नहीं रहे लावारिस लाशों को सदगति देनेवाले

निरसा : माँ भवतारिणी मंदिर के पुजारी कमलेन्दु भट्टाचार्य उर्फ़ मणि भट्ट का देहावसान बुधवार की सुबह हो गया.

लावारिश शवों को सदगति देने वाले, खुदिया नदी घाट स्थित शमसान स्थान को रमणीक स्थान बना देने वाले तथा माँ भवतारिणी मंदिर के पुजारी कमलेन्दु भट्टाचार्य उर्फ़ मणि भट्ट के निधन की खबर से निरसा में शोक की लहर है.

उनकी अंतिम यात्रा में निरसा के विधायक अरूप चटर्जी, पूर्व मंत्री अपर्णा सेनगुप्ता, भाजपा नेता गणेश मिश्रा, जिप सदस्य दुर्गा दास सहित सैकड़ों गण्यमान लोगों ने हिस्सा लिया.

उनके शव को भालजुरिया स्थित खुदिया शमशान माँ भवतारिणी मंदिर परिसर में रख कर पूजा—पाठ के साथ अंतिम संस्कार किया गया.

उन्होंने अब तक लगभग एक हजार लावारिश शवों को सद्गति प्रदान की थी. उनकी चिता को सपन गोराई ने मुखाग्नि दी.

 

कौन थे मोनी बाबा

मालूम होकि मणि भट्टाचार्य असम के थे. वे लगभग 50 वर्ष पूर्व निरसा आए थे.

वे पूर्व में निरसा काँटा स्थित गेरेज में काम करते थे.

बाद में कोयला का कारोबार शुरू किया. लेकिन मन नहीं लगा.

वे बचपन से ही माँ काली के पुजारी थे. लगभग 30 वर्ष पूर्व भालजुरिया रोड स्थित खुदिया नदी शमशान घाट पर स्थापित माँ काली की पूजा करने लगे.

धीरे-धीरे उन्होंने अपने कार्य व व्यवहार से लोगों को उक्त स्थल का सोंन्दयीकरण करने के लिए प्रेरित किया.

उनके प्रयास से शमशान घाट आज रमणीक स्थान बन गया है.

उन्होंने माँ का भवतारिणी का भब्य मंदिर बनवाया. शमशान घाट की चहारदीवारी बनवायी. सभी जगह प्रकाश की व्यवस्था करवाई.

पहले लोग श्मशान घाट में लोग दिन में भी जाने से डरते थे. आज यहां रात्रि में भी लोगों का जमावड़ा लगा रहता है.

उनके प्रयास से माँ भवतारिणी का प्रतिवर्ष वार्षिकोत्सव मनाया जाने लगा. इस वर्ष 22 नवंबर को मंदिर का वार्षिकोत्सव संपन्न हुआ.

मणि भट्टाचार्य चार भाई व तीन बहनों में सबसे छोटे थे.

उन्होंने अपना जीवन माँ काली को समर्पित कर समाज सेवा में जुट गए. शादी नहीं की. उनके चारों भाई व एक बहन की पूर्व में ही मौत हो चुकी है.

इनकी एक बहन असम में व एक बहन लन्दन में रहती है. वे निरसा में सपन गोराई के आवास में रहते थे.

सपन गोराई ही उनके लिए भोजन व सारी व्यवस्था करते रहे. वे बीते कुछ दिनों से कैंसर से पीड़ित थे.

उनका इलाज भेलोर से चल रहा था. वे अपना इलाज करा कर 5 दिसंबर को ही निरसा लौटे थे.

मंगलवार की रात्रि अचानक उनकी तबीयत बिगड़ी तो स्थानीय निजी अस्पताल में भर्ती करवाया गया.

वहां बुधवार सुबह उनका निधन हो गया.

 

वे कहा करते थे

मनुष्यों को हमेशा याद रखना चाहिए कि उनकी अंतिम मंजिल शमशान घाट ही है.

इसलिए शमशान घाट से डरे नहीं बल्कि उनसे प्रेम करे.

मणि भट्ट की अनुपस्थिति में गणेश साव व संजय पाण्डेय माँ भवतारिणी मंदिर का पूजा—पाठ व अन्य कार्य संपन्न करवाते थे.

मणि भट्ट के निधन के बाद तत्काल वे दोनों ही मंदिर के पूजा—पाठ व अन्य कार्यों की देख—रेख कर रहे हैं.

Web Title : MONI DA DIED AT NIRSA