अंधेरी नगरी में दिप तो कोई जलाओ.
कब तक खामोश बैठोगे अब तो आवाज उठाओ.
भ्रस्टाचार का दलदल होता जा रहा है गहरा.
आतंक का हम सब पर छा गया है पहरा.
कब होगा सवेरा. .
आंखों पर है नींद की चादर.
सचाई ना देखें हम.
सवेरे की चाहत रखते हैं.
पर खुद नीदं में है सोये हम.
गलती करनेवालों को सजा तो अब देना होगा.
दहाड़ ऐसी शेर के जैसी पर्वत भी झुक जाएगा.
बुलंद इरादे देख हमारे आकाश भी शीश झुकाएगा.
तब होगा सवेरा. .
अमन कुमार सिंह