एंटी रेबीज के साथ इम्यूनोग्लोबुलीन इंजेक्शन जरूरी

धनबाद:   कुत्ता या अन्य पालतू जानवर के काटने पर यदि शरीर से खून निकलता है, तो अब पीड़ित को एंटी रेबीज वैक्सीन के साथ इम्यूनोग्लोबुलीन का इंजेक्शन भी लगाया जाएगा. रेबीज के खिलाफ शरीर में तत्काल इम्यूनिटी बनाने के लिए इंजेक्शन लगाना है. इसके लिए सरकारी अस्पतालों में इम्यूनोग्लोबुलीन के इंजेक्शन की आपूर्ति की गई है. साथ ही रेबीज कंट्रोल प्रोग्राम के तहत डॉक्टरों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है. बता दें कि एनिमल बाइट की घटना को तीन कैटेगरी में विभाजित किया गया है. इसे रेबीज टाइन वन, थू और थ्री कहते हैं. डॉक्टरों के अनुसार टाइप वन रेबीज में जानवर इंसान को चाटता है. यह भी स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं है. टाइप टू केस में स्किन के ऊपरी परत पर जानवर के दांत और नाखून का हल्का खरोंच आता है, जिसमें खून नहीं निकलता है. दोनों मामलों में सिर्फ एंटी रेबीज वैक्सीन का इंजेक्शन पर्याप्त है. किसी-किसी केस में वैक्सीन के साथ टेटवेक का भी इंजेक्शन लगाया जाता है. यदि कुत्ता या अन्य किसी जानवर के काटने से दांत शरीर के अंदर गड़ जाए और खून निकला शुरू हो जाए, तो ऐसे मामले को टाइप थ्री कैटेगरी में रखा गया है. इस तरह के मामले में एंटी रेबीज वैक्सीन के साथ मरीज को इम्यूनोग्लोबुलीन का भी इंजेक्शन लगाया जाना है. डॉक्टरों को मरीज के रेबीज टाइप की पहचान करने और जरूरत के अनुसार इम्यूनोग्लोबुलीन इंजेक्शन के इस्तेमाल का प्रशिक्षण दिया गया है.

इम्यूनोग्लोबुलीन इंजेक्शन क्यों: डॉक्टरों की मानें, तो जानवर के काटने के बाद लगने वाली एंटी रेबीज वैक्सीन सात दिन में असर करती है. खून निकलने की स्थिति में कभी-कभी पहल ही रेबीज शरीर में फैलने लगता है, जिसे रोकने के लिए इम्यूनोग्लोबुलीन का इंजेक्शन लगाया जा रहा है. यह इंजेक्शन रेबीज के खिलाफ शरीर में तत्काल इम्यूनिटी डेवलप करता है और उसे फैलने से रोकता है. इसके बाद वैक्सीन का असर शुरू होता है और मरीज में रेबीज होने का खतरा लगभग खत्म हो जाता है.

अभी दी जाती है सिर्फ वैक्सीन: डॉग बाइट के मामले में सिर्फ एंटी रेबीज वैक्सीन दी जाती है. ज्यादा घायल मरीज को ही इम्यूनोग्लोबुलीन का इंजेक्शन लगाया जाता है. खासकर उन मरीजों को जिनके चेहरे, सिर, छाती आदि शरीर के ऊपरी हिस्सों में बाइट का जख्म होता है.