आदिवासियों ने अपनी मांगो को लेकर दिखाई ताकत, हजारों की संख्या में आदिवासियों ने मुख्यालय में किया प्रदर्शन, झामसिंह की जांच और आदिवासियों की मांगो को लेकर संवेदनशील नहीं सरकार-उइके

बालाघाट. सर्व आदिवासी समाज संगठन के बैनर तले 15 अक्टूबर को जिले के सभी ब्लाकों के अलावा प्रदेश के सिवनी, मंडला, छिंदवाड़ा, डिंडौरी महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ से पहुंचे हजारों आदिवासियो ने 6 सितंबर को कथित नक्सली मुठभेड़ में मारे गये बेकसूर आदिवासी झामसिंह धुर्वे की मौत की न्यायिक जांच, परिवार के दो सदस्यों को नौकरी, एक करोड़ रूपये मुआवजा, एट्रोसिटी एक्ट,  वनविभाग, भू-राजस्व संहिता, गौण खनिज की समस्या सहित अन्य 14 सूत्रीय मांगो को लेकर बड़ा प्रदर्शन किया.  

नगर के उत्कृष्ट विद्यालय मैदान मंे आयोजित सभा के उपरांत आदिवासियों का काफिला, रैली के रूप में आंबेडकर चौक, काली पुतली चौक, जयस्तंभ चौक, विश्वेश्वरैया चौक होते हुए कलेक्ट्रेट की ओर रूख किया, जिन्हें पुराने आरटीओ कार्यालय के सामने बेरिकेट लगाकर प्रशासन और पुलिस ने रोक लिया. जहां से आदिवासी आंदोलन का नेतृत्व कर रहे प्रतिनिधिमंडल, कलेक्टर कार्यालय पहुंचा. जहां कलेक्ट्रेट सभाकक्ष में कलेक्टर दीपक आर्य, पुलिस अधीक्षक अभिषेक तिवारी, अपर कलेक्टर श्री नोबल की मौजूदगी में आदिवासी आंदोलन का प्रतिनिधित्व कर रहे प्रतिनिधिमंडल ने प्रशासन से अपनी मांगो को लेकर चर्चा की.

15 अक्टूबर को सर्व आदिवासी समाज द्वारा किये गये आंदोलन में बैहर विधायक संजयसिंह उईके, आदिवासी विकास परिषद जिलाध्यक्ष भुवनसिंह कोर्राम, आदिवासी सामाजिक संगठन राष्ट्रीय प्रवक्ता द्रोपकिशोर मड़ावी, मंशाराम मड़ावी, अशोक मसराम, हेमलाल धुर्वे, दिनेश धुर्वे, अनिल उईके, प्रेमसिंह मर्सकोले, भरतलाल मड़ावी, पीतमसिंह उईके, गणपतसिंह वल्के, परमानंद नागोसे, राजेन्द्र धुर्वे, बैरागसिंह टेकाम, भरतलाल मड़ावी, फूलसिंह परते, राधेलाल मर्सकोले,  मोतीराम उईके, आंदोलन समर्थक ओबीसी जिलाध्यक्ष सौरभ लोधी, महिला जिलाध्यक्ष सुश्री गीता हनवत, जिला आदिवासी गोवारी समाज जिलाध्यक्ष महेश सहारे, हरिंचद्र राऊत सहित बड़ी संख्या में जिले, अन्य राज्य और जिले से आये बड़ी संख्या में आदिवासी युवा, युवती, महिलायें, पुरूष और बुजुर्ग मौजूद थे.

