चीफ जस्टिस अचानक लेने लगे मिष्टी दोई, लुची और आलू पोस्तो का नाम, सुनवाई में क्यों हुआ ऐसा

कलकत्ता हाई कोर्ट में आज सरकारी कर्मचारियों से जुड़ी एक रैली की इजाजत देने पर सुनवाई हो रही थी. उसी दौरान  हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस टीएस शिवगणनम बांग्ला खाद्य व्यंजनों का नाम लेने लगे. सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने कहा कि बंगाल में सार्वजनिक रैलियों और बैठकों की एक संस्कृति रही है. यह वैसी ही पुरानी है, जैसी कि राज्य में मिष्टी दोई (मीठा दही), आलू पोस्तो और लूची (भारतीय रोटी) जैसे व्यंजनों की परंपरा है. चीफ जस्टिस ने कहा कि राज्य में सार्वजनिक रैलियों और विविध व्यंजनों की परंपरा अभिन्न हैं.

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, चीफ जस्टिस टीएस शिवगणनम और जस्टिस हिरण्मय भट्टाचार्य की खंडपीठ राज्य सरकार की उस अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें सरकारी कर्मचारियों द्वारा महंगाई भत्ते (डीए) के  भुगतान को लेकर एक सार्वजनिक रैली की सिंगल बेंच द्वारा दी गई इजाजत को चुनौती दी गई थी.  

चीफ जस्टिस की अगुवाई वाली दो जजों की पीठ ने पश्चिम बंगाल के सरकारी कर्मचारियों को कोलकाता में रैली करने की इजाजत देते हुए सरकार की याचिका खारिज कर दी.  अपने फैसले में चीफ जस्टिस ने लिखा,  निस्संदेह मिष्टी दोई (मीठा दही), लूची (रोटी), और आलू पोस्तो बंगाल की संस्कृति का एक अभिन्न हिस्सा हैं, और उसी तरह प्रतीत होता है कि सार्वजनिक रैलियां, बैठकें आदि सभी बंगाल की संस्कृति का भी हिस्सा हैं. इसलिए हम में से एक (चीफ जस्टिस) की राय है कि संस्कृति और विरासत से परिपूर्ण इस राज्य का प्रत्येक बंगाली एक जन्मजात वक्ता है और उसे बोलने की इजाजत दी जानी चाहिए.

चीफ जस्टिस ने इसके साथ ही राज्य के पुलिस अधिकारियों को रैली स्थल पर कानून व्यवस्था बनाए रखने का निर्देश दिया और दूसरी तरफ रैली करने वाले सरकारी कर्मचारियों को भी शांतिपूर्ण तरीके से अपनी मांगे रखने और विरोध-प्रदर्शन करने की इजाजत दी. कोर्ट ने सरकारी कर्मचारियों को खासकर ताकीद किया कि रैसी में किसी तरह के नफरती भाषण न दिए जाएं और हर हाल में रैली शांतिपूर्ण रहे. यह रैली आज ही होनी थी.

अपने फैसले में कोर्ट ने लिखा, चूंकि रैली करने वाले सभी सदस्य सरकारी कर्मचारी हैं. उनमें से प्रत्येक का समाज और राज्य के प्रति दायित्व और कर्तव्य है. इसलिए इसमें कोई संदेह नहीं है कि रैली में शामिल होने वाले सभी प्रतिभागी एक सरकारी कर्मचारी के अनुरूप आचरण करेंगे. कोर्ट ने सरकारी कर्मचारियों की रैलियों और विरोध-प्रदर्शनों से आम जनों को होनेवाली असुविधा पर भी ध्यान खींचा और कहा कि कर्मचारी संगठनों को सरकारों से अपनी शिकायतें व्यक्त करने के वैकल्पिक तरीके खोजने में सावधानी बरतनी चाहिए.

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