हीरापुर हरिमन्दिर में 84 साल से हो रही माँ दुर्गा की पूजा

धनबाद : जैसे जैसे पूजा समीप आ रही है वैसे वैसे पूजा पंडालो में कार्य गति पकड़ता जा रहा है. धनबाद में ऐसे बहुत कम स्थान है जहाँ दुर्जा पूजा का अपना ही विशिष्ट पहचान रखती है.जी हाँ धनबाद के हीरापुर हरिमन्दिर में माँ की पूजा कैसे की जाती है और क्या कुछ ख़ास है.

आइये जाने

कोयलांचल के दुर्गोत्सव में हीरापुर हरिमंदिर शारदीय सम्मेलनी अपनी विशिस्ट पहचान रखता है. इस वर्ष पूजा का 84 वा साल है पूजा के साथ साथ यहाँ सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन होता आ रहा है.

जो आज भी बरक़रार है. यहाँ षष्ठी से ही माँ का पट खुल जाता है. सप्तमी की सुबह ढाक की थाप पर महिलाये पुरुष लोको टेंक से जल लेकर पूजा स्थल पर आसान देने के बाद देवी दुर्गा का आह्वाहन किया जाता है.

सप्तमी से नवमी तक भक्तो के बिच माँ का भोग वितरित किया जाता है.दसमी को दही चूड़ा का भोग बांटा जाता है. हरिमंदिर में 1933 से माँ की पूजा अर्चना विधि विधान से होते आ रही माँ की प्रतिमा आज भी उसी मूर्तिकार के वंशज के द्वारा बनाई जाती है.

जो पहले के मूर्तिकार के द्वारा बनाई जाती थी. यहाँ दूर दूर से श्रद्धालु आकर माँ की पूजा अर्चना करते हैं. अगल -बगल बंगाली समुदाय के लोग रहने के कारण यहाँ सिंदूर खेला भी खूब खेला जाता है. सबसे महत्वपूर्ण और विशेष यहाँ का विसर्जन रहता है. पास के खटाल के लोगो के द्वारा विसर्जन के लिए माँ की प्रतिमा को अपने कंधे पर रख कर ले जाते हैं.

पूजा के दिन माँ को जो भी आभूषण और साड़ी चढ़ती है, वो पूजा के बाद गरीबो और जरुरत मंद लोगो के बिच बाँट दी जाती है. पूजा समिति में मुख्य रूप से अमिताभ चटर्जी, तौल दा, बुद्धदेव बनर्जी, पियूष वर्मा, पार्थो गुप्ता की भूमिका अहम रहती है.

Web Title : UNIQUE IDENTIFICATION OF HIRAPUR HARIMADIR DURING DURGA PUJA