यात्री प्रतिक्षालय में मासुम बच्चों को लेकर मजदूरों ने गुजारी रात, कंजई क्वारेंटाईन सेंटर से चार दिन बाद लौटे परिवारों ने घर जाने की जताई इच्छा

बालाघाट. कोरोना वायरस से निपटने पूरे देश में किये गये लॉक डाउन के बाद काम धंधे बंद होने और भोजन की समस्या पैदा होने के बाद जिले से काम की तलाश में गये मजदूरों के वापस लौटने का सिलसिला अनवरत रूप से जारी है. हैदराबाद के कोमपल्ली में एक निर्माण कंपनी में कार्य करने गये जिले के हट्टा, मलाजखंड और उकवा क्षेत्र के ग्रामों के निवासी 11 मजदूरों ने लॉक डाउन के बाद बालाघाट तक पहुंचने की अपनी कहानी बयां की.  

मजदूर किशोर खरे ने बताया कि 29 मार्च को हैदराबाद के कोमपल्ली से सभी मजदूरो ने पैदल सफर शुरू किया था लेकिन रास्ते में मिलते गये वाहनों के माध्यम से एक सप्ताह पहले वह सिवनी पहुंचे थे. जिसके बाद फिर रास्ते में मिले वाहन के माध्यम से वह बरघाट पहुंचे. फिर वहां से चलकर वह कंजई पहुंचे थे, जहां उन्हें लालबर्रा सीमा पर बनाये गये कंजई क्वारेंटाईन सेंटर में चार दिनों तक रखा गया था. गत 12 अप्रैल को वह कंजई क्वारेंटाईन सेंटर से शाम बालाघाट पहुंचे. यहां नपा से संपर्क करने के उन्हें यात्री प्रतिक्षालय में ठहरने कहा गया.  

जहां पूरी रात यात्री प्रतिक्षालय के बैंच और जमीन पर बैठकर रात गुजारी. भले ही एक रात हो लेकिन यह रात काफी पीड़ादायक रही. मासुम बच्ची को लेकर परिवार रात भर मच्छरों से जंग करते रहे. आज सुबह फिर हम नपा पहुंचे तो उन्हें वापस प्रतिक्षालय में इंतजार करने कहा गया.  

मजदूरों की स्थिति बयां कर रही थी कि बदबूभरे यात्री प्रतिक्षालय के माहौल में उन्होंने किस तरह अपनी रात गुजारी, आज दोपहर 12. 30 बजे तक भी मजदूरों के साथ एक मासुम बच्ची होने के बाद भी खाने का कोई इंतजाम नहीं था. मां बच्ची के दूध के लिए बेबस थी और मजदूर पेट में लगी भुख की आग से परेशान थे. उन्हें बस उम्मीद थी कि किसी तरह प्रशासन उन्हें घर पहुंचा दे.  

हैदराबाद के कोमपल्ली में कमाने-खाने गये 11 मजदूरों में 3 मजदूर उकवा क्षेत्र अंतर्गत पोंडी, 3 मजदूर मलाजखंड क्षेत्र अंतर्गत निक्कुम और 5 मजदूर हट्टा थाना अंतर्गत भालवा और गोदरी चौकी के भगतपुर के रहने वाले थे. जिन्होंने बताया कि कल शाम को कंजई से वह खाना खाकर निकले थे, जिसके बाद से आज दोपहर तक उनके पेट में अन्न का कोई दाना नहीं है. सबसे ज्यादा दिक्कत उस मां को थी, जिसके पेट में अन्न नहीं था. जब मां के पेट में अन्न नहीं था तो मासुम बच्चे को वह आखिर कितना दूध पिलाती.  

मजदूरों की इस समस्या को जानने के बाद जागरूक मीडियाकर्मी ने मजदूरों के भोजन के लिए एसडीएम से चर्चा की. जिसके बाद मजदूरों को दिनदयाल रसोई मंे भोजन के लिए बुलाया गया. यह समझ से परे है कि नपा के नजदीक यात्री प्रतिक्षालय में ठहराये जा रहे मजदूरों को आखिर किसके भरोसे छोड़ा जा रहा है और उनकी स्थिति को देखते हुए संवेदनशीलता क्यों नहीं दिखाई जा रही है? समाजसेवियों और दानदाताओं के इस जिले में जिले से बाहर कमाने गये मजदूरों के बालाघाट पहुंचने के बाद उनकी स्थिति पर ध्यान क्यों नहीं दिया जा रहा है? 


Web Title : WORKERS CARRYING MASUM CHILDREN AT THE PASSENGER COUNTER COURT EXPRESSED THEIR WILLINGNESS TO GO HOME FOUR DAYS AFTER THE NIGHT, FOUR DAYS AFTER THE KANSAI QUARANTINE CENTRE