व्यंग्य: ठलुआ जमात

बालाघाट. समाज मे भांति-भांति के लोग होते है, उनमें से कुछ विशेष प्रकार के लोग होते है. जो एक किस्म से अघोषित इंस्पेक्टर होते है. जिनका प्रायः समाज देश और कभी-कभी परिवार के लिए भी कोई उल्लेखनीय योगदान नहीं होता, परन्तु इनकी एक खास बात होती है. ये हर जगह मीन-मेख निकालने को अपनी खूबी या होशियारी मानते है. अगर इन्हें किसी शादी का निमंत्रण मिल जाये तो ये सबसे पहले पहुंचने वालो में से एक होते है. वहां जाकर ये सारे इंतेजाम का जायजा लेते है और करीब करीब सारे उपलब्ध व्यंजनों का जायजा लेने के बाद मुंह बनाते हुए बताते है कि, बाकी सब तो ठीक है पर गुपचुप का पानी ज्यादा तीखा हो गया या रसगुल्ला नरम नही था. याने कुल मिलाकर सामने वाले कि सारी मेहनत पर ठप्पा लगाकर आना ही इनका एकमेव उद्देश्य है. इनका कार्यक्षेत्र बहुत विस्तृत होता है और ये हर क्षेत्र के परम अघोषित विद्वान होते है.

सारा देश कोरोना महामारी की चपेटे में है. शासन, प्रशासन,सामाजिक संस्थाये जीजान से स्थिति को काबू करने के प्रयास में लगे है, परंतु ये हमारे ‘‘ठलुआ श्री’’ लोग कभी शासन तो कभी प्रशासन की वाट लगाते रहते है, और सोशल मीडिया ने तो मानो इनकी बल्ले-बल्ले कर दी है. कभी ये आयुर्वेदाचार्य बनकर काढ़ा बनाने का फॉर्मूला तो कभी गोबर और गौमूत्र का गुणगान तो कभी पुलिस प्रशासन की सख्ती के खिलाफ, तो कभी नेताजी के साहब से मिलकर माल बनाने जैसे समाचारो को पूरी तन्मयता और लगन के साथ परोसते रहते है. कभी लिख देंगे कि सरकारी अस्पताल में भारी अव्यवस्था है, दवाई नही है, कोई पूछने वाला नही है, अस्पताल तो बूचड़खाना बन गया है. जब इनको लगा कि ये काम तो हो गया तो फिर प्राइवेट डॉक्टर पे लूटने का आरोप लगाने लगते हैं और प्रायः ये रीढ़विहीन प्राणी सामने पड़ने पर जोरदार नमस्कार भी कर लेते है. इनमे से अधिकतर गला बजाकर मुफ्त में काम निकालने की जुगत में ही रहते है. इनकी नजर में अच्छाई देखने वाला मीटर लगा ही नही हैं. अगर ईमानदारी से देखा जाये तो बीते एक साल में इस महामारी के दौरान इनका एक पैसे का भी योगदान नही निकलेंगा. अभी व्हाट्सएप पर एक मैसेज काफी चला की कोरोना मरीजों के अस्पतालों में किडनी एवं लिवर निकाल लिए जाते है. अरे सरस्वती के सौतेले पुत्रों अपने जिस परिजन के पास आप कोरोना के चलते जाना नहीं चाहते, जिस गली में कोरोना की मरीज का घर हो उस गली से आप गुजरना नही चाहते, मास्क पहनने से आपका दम घुटता है, कभी एक बार पीपीई कीट पहनकर 8 घंटे काम करकर देखो. डॉक्टर और सहयोगी स्टाफ दिन रात से काम में लगा रहता है. अब तक करीब 1000 डॉक्टर और उससे अधिक सहयोगी स्टाफ काल के गाल में समा गया है.

शासन एवं प्रशासन पिछले एक वर्ष से चैन की नींद नही सो पाया है. हम ऐसी बीमारी से निपट रहे हैं जिसकी अभी तक कोई अचूक दवा भी नही बन पाई हैं. जनसमान्य की अज्ञानता और लापरवाही के चलते मरीज गंभीर होने पर ही अस्पताल पहुंचता हैं. जब तक टीका नही बना तो सारे व्हाट्सएपिये टीके को लेकर गदर करते रहे और जब टीका आ गया तो टीके की खामियां निकालने में जुट गये. मुंह में गुटका दबाए थोड़ी सी सटकी और लगे ज्ञान पेलने. भाई मेरे कृप्या 5-6 दिन की लिए किसी हॉस्पिटल या कोविड सेन्टर में स्वयं सेवा ही कर आओ इससे या तो आपके ज्ञानचक्षु खुल जायेंगे या फिर हमें मुक्ति मिल जायेंगी.

व्यंग्यकार - डॉ सी. एस चतुरमोहता, बालाघाट


Web Title : SATIRE: THALUA JAMAAT

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