अख्तर की आवाज.

न जाने कितने प्रेमियों ने अपनी विरह की शामें बेगम अख्तर की आवाज़ के साथ बिताई होंगी. वो आवाज़, जिसने तमाम ग़ज़ल गायकों को प्रेरित किया. वो गायिका, जिनकी जिंदगी अपने आप में ऐसी कहानी है, जिसमें सुपर डुपर हिट फिल्म के सारे मसाले मौजूद हैं. उन मसालों के बीच है अनवरत बहती उदासी, खामोशी, एकाकीपन.

कहां से शुरू किया जाए. इस कहानी के तो हर कदम पर ट्रैजेडी है. पिता ने उनकी मां मुश्तरी से शादी की थी. उनकी दूसरी शादी थी. फिर मां और दो जुड़वां बच्चियों को उनके हाल पर छोड़ दिया. बच्चियां थीं ज़ोहरा और बिब्बी. बिब्बी यानी बेगम अख्तर. चार साल की उम्र में दोनों बहनों ने ज़हर वाली मिठाई खा ली. ज़ोहरा की मौत अस्पताल ले जाते वक्त हो गई. बिब्बी को समझ नहीं आया कि हमेशा साथ रहने वाली उनकी बहन अचानक कहां चली गई. मां ने बताया कि बहन अल्लाह के घर चली गई है.

7 अक्टूबर 1914 को जन्मी बेगम अख्तर की शुरुआत यहां थी, तो अंत भी ज्यादा अलग नहीं था. यह अलग बात है कि तब वह मकबूलियत के नए आसमान छूने लगी थीं. महीना अक्टूबर ही था. यानी जन्म वाला. बंबई में कॉन्सर्ट था. शो हाउस फुल था. बेगम अख्तर ने लगातार लोगों की पसंद और फरमाइश पर ग़ज़लें सुनाईं. थकान उनके चेहरे पर साफ नजर आ रही थी. शो कैंसर पेशेंट ऐड सोसाइटी के लिए था. उन्हें तमाम उपहार दिए गए, जो उन्होंने वहीं बांट दिए. जो पैसा मिला, वो सोसाइटी को दे दिया. बंबई के बाद उन्हें अहमदाबाद में कार्यक्रम करना था. शो की एडवांस बुकिंग हो चुकी थी. हाउसफुल होना तय था.

27 अक्टूबर 1974 का दिन था. वो स्टेज पर आईं. सबको शुक्रिया कहा. उसी समय नवाब मंसूर अली खां पटौदी आए, जो उनके बड़े फैन थे. बेगम साहिबा ने खड़े होकर टाइगर पटौदी का इस्तेकबाल किया. उनकी आखिरी पेशकश ठुमरी थी – सोवै निंदिया जगाए ओ राम.. . . शो का अंत था, वो गाते-गाते बेहोश हो गईं. उन्हें मेडिकल हेल्प देकर होटल ले जाया गया. जबरदस्त हार्ट अटैक था.

स्वास्थ्य थोड़ा बेहतर होने का इंतजार होने लगा, ताकि उन्हें अपने प्यारे शहर लखनऊ ले जाया जा सके. लेकिन 30 अक्टूबर 1974 की रात उन्होंने आखिरी सांस ली. इसके साथ एक ट्रैजिक महागायिका के सफर का अंत हुआ. उनके शव को लखनऊ लाया गया. उनकी ख्वाहिश के मुताबिक पसंद बाग में उन्हें अपनी मां मुश्तरी के साथ दफनाया गया.

इसी के साथ एक कहानी खत्म हो गई. लेकिन बेगम अख्तर की गायकी, उनके अंदाज, संगीत में उनके योगदान का कभी अंत नहीं हो सकता. ग़ज़ल, दादरा, ठुमरी.. . कोई नाम लीजिए, बेगम अख्तर के बगैर पूरा नहीं होगा.

बड़ा दरवाजा, फैजाबाद में उनका जन्म हुआ. मुश्तरी चाहती थीं कि बेटी पढ़े. लेकिन बेगम अख्तर या बिब्बी का मन पढ़ने में नहीं लगता था. सात साल की उम्र में उन्हें चंद्रा बाई के गानों ने प्रभावित किया, जिनका टुअरिंग थिएटर ग्रुप था. उन्होंने पटना में उस्ताद इमदाद खां, पटियाला में अता मोहम्मद खां से सीखा. फिर वो उस्ताद झंडे खां की शागिर्द बनीं.

बेगम अख्तर पर आई एक किताब के मुताबिक उन्हें कई बार शारीरिक शोषण से गुजरना पड़ा था. इसके लिए जिम्मेदार लोगों में उनके एक संगीत शिक्षक भी थे. एक राजा के छोटे भाई के दुर्व्यवहार का वो शिकार बनीं थीं. उन्होंने एक बेटी को जन्म दिया. लेकिन वो अविवाहित मां नहीं कहलाना चाहती थीं. कहा जाता है कि उनकी मां मुश्तरी इस बच्ची को अपनी बेटी बताती रहीं. इस लिहाज से वो बच्ची हमेशा बेगम अख्तर की बहन बनी रही. ये सब उनकी जिंदगी में हुआ, जब वो महज 13 वर्ष की थीं.

