गाँधी जयंती पर जानिए उनके चश्मे की खासियत और किसके साथ है बापू के चश्मे का दिलचस्प कनेक्शन

गांधी जयंती (2 अक्टूबर) पर बापू को याद करते हुए उनकी छवि आंखों के सामने घूमने लगती है. धोती पहने, हाथों में लाठी पकड़े और आंखों पर गोल चश्मा चढ़ाए महात्मा गांधी की तस्वीर जेहन में उभर आती है. लेकिन क्या आपको उनके चश्मे की खासियत पता है? इसका लखनऊ से बेहद दिलचस्प कनेक्शन है.

लखनऊ के बहुत से लोगों को यह शायद ही मालूम होगा कि बापू का चश्मा शहर के कैसरबाग स्थित एक दुकान में बना था. यह चश्मा बापू को बहुत पसंद आया था और इसके लिए उन्होंने दुकानदार को धन्यवाद वाला पत्र भी लिख कर भेजा था. बीएन बैजल ऑप्टिकल के नाम से मशहूर इस दुकान में गांधी जी ने अपना चश्मा बनाया था. उसका एक नमूना आज भी दुकान में संभाल कर रखा गया है.  

बीएन बैजल चश्मे की दुकान संभाल रहे सोनू बैजल (पांचवी पीढ़ी) ने बताया कि उनकी यह शॉप उनके परदादा बीएन बैजल ने 1888 में शुरू की थी. दुकान 129 साल पुरानी है. यह वह दौर था जब आजादी के लिए लोग संघर्ष कर रहे थे. उसी दौरान महात्मा गांधी जी ने भी अपना चश्मा बनाने के लिए ऑर्डर दिया. हमने उनका चश्मा बनाया जिसका एक नमूना आज भी डिस्पले में रखा हुआ है.

सोनू बैजल बताते हैं कि बापू के चश्मे की खासियत थी कि वह स्किन फ्रेंडली थी. उनके चश्मे का फ्रेम बहुत ही लचीला था. जिससे उसे दोनों तरफ से मोड़कर पहना जा सकता था. चश्मे के रिम को 180 डिग्री तक मोड़ा जा सकता था. सोनू बैजल बताते हैं कि चश्मे को बनाने में 25 दिन लगे थे. फ्रेम में जो मटीरियल लगा था वह त्वचा के अनुकूल था. एलर्जी से बचाव करने वाला था. उसको बनाने में हमने इटेलियन तकनीक का इस्तेमाल किया था. फ्रेम को हमने बल्किुल उसी तरह से बनाया था जैसा कि आज कल तैयार किया जा रहा है. फ्रेम को हैंडपॉलिश करके तैयार किया गया था.  

सोनू आज बेहद दुखी हैं क्योंकि बापू द्वारा भेजा गया पत्र दुकान में सहेज कर नहीं रखा गया. उनका कहना है कि जो भी पत्र आते थे उन्हें संरक्षित रखने का कोई भी नियम नहीं था. अगर वह हमारे पास होता तो ऐसे महान व्यक्ति के पत्र को फ्रेम करवाकर हम अपनी दुकान में रखते. फिलहाल उनके लिए बनाया गया एक फ्रेम का पीस है जो अभी तक सहेज कर रखा गया है. यह हमारी दुकान के डिस्प्ले में है.  

सोनू ने बताया कि उस जमाने में देश में बहुत कम चश्मे की दुकान थी. उस वक्त हमारी दुकान पटना, आगरा, रांची और गोरखपुर में है. फिलहाल आगरा और पटना की दुकानें बंद हो चुकी है. गोरखपुर की दुकान कोई और संचालित कर रहा है. बीएन बैजल के सोनू यह भी दावा करते हैं कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस जो गुमनामी बाबा के नाम से जाने जाते हैं वह भी उनकी दुकान में आए थे. गुमनामी बाबा अपना चश्मा बनाने उनकी दुकान पर आए थे मगर उनको पकड़ने के लिए अंग्रेजी सेना लगी हुई थी. इसलिए वह उनकी दुकान से अंग्रेजों से बचते हुए भाग निकले और उन्होंने चश्मा नहीं बनवाया. इस बात का जिक्र उनके बाबा की डायरी में मिलता है.



Web Title : ON GANDHI JI BIRTHDAY KNOW THESE FACTS OF GANDHIJI SPECS