ओपेक प्लस को अब बिल्कुल परवाह नहीं है अमेरिकी मर्जी की!

रोजाना कच्चे तेल के उत्पादन में कटौती का अचानक फैसला लेकर ओपेक प्लस के सदस्य देशों ने अमेरिका को तगड़ा झटका दिया है. इसे पश्चिम एशिया और अमेरिका के बीच बढ़ रही खाई का एक और संकेत माना गया है. विश्लेषकों के मुताबिक ओपेक प्लस के इस फैसले से जहां अमेरिका और पश्चिमी देशों में महंगाई बढ़ेगी, वहीं इससे रूस को फायदा होगा.

ओपेक तेल निर्यातक देशों का संघ है. जब से रूस इससे जुड़ा इस संगठन को ओपेक प्लस के नाम से जाना जाता है. तेल उत्पादन घटाने के एलान के तुरंत बाद विश्व बाजार में कच्चे तेल की कीमत बढ़ गई. इससे रूस समेत तमाम तेल उत्पादक देशों की आमदनी बढ़ेगी. ओपेक प्लस के सदस्य देशों- सऊदी अरब, इराक, संयुक्त अरब अमीरात, कुवैत, कजाखस्तान, अल्जीरिया, ओमान और गैबॉन ने  रोजाना 11 लाख 60 हजार बैरल कम कच्चे तेल का उत्पादन करने का फैसला किया. यह मात्रा दुनिया में तेल की रोजमर्रा की मांग के एक फीसदी के बराबर है. यह फैसला इस वर्ष मई के अंत तक लागू रहेगा. इस वर्ष अक्तूबर से रोजाना 20 लाख बैरल की कटौती की जाएगी.   

ओपेक प्लस ने कहा है कि यह फैसला तेल बाजार में स्थिरता लाने के मकसद से किया गया है. लेकिन अमेरिका ने इस निर्णय पर एतराज किया है. अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के प्रवक्ता ने कहा है- ‘मेरी राय में अभी बाजार में जैसा अनिश्चय है, उसे देखते हुए उत्पादन में कटौती उचित नहीं है. ’

जबकि ओपेक प्लस ने रूस के रोजाना तेल उत्पादन में पांच लाख बैरल की कटौती के लिए पिछले फरवरी में लिए गए फैसले पर भी अपनी मुहर लगा दी है. दो हफ्ते पहले पहले रूस के उप प्रधानमंत्री एलेक्जेंडर नोवाक और सऊदी अरब के ऊर्जा मंत्री प्रिंस अब्दुल अजीज बिन सलमान के बीच रियाद में मुलाकात हुई थी. तब दोनों देशों ने ‘तेल बाजार में सहयोग’ करने का इरादा जताया था.

रणनीति विशेषज्ञों की राय है कि सऊदी अरब और ईरान के बीच संबंध सामान्य बनाने के लिए हुए समझौते से पश्चिम एशिया में अमेरिका का प्रभाव घटा है. जापान के थिंक टैंक एनएलआई रिसर्च इंस्टीट्यूट से जुड़े विशेषज्ञ त्सुयोशी उएनो ने वेबसाइट निक्कईएशिया. कॉम से कहा- ‘ऐसा लगता है कि अब उस क्षेत्र के देश फैसला लेने से पहले अमेरिका से राय-मशविरा करने की जरूरत नहीं महसूस कर रहे हैं. ’

रूस ने पिछले साल फरवरी में यूक्रेन में अपनी विशेष सैनिक कार्रवाई शुरू की थी. उसके तुरंत बाद विश्व बाजार में कच्चे तेल की कीमत 14 साल के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गईं. बाद में उसमें गिरावट आई और हाल के महीनों में यह यूक्रेन युद्ध शुरू होने से पहले के स्तर पर रही है. लेकिन अब ओपेक प्लस ने संकेत दिया है कि तेल की कीमत में गिरावट उसे मंजूर नहीं है. तेल बाजार के जानकारों ने अनुमान लगाया है कि ताजा फैसले के बाद अभी कुछ समय तक तेल की कीमत ऊंचे स्तर पर बनी रहेगी.    

जापानी कंपनी राकुतेन सिक्योरिटीज से जुड़े विशेषज्ञ सतोरू योशीदा ने के मुताबिक ओपेक प्लस के निर्णय से महंगाई और बढ़ेगी, जिसके परिणामस्वरूप विभिन्न देश ब्याज दरें बढ़ाएंगे और उसका नतीजा अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर धीमी होने के रूप में सामने आएगा.


Web Title : OPEC PLUS NO LONGER CARES ABOUT AMERICAN WILL!

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