रूसी क्रांति के विरोधी और US को चिढ़ाने वाले जिनपिंग के चीन ने ऐसे उतारा समाजवादी चोला

नई दिल्ली : हाल ही में चीन में कम्युनिस्ट शासन की 70वीं वर्षगांठ मनाई गई है. इस मौके पर सबसे महत्वपूर्ण चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग का भाषण रहा. उन्होंने अपने संबोधन में कहा, ´70 सालों में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में जनता अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए लगातार कोशिश करती रही है. चीन ने चीनी विशेषता वाले समाजवादी रास्ते पर आगे बढ़कर नए युग में प्रवेश किया है. चीनी लोगों के सामने हजारों सालों से चली आ रही गरीबी जल्द ही समाप्त होगी, यह मानव विकास के इतिहास में एक महान करिश्मा है. ´

वैसे जिनपिंग के भाषण में वामपंथी सरकार और समाजवाद का जिक्र तो तय था, लेकिन समाजवाद की दुहाई का प्रभाव अब चीनी मुल्क में हल्का होता जा रहा है. आर्थिक महाशक्ति के रूप में उभर रहे चीन में सीधे तौर पर समाजवाद के अंत की बात कहना वाजिब नहीं है, लेकिन चीन अपने बनाए समाजवाद को प्रभावी बनाने में कोई गुरेज नहीं कर रहा है.

जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) के प्रोफेसर एसएन मलाकर का कहना है कि असल समाजवाद और चीन के समाजवाद दोनों में बड़ा फर्क है. बुनियादी रूप से दिक्कतें इसी वजह से होती हैं जो देश समाजवाद की परिभाषा नहीं समझता है और खुद को समाजवादी कहता है तो वो उसकी कसौटी पर अपने को कस नहीं पाता है. समाजवादी व्यवस्था में धन-संपत्ति का स्वामित्व और वितरण समाज के नियंत्रण के अधीन रहते हैं. समाजवाद का सिद्धांत अंतरराष्ट्रीय सर्वहारा वर्ग पर आधारित है.

उन्होंने कहा कि चीन कभी लेनिन के समाजवादी सिद्धांतों पर नहीं चला. 1949 जब क्रांति हुई तो उसने रूस जैसे कम्युनिस्ट देश का विरोध किया. इसके बाद ही चीन ने चीनी समाजवाद का निजात किया था. चीन ने राष्ट्रवाद की आढ़ में समाजवाद पर जोर दिया और धीरे-धीरे उसने समाजवाद को राष्ट्रवादी कवच के साथ जोड़कर नई परिभाषा गढ़ दी. वहीं, 1990 में रूस से समाजवाद साफ हो गया.


इसके बाद ग्लोबलाइजेशन का दौरा आ गया. नए ग्लोबलाइजेशन का दौर विकसित देश लाए थे, जो वॉशिंगटन कंसेंसस का हिस्सा है. विश्व के पूंजीवादियों ने अपना एक नियम बनाया और ग्लोबलाइजेशन पर थोप दिया, जिसे नया उदारवाद कहते हैं. इसमें चीन ने अपनी सेटिंग बैठानी शुरू कर दी, ग्लोलाइजेशन खुद साम्राज्यवाद का हथकंडा था. हालांकि चीन ने समझदारी दिखाई कि उसने ग्लोबलाइजेशन के पैतरे में अपने शर्तों को प्रमुखता से रखा. इससे सबसे ज्यादा फायदा चीन को हुआ. चीन ने धीरे-धीरे सभी देशों के बाजार पर कब्जा कर लिया. अब चीन पर नकेल कसने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप नए तरह के आयात कर लगा रहे हैं.

प्रोफेसर एसएन मलाकर ने बताया कि ग्लोबलाइजेशन की वजह से चीन को भी अपना बाजार खोलना पड़ा है. हालांकि उसने सिर्फ 25 फीसदी ही इंड्स्ट्रलिस्ट जोन को खोला है. कृषि क्षेत्र में अभी भी उसका बाजार बंद ही माना जाता है. 25 फीसदी खुली अर्थव्यवस्था के बूते चीन पूंजीवादी देशों से कमाई कर रहा है और इसी वजह से नया वर्ग भी पैदा हो रहा है, जो समाजवाद से दूरी की बड़ी वजह है. समाजवाद में वर्ग विहीन समाज होता है. हालांकि चीन ने समझदारी दिखाई है कि उसने अपना अभी 75 फीसदी बाजार नहीं खोला है, जिससे समाजवाद को ठहरने का वक्त मिल गया है.  

