सबसे बड़ा दुख जो बहुत कम लोगों को होता है, उस दु:ख का आभास भी लोगों को नहीं है और वह है अध्यात्म का दु:ख.
अध्यात्म का दु:ख अपने आप को न जान पाना है.
चूंकि व्यक्ति आध्यात्मिक नज़र से जीवन देखता नहीं तो उसको इस दु:ख का पता भी नहीं है.
इसी तरह पांच सुखों में अध्यात्म सुख भी होता है.
प्रभु का ध्यान अध्यात्म सुख है.
समाज में हर तरह के विचार के व्यक्ति होते हैं.
कुछ पैसे की नज़र से ही हर स्थिति, परिस्थिति और व्यक्तियों को देखते हैं.
कुछ शारीरिक नज़र से हर समय, हर किसी को परखते हैं.
कुछ लोग भावुकता के पलड़े में सबको तौलते हैं. बुद्धि से विचार करने वाले तो कम ही होते हैं.
सबसे कम होते हैं अध्यात्म की नज़र से संसार को देखने वाले.
इसका अर्थ धार्मिक नज़र नहीं है.
आध्यात्मिक पहलू का अर्थ है जीवन को यथार्थ से देखना.
ज़रा सोचिए !
इस संसार में पांच तरह के सुख हैं.
धन का, तन का, मन का, बुद्धि तथा अध्यात्म का.
आपने मिठाई ख़रीदी तो धन का सुख, खाई तो तन का सुख, पोते-पोती को दी तो मन का सुख, स्कूल में प्रथम आए तो बुद्धि का सुख इत्यादि.
परंतु प्रभु का ध्यान अध्यात्म के सुख के क्षेत्र में आता है.
पांच तरह के दु:ख भी होते हैं.
आपके हज़ार रुपए खो गए तो धन का दु:ख, शरीर का कोई अंग ख़राब हो गया तो तन का दु:ख,
छोटी उम्र में परिवार में कोई व्यक्ति गुज़र गया तो मन का दु:ख, पर कोई व्यक्ति परिवार में मानसिक संतुलन खो गया तो बुद्धि का दु:ख,
परंतु सबसे बड़ा दुख जो बहुत कम लोगों को होता है उस दु:ख का आभास भी लोगों को नहीं है और वह है अध्यात्म का दु:ख.
अध्यात्म दु:ख अपने आप को न जान पाना है. चूंकि व्यक्ति आध्यात्मिक नज़र से जीवन देखता नहीं तो उसको इस दु:ख का पता भी नहीं है.
अध्यात्म की नज़र से देखें तो वास्तविकता में न सुख है, न दुख है.
सुख-दु:ख तो मात्र एक विचार है.
एक के लिए एक घटना दु:ख का संदेश लाती है, तो दूसरे लिए वही घटना भविष्य के लिए सुख की आहट देती है.
अब हम बात करेंगे मीडिया की ख़बरों पर! नि:संदेह हमें ख़बरों को हर स्तर से देखना चाहिए.
पैसा, स्वास्थ्य, परिवार, समाज, ये हमारे अभिन्न अंग हैं.
परंतु सबसे विशाल तो अध्यात्म का पहलू है.
यह मानना बचकाना होगा कि हर ख़बर सिर्फ़ एक स्तर पर हिट होती है. ऐसा नहीं होता.
हर ख़बर का असर व्यापक होता है.
वह नज़र बाद में आए पर उसकी पहुंच बहुत ऊंची और गहरी होती है.
एक ख़बर दु:खदायी मालूम पड़ती है.
परंतु उससे अनेक लोगों को सुख मिलता होगा और शायद एक ख़बर सुखदायी मालूम पड़ती हो, लेकिन उससे अनेक लोगों के घर में दु:ख का माहौल हो जाता होगा.
किसी भी ख़बर का असर अच्छा या बुरा नहीं होता. हर ख़बर को साक्षी भाव से देखिए. तो उतनी परेशानी नहीं होगी जितनी बनाई जाती है.
उदाहरण के लिये शहर में डेंगू फैला.
यह ख़बर दु:खदायी, भयंकर और हैरान करने वाली महसूस होती है.
कोई दोष लोगों को देगा तो कोई नेताओं को, तो कोई सफ़ाई कर्मचारियों इत्यादि को.
परंतु कितने लोगों की ज़िंदगी बन जाएगी. यह बहुत कम लोग देखते हैं.
डेंगू फैला तो बकरी का दूध बेचने वालों की, पपीता बेचने वालों की, डॉक्टरों की, लैब वालों की, और उनके साथ अनेक लोगों की तो पौ-बारह हो जाएगी.
अक्सर ये सोचता हूं कि जो अंतिम संस्कार का सामान बेचता होगा उसके घर में ख़ुशी कब आती होगी.
वह भी जब अपने ग़ल्ले की आरती करता होगा तो कहता होगा कि ´सुख संपत्ति घर आवे´.
कब आएगी उसके घर में सुख संपत्ति? कब आएगा उसके जीवन में आराम? जब शहर में ज्यादा मृत्यु होगी.
इसलिए हर ख़बर को मात्र एक नज़र से मत देखिए. सांसारिक ख़बर पर आध्यात्मिक नज़र भी रखनी चाहिए.
एक बार आपने साक्षी भाव से संसार की हर ख़बर को देखना शुरू कर दिया तो भयंकर से भयंकर दु:ख में भी आप डोलेंगे नहीं.
सोचिएगा इस बात पर!
source : Dainik bhaskar