सुप्रीम कोर्ट ने किए प्रोविडेंट फंड के नियमों में बदलाव, जानें कर्मचारियों पर होगा कितना असर

सुप्रीम कोर्ट ने पिछले हफ्ते प्राइवेट कंपनियों में नौकरी करने वालों को लेकर बड़ा फैसला सुनाया था. कोर्ट ने प्रोविडेंट फंड के नियमों को लेकर बदलाव किया है. कोर्ट ने कहा कि संस्थान PF का हिसाब करने के दौरान स्पेशल अलाउंस को अलग नहीं कर सकते हैं. ऐसे में यह जानना बेहद जरूरी है कि बदले नियम से कर्मचारियों पर कितना और क्या-क्या असर होगा.  

आसान शब्दों में अगर समझें तो बचत के लिहाज से सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला अच्छा है. वर्तमान में PF का हिस्सा बेसिक सैलरी और महंगाई भत्ता के आधार पर तय किया जाता है. लेकिन, अब इसमें विशेष भत्ता और अन्य तरह के भत्तों को जोड़ दिया गया है. कोर्ट के फैसले की वजह से अब टेक होम सैलरी कम होगी लेकिन सेविंग ज्यादा होगा. सहयोगी वेबसाइट ज़ीबिज़ ने इसको लेकर एक रिपोर्ट तैयार की है जिसमें कोर्ट के फैसले का क्या और कैसे असर होगा इसे विस्तार से समझाया गया है.

क्‍या है EPF का नियम?

वैसे हर नियोक्‍ता के लिए अपने कर्मचारियों को EPF के दायरे में लाना जरूरी है जिनके यहां 20 से ज्‍यादा कर्मचारी काम करते हैं. इस स्‍कीम के तहत नियोक्‍ता को कर्मचारी के मूल वेतन और महंगाई भत्‍ते का 12 फीसदी काटकर ईपीएफ में जमा करवाना होता है. जिन कर्मचारियों का वेतन 15,000 रुपये तक है उनके लिए यह अनिवार्य है.  

जिन कर्मचारियों का वेतन 15,000 रुपये से ज्‍यादा है, उस मामले में नियोक्‍ता के पास यह विकल्‍प होता है कि वह बेस अमाउंट 15,000 रुपये का 12 फीसदी ईपीएफ के मद में काटे. वैकल्पिक तौर पर नियोक्‍ता पूरे मूल वेतन और महंगाई भत्‍ते का 12 फीसदी इस मद में काट सकता है.

कर्मचारी को अपनी तरफ से बेसिक सैलरी का 12 फीसदी ईपीएफ मद में देना पड़ता है. नियोक्ता को भी इतना ही योगदान ईपीएफओ में देना अनिवार्य है. हालांकि, नियोक्ता की तरफ से बेसिक सैलरी के मद में दिया गया 12 फीसदी में से 8. 33 फीसदी हिस्सा एंप्‍लॉयी पेंशन स्‍कीम (EPS) में चला जाता है, जो मासिक अधिकतम 1,250 रुपये तक हो सकता है.

सिर्फ हाथ में आने वाला पैसा ही वेतन नहीं होता

टैक्‍स एक्‍सपर्ट और निवेश सलाहकार बलवंत जैन कहते हैं कि ज्‍यादातर नौकरीपेशा समझते हैं कि हाथ में आने वाले नकद पैसा ही वेतन है. वे ईपीएफ के लिए सैलरी से की जाने वाली कटौती को सैलरी का हिस्‍सा नहीं मानते. इसलिए, इन हैंड सैलरी को बढ़ाने के लिए कई नियोक्‍ता अपने कर्मचारियों को विभिन्‍न अलाउंस देते हैं. जैसे कैंटीन अलाउंस, कन्‍वेंस अलाउंस, लंच अलाउंस, हाउस रेंट अलाउंस, स्‍पेशल अलाउंस आदि. ईपीएफ योजना के तहत हाउस रेंट अलाउंस और फूड कंसेशन आदि को बाहर रखा जाता है.

सुप्रीम कोर्ट ने क्‍या कहा?

सुप्रीम कोर्ट ने अलाउंसेज पर समानता का नियम (रूल ऑफ यूनिवर्सेलिटी) लागू किया है. अगर कोई खास अलाउंस उस संस्‍थान के सभी नियोक्‍ता को बिना इस भेदाभाव के दिया जाता है कि वह कितना काम करता है या उसका आउटपुट कितना है, तो यह अलाउंस वेतन/महंगाई का रूप होगा और ईपीएफ की कटौती में इसकी गणना की जाएगी. जैन कहते हैं कि ओवरटाइम अलाउंस, परफॉरमेंस लिंक्‍ड इन्‍सेंटिंव (पीएलआई), बोनस, कमीशन और इस तरह के दूसरे अलाउंस ईपीएफ की गणना से बाहर रहेंगे. लेकिन, ऐसा कोई भी अलाउंस जो परफॉरमेंस से जुड़ा हुआ नहीं है वह ईपीएफ की गणना में शामिल किया जाएगा.   

क्‍या होगा सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का आपकी सैलरी पर असर?

सबसे पहले उन कर्मचारियों की बात करें जिनके ईपीएफ का डिडक्‍शन 15,000 रुपये की बेस सैलरी के आधार पर किया जाता है, तो उनके ऊपर इसका कोई असर नहीं होगा. जिन कर्मचारियो का वेतन कम है और जहां ईपीएफ के योगदान के लिए विचारणीय राशि 15 हजार रुपये से कम है और जिन्‍हें क्षमता के आधार पर इस तरह का कोई अलाउंस मिलता है, उनकी इन हैंड सैलरी कम हो जाएगी. इसकी वजह है कि नियोक्‍ता इस तरह के अलाउंस को भी ईपीएफ में योगदान के लिए जोड़ते हुए चलेगा. नियोक्‍ता को भी ईपीएफ में अपनी तरफ से योगदान बढ़ाना होगा.

जैन कहते हैं कि कुल मिलाकर देखा जाए तो सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का असर यह होगा कि जिनकी आय कम है उनका पीएफ में योगदान में बढ़ जाएगा. उनकी बचत ज्‍यादा होगा लेकिन हाथ में आने वाली सैलरी कम हो जाएगी. जिन लोगों की सैलरी ज्‍यादा है और उन्‍हें स्‍पेशल अलाउंस जैसा ईपीएफ में कटौती के योग्‍य अलाउंस मिलता है उनकी इन हैंड सैलरी घट जाएगी.

Web Title : SUPREME COURT TO CHANGE PROVIDENT FUND RULES, LEARN HOW MUCH IMPACT IT WILL HAVE ON EMPLOYEES

Post Tags: