झारखंड में गढ़वा जिलांतर्गत हेठार और गोवावल क्षेत्र को धान का कटोरा कहा जाता है. ब्रिटिश काल में भी दोनों ही इलाकों की पहचान धान उत्पादन के लिए ही थी. पलामू गजेटियर में भी इन इलाकों की ख्याति धान उत्पादक क्षेत्र के तौर पर होने का उल्लेख मिलता है. बदले समय में बारिश की अनिश्चितता और सिंचाई की मुकम्मल व्यवस्था नहीं होने से इन इलाकों के किसान धान की खेती के अलावा अन्य फसलों के उत्पादन पर भी जोर देने लगे हैं.
1966 के भीषण अकाल में भी हुई थी धान की खेतीगढ़वा का इतिहास नाम पुस्तक लिखने वाले व राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित सेवानिवृत्त शिक्षक डॉ रमेश चंचल बताते हैं कि गोवावल क्षेत्र में करीब 32 गांव शामिल हैं. यह क्षेत्र चारों तरफ से नदियों से घिरा है. उत्तर में कोयल, दक्षिण में अन्नराज तो पूरब में तहले और पश्चिम में दानरो नदी है. बताते हैं कि 1966 के भीषण अकाल में भी इलाके में धान की खेती हुई थी. क्षेत्र में कभी भुखमरी की स्थिति नहीं हुई.
अधिसंख्य क्षेत्र में काली मिट्टीक्षेत्र के लिए प्रचलित रहा है कि खेत में दाना डाल दिए तो हसुआ लगेगा ही. मतलब खेतों में फसल की बुआई हो गई तो समझिए किसान उसकी कटाई भी अवश्य करेंगे. क्षेत्र की जमीन काफी पैदावार है. अधिसंख्य क्षेत्र में काली मिट्टी है. उन्होंने बताया कि क्षेत्र में शुरू से ही धान के अलावा कोदो, सांवा व गेहूं की खेती मुख्य रूप से होती थी. ऐसे क्षेत्र में अलग-अलग 36 किस्म की फसल होती थी. उन्हीं में अपटा गेहूं की खेती होती थी. मतलब बगैर पटवन किए ही गेहूं की अच्छी पैदावार किसान ले लेते थे. इसकी बुआई दीपावली के बाद ही शुरू हो जाती थी. इस किस्म के गेहूं की कभी पटवन की जरूरत नहीं हुई. क्षेत्र में धान की खेती अभी भी बहुतायत होती है. उसी तरह कांडी प्रखंड अंतर्गत हेठार क्षेत्र की पहचान भी चावल उत्पादन के तौर पर रही है. यह इलाका तीन नदियों से घिरा है. इनमें सोन, कोयल व पंडी नदी शामिल हैं. हेठार क्षेत्र की जो मिट्टी है, वह काफी उपजाऊ है. नदी पर तटबंध नहीं होने के कारण अधिसंख्य उपजाऊ खेत सोन नदी में समा चुका है.
सोन नदी में तटबंध नहीं होने से क्षेत्र को नुकसानहेठार के बुजुर्ग रमण मेहता, राम सुंदर पासवान व सुदर्शन यादव बताते हैं कि सोन नदी में तटबंध नहीं होने से क्षेत्र को काफी नुकसान हो चुका है. कभी भदुआ नामक नदी यहां की सीमा रेखा थी. तटबंध नहीं होने के कारण नदी सहित वर्तमान में करीब ढाई किलोमीटर का इलाका सोन नदी में समा चुका है. धान की खेती के लिए चर्चित वह खेत जिसे कभी धान का कटोरा कहा जाता था, उसका अस्तित्व ही मिट गया है. स्थानीय बुजुर्ग बताते हैं कि हेठार क्षेत्र में सिंचाई की व्यवस्था नहीं हो सकी. इसके बाद भी विपरीत परिस्थितियों में आज भी हेठार क्षेत्र के किसान अपने बलबूते चावल व सब्जी उत्पादन बड़े पैमाने पर करते हैं. खरीफ फसल के दिनों में पंडी नदी का पानी किसानों के खेतों तक पहुंच पाता है. सामान्य बारिश हुई तो फसल अच्छी होती है. बाढ़ की स्थिति में खरीफ फसल को नुकसान पहुंचता है. बाढ़ में बहकर आई उपजाऊ मिट्टी रबी फसल के लिए फायदेमंद होती है. कह सकते हैं कि क्षेत्र के लिए पंडी नदी अभिशाप के साथ वरदान भी साबित हो रही है. अधिसंख्य गोवावल क्षेत्र में नहर से सिंचाई की सुविधा तो है, पर हेठार में पटवन की सुविधा अबतक बहाल नहीं की जा सकी.