मन में यदि मैल है तो दुर्गति निश्चित है-पूज्य विरागमुनि जी म.सा.

बालाघाट. जिले में चातुर्मास के लिए पधारे प्रवर पूज्य गुरूदेव श्री विनय कुशल मुनि जी म. सा. के शिष्य दिव्य तपस्वी महासाधक पूज्य गुरूदेव श्री विराग मुनि जी म. सा. ने सोमवार को पयूर्षण पर्व के दूसरे दिन बताया कि कि अनन्त उपकारी करूणा निधान भगवान महावीर के शासन मंें आत्मकल्याण के लिए समय समय पर अनेक पर्व एंव अनुष्ठान बताए गए. एक तिथि के बाद दूसरी तिथि को पर्व बताया गया है. भगवान के सभी कल्याणक आदि भी पर्व के रूप में मनाए जाते है. जिन शासन के सारे पर्व में त्याग की महत्ता है.  गुरूदेव ने बताया कि अनादिकाल से पूद्गलों ने मेरे संसार को खड़ा किया इन पूदगलों का राग छूटे और मैं आत्मा के निकट पहुंच सकंु, ऐसा विचार इन पर्वो में हमें आना चाहिए. जैन धर्म अद्भुत धर्म है. हमारे ऊपर मुख्य एवं पहला उपकार तीर्थंकर भगवान का, अरिहंत प्रभु का, जिन्होने हमें मोक्ष मार्ग बताया. हमें जो भी मिला है वह उनके बताए मार्ग से पुण्य  उपार्जन से प्राप्त हुआ है. जो मिला, वह प्रभु कृपा से मिला. ऐसे उपकारी परमात्मा के लिए सब कुछ न्यौछावर करता हॅू. अपने आपको भी प्रभु चरणों में समर्पित करता हॅु.  

गुरूदेव कहते है कि जो क्षमा देता है एवं क्षमा मांगता है वह आराधक है. जो क्षमा के भाव नही रखता वह विराधक है. संवत्सरी प्रतिक्रमण में सभी जीवों से क्षमा याचना करें, तभी हम आराधक की श्रेणी में होंगे. मेरी प्रवृत्ति के कारण जिन-जिन जीवों को पीड़ा, दुख पहुंचा है, उन सभी से संवत्सरी पर्व पर हद्रय से मन, वचन, काया से क्षमा मांगता हॅु. पर्व पयूर्षण के आठ दिन, आठों कर्म खपाने के लिए उत्तम अवसर है.  गुरूदेव ने आठ कर्मो का जिक्र करते हुए बताया कि झानावरणीय कर्म, दर्शनावरणी कर्म, वेदनीय कर्म, मोहनीय कर्म, आयुष्य कर्म, नाम कर्म, गौत्र कर्म, अन्तराय कर्म. एक-एक कर्म को तोड़ने, खपाने के लिए पर्व में व्यवस्था दी गई है. जैसे संपूर्ण जयणा, चैत्य परिपाटी, मिथ्यातत्व, क्षमापना, अठम तप,  अमारी प्रवर्तन, देव द्रव एवं साधारण द्रव में वृद्धि, आलोचना, प्रायश्चित, प्रति दिन रांई प्रतिक्रमण, पूजा, प्रवचन, देवसी प्रतिक्रमण एवं प्रभु भक्ति, मोबाईल एवं टीवी से दूर, साधर्मिक भक्ति आदि कार्य बताए गए है.  

गुरूदेव ने बताया कि सद्गति के लिए नियमित जिनवाणी, श्रवण करना है. गौतम स्वामी स्वयं केवली भगवंत थे, किन्तु प्रसन्नता के साथ भगवान की देशना सुनते थे. जीव दया के लिए जितना कर सकते हैं करें. मन में यदि मैल है तो दुर्गति निश्चित है. एक दूसरे के प्रति बैर है तो संवत्सरी प्रतिक्रमण के पहले एक एक व्यक्ति को याद कर मन, वचन, काया से मिच्छाभि दुक्ड़म करें.  गुरूदेव ने बताया कि कर्म रूपी कर्ज चुकाने 11 कर्तव्य बताए गए हैं जैसे संघ पूजा, साधर्मिक भक्ति, तीर्थ यात्रा, स्नात्रपूजा, देवद्रव की वृद्धि, महापूजा, धर्म जागरण, शुद्ध  ज्ञान पूजा, साधु साध्वी भगवंत की सेवा भक्ति, उजमना, तीर्थ प्रभावना एव आलोचना, प्रायश्चित. जिन कर्तव्यों का पालन हमें वर्ष भर में आवश्यक रूप से करना चाहिये. जिसके लिए गुरूदेव ने अनेक दृष्टांत बताते हुए 11 कर्तव्यों की महत्ता को विस्तार से समझाया. गुरूदेव कहते हैं  हम सब छद्मस्त है. खुब पाप किए है,ं इन पापों की आलोचना के लिए गुरू भगवंतों के समक्ष प्रकट करें. संवत्सरी प्रतिक्रमण के पहले आलोचना आवश्यक है.  


Web Title : IF THERE IS DIRT IN THE MIND, THEN MISERY IS CERTAIN PUJYA VIRAGMUNI JI M.S.