शिक्षा और संगठन से होगा आदिवासी समाज का कल्याण-कुमरे.विश्व आदिवासी दिवस पर निकली रैली, आदिवासी लोक संस्कृति की दिखाई दी झलक

कटंगी. सर्व आदिवासी समाज संगठन के नेतृत्व में 9 अगस्त सोमवार को विश्व आदिवासी दिवस बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया गया. इस मौके पर नगर में रैली निकाली गई. जिसमें सैकड़ों की संख्या में आदिवासी समाज के लोगों ने हिस्सा लिया. हाईस्कुल के पीछे मैदान से प्रारंभ हुई रैली ने पूरे शहर का भम्रण किया. इस दौरान आदिवासी लोक संस्कृति की नृत्य एवं झांकियों के माध्यम से झलक देखने को मिली. वहीं प्रशांति वाटिका लॉन में विश्व आदिवासी दिवस समारोह का आयोजन किया गया. इस समारोह में न्यायविद नितिन कुमरे मुख्य अतिथि के रुप में उपस्थित थे. जबकि वरिष्ठ समाजसेवी इंजिनियर प्रशांत मेश्राम प्रमुख अतिथि, समारोह की अध्यक्षता अजाक्स अध्यक्ष सी. एस. कुसराम ने की. इन अतिथियों के अलावा डी. डी. वाडिवा, भुवनसिंह कुर्राम, हेमु कुमरे, मदनसिंह कुलस्ते, संजय इब्ने, डॉ. अश्विनी सातनकर, इंदुसिंह डावर, इंजि. प्रकाश टेंभरे, जे. एन. कोचे, टी. पी. घोड़ेश्वर, सुरेन्द्र गजभिये, भरतलाल मड़ावी, प्रीतमसिंह उइके, प्रदीप मेश्राम, सविता उके, डागेन्द्र राउत, विनोद डहरवाल ने भी बतौर अतिथि हिस्सा लिया. वहीं गांव-गांव से पहुंचे आदिवासी समाज के लोगों ने इस समारोह में पहुंचकर सामाजिक एकता का परिचय दिया. विश्व में रहने वाली आदिवासी आबादी के मूलभूत अधिकारों जल, जंगल जमीन को बढ़ावा देने और उनकी सामाजिक, आर्थिक और न्याय सुरक्षा के लिए प्रत्येक वर्ष 9 अगस्त को विश्व भर आदिवासी दिवस मनाया जाता है. यह घटना उन उपलब्धियों और योगदानों को भी स्वीकार करती है जो मूल निवासी लोग पर्यावरण संरक्षण आजादी महा आंदोलनों जैसे विश्व के मुद्दों को बेहतर बनाने के लिए करते हैं.

विश्व आदिवासी दिवस के मौके पर मंचीय कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि न्यायविद नितिन कुमरे ने कहा कि आदिवासी समाज उपेक्षा का शिकार है. बेरोजगारी, बंधुआ मजदुरी जैसी बेड़ियों से जकड़ा है. जिसकी आजादी की आवश्यकता है. उन्होनें कहा कि आदिवासी समुदाय एक ऐसी समाज है जो पूरे विश्व में अलग पहचान रखता है. वह अपनी मेहनत के बलबूते पर देश को खड़ा करता है. महात्मा गांधी ने आदिवासी को गिरीजन कहा था यानि पहाड़ पर रहने वाले लोग आदिवासी हमेशा पहाड़ की जैसे डटा रहता है. जिन्हें बदलते दौर में शोषण का सामना करना पड़ रहा है. शिक्षा का स्तर कमजोर है, जिनकी पुस्तै बंधुआ मजदूरी कर रहे थे, वह आज भी बंधुआ मजदूरी ही कर रहे है क्योंकि समाज के जो दूसरे लोग है जो आदिवासी लोगों को बढ़ाने देना नहीं चाहते. वह आदिवासियों को शिक्षित होने नहीं देना चाहते. उन क्षेत्रों में स्कूल नहीं खोले जाते ना ही चिकित्सा सुविधा दी जाती है. यह आजादी हमें तब तक नहीं मिलेगी जब तक आदिवासी समाज शिक्षित और संगठित नहीं होगा. आदिवासी समाज देश का सबसे बड़ा समाज है हमारे भीतर बिखराव होने के कारण ही दूसरे समाज इसका फायदा उठाते है और हम पर राज करते है.

संयुक्त राष्ट्र को जब इस बात का आभास हुआ कि सारे विश्व का कल्याण करने वाले आदिवासी समाज का शोषण हो रहा है तब संयुक्त राष्ट्र ने एक कार्यदल का गठन किया था. जिसके बाद से विश्व आदिवासी दिवस मनाया जा रहा है. इस दिन मात्र आदिवासियों के हितों की चिंता होती है दूसरे दिन आदिवासियों के हितों पर कोई चर्चा नहीं होती. जब तक ऐसा होता रहेगा तब तक आदिवासी उपेक्षित ही रहेगा. इसलिए हर दिन आदिवासियों के हितों में चिंता करने की जरूरत है.

    कार्यक्रम को संबोधित करते हुए इंजिनियर प्रशांत मेश्राम ने कहा विश्व आदिवासी दिवस आदिवासियों के मूलभूत अधिकारों की सामाजिक, आर्थिक और न्यायिक सुरक्षा के लिए प्रत्येक वर्ष 9 अगस्त को मनाया जाता है. पहली बार आदिवासी या मूलनिवासी दिवस 9 अगस्त 1994 को जेनेवा में मनाया गया. आदिवासियों की ज्ञान परंपरा काफी समृद्ध है. इसकी समृद्धि ही इसके शोषण का कई बार कारण भी बनती है. कई बार ऐसा हुआ कि बड़े औद्योगिक घराने के लोग आदिवासियों के ज्ञान को प्राप्त करने के लिए उनके साथ छल करते हैं और भी कर रहे है. दुनियाभर में आज आदिवासियों की संख्या में गिरावट आती जा रही है. आदिवासी ही वे लोग है जिनसे हमें प्रकृति को बचाने की सिख मिलती है की किस प्रकार हमें अपनी प्रकृति को प्रेम करना चाहिये. आधुनिकता के इस दौर में आदिवासियों के अस्तित्व के दुश्मन भी बहुत लोग है. जिन्हें पहचाने की जरूरत है क्योंकि हर साल न जाने कितने पेड़ और जंगल का सफाया किया जाता है सिर्फ अपने फायदे के लिए. लोग इस फायदे में यह भूल जाते हैं की हम आदिवासियों के घर यानी उनके जंगल को नष्ट कर रहे हैं. इसलिए आदिवासी समाज को एकजुट होकर अपने हक और अधिकारों को लेकर लेकर लड़ने की जरूरत है.


Web Title : EDUCATION AND ORGANIZATION TO BENEFIT TRIBAL SOCIETY KUMRE. RALLY ON WORLD TRIBAL DAY, GLIMPSES OF TRIBAL FOLK CULTURE