इसके बाद वो दिन आए, जिन्होंने बेगम अख्तर को अमर कर दिया. 15 की उम्र में उन्होंने पहला पब्लिक परफॉर्मेंस दिया. हालांकि उनकी जीवनी लिखने वाली रीता गांगुली के अनुसार पहला पब्लिक परफॉर्मेंस 11 की उम्र में था. उनके मुताबिक पहला परफॉर्मेंस कलकत्ता में हुआ. उन्होंने इसमें गाया – दीवाना बनाना है तो दीवाना बना दे.

दरअसल, परिवार बेहतर अवसर की उम्मीद लिए कलकत्ता आया था. मां, बेटी और गुरु अत्ता मोहम्मद खां. 1934 में नेपाल-बिहार भूकंप पीड़ितों के लिए आयोजित कार्यक्रम में उन्होंने गाया. इसमें सरोजिनी नायडू भी थीं, जिन्होंने बेगम अख्तर को सराहा. सरोजिनी नायडू ने उन्हें एक खादी की सिल्क साड़ी दी. यहां से उनकी दुनिया बदल गई. 1935 में उनका पहला डिस्क आया. उन्होंने कुछ फिल्मों में भी काम किया. अख्तरी बाई फैजाबादी का नाम अब घर-घर में लोग जानते थे.

30 और 40 के दशक में उनका दो मंजिला घर था अख्तरी मंजिल. यहां महफिल जमा करती थी. रामपुर के नवाब एचएच रजा अली खां भी खिंचे चले आए. वो लगातार आने लगे. नजदीकी बढ़ती गई. दोनों ने साथ रहने का फैसला किया. अख्तरी अब रामपुर दरबार में पहुंच गईं. लेकिन अख्तरी बाई को जल्दी ही अपनी आजादी खोने का अहसास होने लगा. वो लखनऊ लौट आईं.

रामपुर से ध्यान हटाने के लिए अख्तरी बाई यानी बेगम अख्तर ने अपना ध्यान लगाया इश्तियाक अहमद अब्बासी में. कुछ ही समय पहले उनकी बीवी की मौत हुई थी. वो लखनऊ के मशहूर बैरिस्टर थे. 1945 में बेगम अख्तर ने इश्तियाक अब्बासी से शादी कर ली. इसके बाद वो अख्तरी बेगम या अख्तरी बाई फैजाबादी या अख्तरी सैयद से बेगम इश्तियाक अहमद अब्बासी और फिर बेगम अख्तर बनीं.

शादी को बड़ा गोपनीय रखा गया था. दो करीबी दोस्त, मौलवी, दूल्हा-दुल्हन के अलावा घर में काम करने वाला शख्स था, जिसका नाम गुलाब था. शादी अब्बासी साहब के ऑफिस में हुई. शादी के बाद वो इश्तियाक साहब के पिता के घर मतीन मंजिल में आ गईं. इसके बाद इश्तियाक ने हवेली खरीदी.

पति की बंदिशों के कारण बेगम अख्तर पांच साल तक नहीं गा सकीं. 1951 में उनकी मां मुश्तरी बाई का इंतकाल हो गया. इसके बाद वो बीमार पड़ गईं. अवसादग्रस्त रहने लगीं. डॉक्टरों और आकाशवाणी, लखनऊ के दो लोगों ने इश्तियाक अब्बासी को समझाया कि कम से कम रेडियो के लिए गाने दें. इसके बाद बैरिस्टर साहब की जिंदगी ने ऐसा टर्न लिया कि उन्होंने बेगम अख्तर को प्रोफेशनली भी गाने की इजाजत दे दी. आखिर वो लौटीं और गाना शुरू किया. लेकिन वो एकाकीपन हमेशा उनकी आवाज में रहा, जो उनकी जिंदगी का भी हिस्सा था.

अपनी जिंदगी में तमाम उतार चढ़ाव के बीच उन्हें बहन कहने वाली अपनी बेटी के अलावा अपने दस और बच्चों का भी ध्यान रखना था. उनके पास एक मोती का हार था, जो सात परत वाला था. ऑफ सीजन में वो इसे गिरवी रखकर पैसे लेतीं और संगीत का सीजन शुरू होने पर पैसे देकर हार वापस ले लेतीं. ये सिलसिला उनकी मौत तक करीब सात-आठ साल चला. हार लेकर पैसे देने वाले अरविंद पारिख थे, जो ज्यूलर के साथ सितार वादक भी थे.

बेगम अख्तर की मौत के वक्त हार पारिख साहब के पास था. उन्होंने वो हार इश्तियाक अब्बासी को लौटा दिया और बदले में पैसे लेने से मना कर दिया. यह अलग बात है कि बेगम अख्तर की मौत के कुछ ही समय बाद इश्तियाक अब्बासी का भी इंतकाल हो गया. वो कहानी, जो अक्टूबर में शुरू हुई, अक्टूबर में ही खत्म हो गई. 7 और 30 अक्टूबर के बीच के 60 साल में दुनिया ने गायकी का अजूबा देखा. चमत्कार देखा.. . और बेगम अख्तर ने एकाकीपन और मकबूलियत का चरम देखा.


Web Title : TODAY IS THE BIRTHDAY OF MALLIKA E GHAZAL BEGAM AKHTAR