झामसिंह मौत की जांच और आदिवासियों की समस्याओ को लेकर संवेदनशील नहीं सरकार

रैली से पूर्व सर्किट हाउस में आयोजित प्रेसवार्ता में बैहर विधायक संजयसिंह उईके, आदिवासी विकास परिषद जिलाध्यक्ष भुवनसिंह कोर्राम, आदिवासी सामाजिक संगठन राष्ट्रीय प्रवक्ता द्रोपकिशोर मड़ावी ने प्रेस से चर्चा की. इस दौरान प्रतिनिधियों ने कहा कि दशकों से आदिवासी अत्याचार, अन्याय और शोषण से पीड़ित है, जिनकी समस्याओं और जीवन स्तर को उठाने को लेकर सरकार संवेदनशील नहीं है. 6 सितंबर को छत्तीसगढ़ की बॉर्डर में घुसकर बेकसूर आदिवासी झामसिंह धुर्वे की कथित नक्सली मुठभेड़ मामले की न्यायिक जांच, परिवार के दो सदस्यों को नौकरी और एक करोड़ रूपये मुआवजा सहित 9 सूत्रीय मांगो को लेकर एक माह पूर्व किये गये आंदोलन के बाद भी शासन, प्रशासन ने कोई ध्यान नहीं दिया है. पीड़ित परिवार के आवेदन पर अब तक एफआईआर नहीं की गई. सीआईडी और मजिस्ट्रियल जांच में क्या हो रहा है, इसकी हमें कोई जानकारी नहीं है. वनविभाग क्षेत्र को आरक्षित करने के लिए कांटेदार फेसिंग लगाकर आदिवासियों के निस्तार को रोकने का काम किया जा रहा है. सालों से नक्सलियों के नाम पर आदिवासियों को प्रताड़ित कर उन पर झूठे मुकदमे लादे जा रहे है. आदिवासियों को उनके अधिकारों से वंचित करने का षडयंत्र रचा जा रहा है. जिसको लेकर अब आदिवासी संगठन जाग उठा है और वह अपने हक और अधिकार के लिए अपनी लड़ाई लड़ने सड़क पर उतरा है. यदि अब हमारी मांग पूरी नहीं होती है तो आदिवासी आंदोलन किसी भी हद तक जा सकता है, निवेदन, आवेदन के बाद अब दे-दनादन की मंशा से उग्र आंदोलन किया जायेगा, जिसके घातक परिणाम सरकार को भुगतने होंगे.  

पुलिस पर लगाया फर्जीवाड़ा का आरोप

आदिवासी सामाजिक संगठन राष्ट्रीय प्रवक्ता द्रोपकिशोर मड़ावी ने बालाघाट पुलिस पर फर्जीवाड़ा करने का गंभीर आरोप लगाया है. उन्होंने कहा कि विगत 27 सितंबर को सामाजिक प्रतिनिधिमंडल और मृतक झामसिंह के परिजन आये थे लेकिन उसकी पत्नी लगनीबाई नहीं आई थी. उस दिन जो आवेदन पुलिस द्वारा बनाया गया है, उसमें झामसिंह की पत्नी के भी हस्ताक्षर दिखाये जा रहे है, जो फर्जी दस्तखत का गंभीर मामला है. यही नहीं मुआवजा फार्म भी जो दिया गया है, वह भी गलत है. जिससे साफ है कि पुलिस ऐसा करके स्वयं को झामसिंह की मौत से बचाने का प्रयास कर रही है.

छत्तीसगढ़ की सरकार ने जांच कर परिजनों को 5 लाख रूपये मुआवजा और पुत्र को दी नौकरी

छत्तीसगढ़ से आंदोलन में शामिल होने आये प्रभाती मरकाम ने बताया कि एक माह बीत जाने के बाद भी अब तक प्रदेश सरकार द्वारा कराई जा रही सीआईडी जांच और प्रशासन द्वारा कराई जा रही मजिस्ट्रियल जांच पूरी नहीं हो सकी है. जिससे पता चलता है कि प्रदेश की सरकार और जिला प्रशासन आदिवासी की मौत को लेकर कितना गंभीर है. जबकि इसके विपरित छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा न केवल इस मामले की जांच पूरी कर ली गई. बल्कि परिवार को अब तक लगभग 5 लाख रूपये की सहायता राशि और परिवार के पुत्र को वनविभाग में नौकरी भी दी है. जबकि छत्तीसगढ़ सरकार का इससे कोई सरोकार नहीं है और मध्यप्रदेश पुलिस ने सीमा में घुसकर बेकसूर आदिवासी को गोली मारी है.


Web Title : THE TRIBALS SHOWED STRENGTH IN THEIR DEMANDS, THOUSANDS OF TRIBALS DEMONSTRATED AT THE HEADQUARTERS, JHAMSINGHS INQUIRY AND NOT SENSITIVE TO THE DEMANDS OF THE TRIBALS, THE GOVERNMENT UIKEY