बालाघाट. प्रतिभाओं की भूमि बालाघाट का एक सितारा मायानगरी मुंबई में बीते 45 सालों से अपने अभिनय की कला बिखेर रहा है. फिल्मी दुनिया की एक से बढ़कर एक और बड़े-बड़े कलाकारों के साथ काम करते हुए किये गये अभिनय से ना केवल देश की जनता बल्कि बालाघाटवासियांे के भी दिलो में बसे है.
फिल्म नगरी में अपने अभिनय के दम पर दशकों से जनता के दिलो में राज कर रहे फिल्मी कलाकार मुश्ताक खान 24 जनवरी को दोपहर बालाघाट पहुंचे और यहां जुनेजा परिवार से मुलाकात की. दोपहर लगभक एक बजे के दरमियान मुश्ताक, अपने परिचित जुनेजा परिवार में पहुंचे और यहां उन्होंने परिवार के सदस्यों से मुलाकात की. इस दौरान घर आगमन पर उनका, जुनेजा परिवार के सदस्य सोना, गुड्डु, पिंका जुनेजा और परिचित प्रफुल्ल लिल्हारे, गोलु गहरवार, नितेश बैनर्जी एवं गौतम बैनर्जी ने स्नेहिल स्वागत किया. यहां कुछ देर रूकने के बाद फिल्म कलाकार मुश्ताक खान, महाराष्ट्र के भंडारा के लिए रवाना हो गये.
बताया जाता है कि बीते दिनों गोंदिया में आयोजित अलग-अलग क्षेत्रो में कार्यरत शख्सियतों का सम्मान करने के लिए आयोजकों ने उन्हें बतौर मुख्य अतिथि कार्यक्रम में गोंदिया आमंत्रित किया गया था. जहां कलाकार मुश्ताक खान पहुंचे थे. जहां से फिर वह वह निवास स्थान बैहर पहुंचे थे. जहां रूकने के बाद 24 जनवरी को व्हाया बालाघाट से भंडारा जाते समय कुछ समय के लिए वह जुनेजा परिवार में पहुंचे थे. यहां पहुंचे फिल्म कलाकार मुश्ताक खान ने जुनेजा परिवार के सभी सदस्यों से पारिवारिक माहौल में मुलाकात की. इस दौरान उन्होंने मीडिया से बालाघाट में कॉलेज के दौरान दोस्तो के साथ बिताये गये पलों और फिल्मी सफर की बातों को साझा किया.
कलाकार मुश्ताक खान ने बताया कि वर्ष 1973 से 1975 तक उन्होंने बालाघाट में रहकर कॉलेज में अध्ययन किया और 1975 में वह मायानगरी मंुबई चले गये. जहां फिर वह अभिनय की दुनिया में रच-बस गये. इस दौरान उन्होंने अपने दोस्तो में राजकुमार रायजादा, इंदर जैन, दिवंगत रामस्वरूप शुक्ला, नसीम खान और उनकी प्रतिभा को देखकर फिल्म नगरी जाने के लिए प्रेरित करने वाले महरूम प्रो. अली सर का भी जिक्र किया.
उन्होंने बताया कि विगत 45 वर्षो से वह फिल्मनगरी में है और उनका सफर अब तक काफी अच्छा रहा है. अब तक उन्होंने छोटी-बड़ी लगभग 350 फिल्मो, 23 सीरियल और कई ऐड में काम किया है. उन्होंने कहा कि हम कलाकारों के लिए जनता का अभिनय को लेकर मिलने वाला प्यार ही हमारे लिए बूस्टअप एनर्जी होती है. जिससे हमें और काम करने की ताकत मिलती है.
उन्होंने बताया महाविद्यालय से एमए प्रिवियस करने के बाद मायानगरी से एक नेशनल एकेडमी के फार्म को उन्होंने भरा था, जिसका कॉल आने के बाद वह वर्ष 1975 में मुंबई चले गये थे. तब से वह वहीं के होकर रह गये लेकिन आज भी बालाघाट और यहां रहने वाले अपनो लोगों को नहीं भुले है, इसलिए जब भी समय मिलता है, वे यहां आकर अपनो से मिलते है.