प्रोफेसर एसएन मलाकर बताते हैं कि चीन में कोई भी फैसला वहां की सरकार लेती है, वहां पूंजीपति निर्णय नहीं लेते हैं, जो राष्ट्रीय संपत्ति दुनियाभर से कमाई जाती है, उसे वहां की जनता पर खर्च किया जाता है. ऐसे में हम कह सकते हैं कि वहां समाजवाद है, लेकिन मुझे नहीं लगता कि चीन में बहुत दिन तक समाजवाद रहेगा. इसकी सबसे बड़ी वजह वर्गीय संरचना का शुरू होना है. चीन में प्राइवेट कंपनियां बढ़ रही हैं. उन्हें चीन की सरकार प्रोटेक्शन मुहैया करा रही है. धीरे-धीरे इन कंपनियों का दखल कृषि क्षेत्र में भी होना तय है. इससे वर्ग संरचना में बढ़ोतरी होगी और समाजवाद खत्म होता जाएगा.

प्रोफेसर एसएन मलाकर ने बताया कि चीन ऐसे मोड़ पर है कि उसे समाजवादी देश नहीं कहा जा सकता. इसीलिए चीन ने खुद ही एक सिद्धांत दिया, जिसे समाजवादी बाजार कहते हैं. इस सिद्धांत को वियतनाम भी मानता है. इस बाजार का स्वरूप ये है कि समाजवादी व्यवस्था के शीर्ष पर जो लोग हैं उनके नियंत्रण में हर तरह का डेवलपमेंट रहेगा. जब कभी उथल-पुथल होगी (जैस हांगकांग और तियानमेन स्क्वायर में हुआ था) तो चीनी सरकार पीपल्स लिब्रेशन आर्मी के जरिए उसे क्रश करके कंट्रोल कर लेगी, लेकिन चीनी सरकार इसमें थोड़ी रियायत भी देती रहती है ताकि अर्थव्यस्था पर प्रभाव ना पड़े. प्रोफेसर मलाकर ने कहा कि चीन समाजवाद और पूंजीवाद दोनों को पकड़े हुए है, जबकि समाजवाद अपनी संरचना में ही पूंजीवाद का घोर विरोधी है. खैर दुनिया पूंजीवादियों के दबाव में है, ऐसी स्थिति में चीन में भी समाजवाद का लंबे वक्त तक टिक पाना मुमकिन नहीं है.

प्रोफेसर एसएन मलाकर ने बताया कि चीनी सेना के अंदर अभी पूंजीवादी विचारधारा नहीं घुस पाई है क्योंकि चीन की सेना में कम्युनिस्ट पार्टी के मेंबर हैं. वहां पर कम्युनिस्ट पार्टी का मेंबर इंटरनेट पर ज्ञान नहीं देता है. उनकी बकायदा करीब तीन साल की ट्रेनिंग होती है. उन्हें दुनिया के बारे में बताया जाता है. साथ ही सदस्यता के लिए वेटिंग में भी रखा जाता है. जब किसी देश की आर्मी में ठोस विचारधारा हो तो उसका उपयोग कभी भी किया जा सकता है. चीन की पूरी आर्मी राष्ट्रवाद और कम्युनिस्ट विचारधारा से लैस है. ऐसे में कहीं भी चीन में उथल-पुथल (जैस हांगकांग और तियानमेन स्क्वायर में हुआ था) होती है तो वहां की आर्मी कंट्रोल कर लेती है. हालांकि इसके जरिए तानाशाही भी पनपी है, जो समाजवाद का हिस्सा नहीं है. प्रोफेसर मलाकर ने कहा कि अगर हम आज सोवियत संघ और क्यूबा वाला समाजवाद चीन में ढूढेंगे तो यह बेमानी होगी.

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग शुक्रवार को दो दिन की भारत यात्रा पर आ रहे हैं. नरेंद्र मोदी के दूसरी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद चीनी राष्ट्रपति की यह पहली भारत यात्रा होगी. हालांकि, दो दिन के इस दौरे में भारत-चीन के बीच कोई बड़ा करार होने की संभावना नहीं है. क्योंकि ये एक तरह की इन्फॉर्मल विजिट है, जिसमें कोई निश्चित एजेंडे पर बात नहीं होगी.

Web Title : XI JINPINGS CHINA, AN OPPONENT OF THE RUSSIAN REVOLUTION AND AN TAG ON THE US, HAS LAUNCHED A SOCIALIST CHOLI

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