पुरातत्व संग्रहालय में मनाई गई बालाघाट नामकरण की 126 वीं वर्षगांठ

बालाघाट. इतिहास एवं पुरातत्व शोध संस्थान संग्रहालय में बालाघाट नामकरण की 126 वी वर्षगांठ हर्षोल्लास से मनाई गई. वर्षगांठ कार्यक्रम साहित्यकार पंडित सुधाकर शर्मा के मुख्य आतिथ्य, रिटायर्ड महाविद्यालय प्राचार्य प्रो. एल. सी. जैन की अध्यक्षता एवं प्रो. एम. एन. बापट के विशेष में आयोजित किया गया.

कार्यक्रम का सफल संचालन करते हुए पुरातत्व संग्रहालय संग्रहाध्यक्ष डॉ. वीरेन्द्र सिंह गहरवार ने बताया कि वर्ष 1895 में बुढ़ा-बुढ़ी नाम से जाने वाले जिले का नाम बालाघाट किया गया गया था. जिसे आज पूरे 126 वर्ष हो गये हैं, अंग्रेज सरकार ने 1914 को 6 पुरातात्विक स्थलों को संरक्षित किया था. जो वर्तमान में केन्द्र सरकार के अधिनस्थ है, राज्य सरकार ने 1988 को हट्टा की बावली तथा 2019 में धनसुवा का गोंसाई मंदिर ही अधिपत्य में लिया है. बालाघाट के अन्य असंरक्षित पुरातात्विक स्थलों को संरक्षित करने की कार्यवाही प्रारंभ हैं. पुरातत्व संग्रहालय में पृथक-पृथक दीर्घाओं का निर्माण किया जा रहा है. उन्होंने बताया कि प्राचीन नाम बुढ़ी के नाम से अंकित बोर्ड बुढ़ी मार्ग में लगाया जायेगा.

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि साहित्यकार पंडित सुधाकर शर्मा ने पुरातत्व संपदा को संरक्षित करने की कार्यवाही करने एवं अन्य विषयों पर विस्तार पूर्वक अपनी बात रखी. पुरातत्व संग्राहलय में मनाये गये बालाघाट नामकरण कार्यक्रम में प्रो. डॉ. संतोष कुमार सक्सेना, सुभाष गुप्ता, कंचनसिंह ठाकुर, सुरेश रंगलानी, श्रीमती कविता गहरवार, श्रीमती प्रमिला विजेवार, डॉ. अनुभूति सेंडीमन, राजेंद्र सिंह ठाकुर, सतीश भारद्वाज, राजेश ब्रम्हे, अखिलेश कुमार पटले, वेंकट गेडाम,  सौरभ उइके, कमला नेहरू महाविद्यालय बालाघाट की छात्राओं सहित नगर के गणमान्यजनों ने कहा कि पुरातत्व संग्रहालय में पुरातत्व अवशेषों को संरक्षित करना चाहिए, ताकि आने वाली पीढ़ियों को अपनी विरासत को याद कर सके. अंत में संकल्प लिया गया कि वन, जल और पुरातत्व को बचाये. 2021 के आगमन पर सरस काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया. जिसमें कवियों द्वारा स्वर रचनायें प्रस्तुत की गई. जिसका उपस्थित श्रोताओं ने लुत्फ उठाया. इसके साथ ही इस अवसर पर साहित्यकारों को शाल श्रीफल से सम्मानित किया गया.


Web Title : 126TH ANNIVERSARY OF BALAGHAT NOMENCLATURE CELEBRATED AT ARCHAEOLOGICAL MUSEUM