नीतीश के महागठबंधन छोड़ने से कांग्रेस-RJD-लेफ्ट में लोकसभा सीट बांटना आसान, निकालना मुश्किल

बिहार में 17 महीने महागठबंधन सरकार चलाकर एक ही विधानसभा में तीसरी बार मुख्यमंत्री और दूसरी बार एनडीए सरकार के सीएम बने नीतीश कुमार और उनकी पार्टी जेडीयू के निकलने से महागठबंधन में लोकसभा सीटों का बंटवारा तो आसान हो गया लेकिन कांग्रेस, आरजेडी या लेफ्ट के लिए एक-एक सीट निकालना मुश्किल हो गया है. महागठबंधन छोड़ने से पहले जेडीयू बिहार की 40 में 17 लोकसभा सीटों पर दावा कर रही थी जितनी उसने 2019 में बीजेपी के साथ रहते हुए एनडीए गठबंधन के तहत लड़ी थी. जेडीयू इसमें जीती हुई 16 सिटिंग सांसदों की सीटों पर कोई बात भी नहीं करना चाहती थी. कांग्रेस और लेफ्ट मांग तो ज्यादा रही थीं लेकिन दोनों को क्रमशः कम से कम 8-10 और 4-6 सीट चाहिए था. बची हुई 24 सीटों में आरजेडी, कांग्रेस और लेफ्ट की बात नहीं बन पा रही थी.

नीतीश के एनडीए में जाने से अब वहां सीट बंटवारा की बातचीत जटिल होती दिख रही है जहां पहले से ही चिराग पासवान और पशुपति पारस की अगुवाई वाली लोजपा के दो धड़े 2019 की 6 सीटों के लिए लड़ रहे हैं. उनके ऊपर से उपेंद्र कुशवाहा की रालोजद और जीतनराम मांझी की हम भी बीजेपी के साथ हो चुकी है जो 2019 में महागठबंधन के साथ लड़े थे.

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बिहार के राजनीतिक खेल में अब बस मुकेश सहनी की वीआईपी बची है जो अभी इधर-उधर के बीच में फंसी है जो 2019 में आरजेडी-कांग्रेस के साथ थी. एनडीए में सीट तो चाहे जैसे भी बंटे लेकिन पिछले लोकसभा चुनाव के हिसाब से उनका वोट शेयर 50 परसेंट पार कर चुका है इसलिए हार-जीत के तराजू पर भाजपा और उनके सहयोगियों का पलड़ा भारी रहने वाला है.

2019 के लोकसभा चुनाव में एनडीए में बीजेपी 17, जेडीयू 17 और लोजपा 6 सीट लड़ी और तीनों मिलकर 39 सीट जीती. जेडीयू किशनगंज में कांग्रेस से हार गई. महागठबंधन में आरजेडी 19, कांग्रेस 9, उपेंद्र कुशवाहा की रालोसपा 5, मांझी की हम 3 और मुकेश सहनी की वीआईपी 3 सीट लड़ी थी. आरजेडी ने एक सीट पर माले को समर्थन दिया था और बदले में माले ने आरजेडी को एक सीट पर समर्थन दिया था. माले 4 सीट, एसयूसीआई 8, सीपीआई 2, सीपीएम 1 और फारवर्ड ब्लॉक 4 सीट लड़ी थी.

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2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए में बीजपी, जेडीयू, हम और वीआईपी रही. लोजपा अलग लड़ी और ज्यादातर उन सीटों पर कैंडिडेट उतारा जहां बीजेपी नहीं लड़ रही थी. जेडीयू को भारी नुकसान हुआ और वो 43 सीट पर सिमट गई. महागठबंधन में लेफ्ट पार्टियां आ गई. आरजेडी, कांग्रेस, माले, सीपीआई और सीपीएम ने जोर लगाया लेकिन चुनाव नहीं जीत सकी.

वोट शेयर के हिसाब से देखें तो 2019 के लोकसभा चुनाव में एनडीए के पास 53 परसेंट वोट रहा. कुशवाहा और मांझी का वोट शेयर इसमें नहीं है जो महागठबंधन के साथ लड़े थे.  आरजेडी और कांग्रेस 23 परसेंट तक ही पहुंच सके. महागठबंधन 30 परसेंट पर सिमट गया. 2020 के विधानसभा चुनाव के वोट शेयर में एनडीए 37 परसेंट के ऊपर गई. लोजपा को 6 परसेंट से कुछ कम वोट मिले. महागठबंधन को 37 फीसदी के ऊपर वोट मिला लेकिन सीट 110 ही मिली. कुशवाहा तीसरे मोर्चे में थे और उनकी पार्टी को 2 परसेंट से कुछ कम वोट मिला.

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एनडीए में इस बार कुशवाहा और मांझी भी हैं. चुनाव लोकसभा का है और यादवों के गढ़ मधेपुरा के यादव भी यह कहते रहे हैं कि लोकसभा में नरेंद्र मोदी और विधानसभा में तेजस्वी यादव. पिछले दिसंबर में बीजेपी ने मध्य प्रदेश में मोहन यादव को सीएम बनाकर बिहार और यूपी के यादवों के मन में और जगह हथियाने की कोशिश की है. ऐसे में महागठबंधन में बची रह गईं कांग्रेस, आरजेडी और तीनों लेफ्ट पार्टियों के पास 2020 के विधानसभा चुनाव के हिसाब से 37 परसेंट और 2019 के लोकसभा चुनाव के हिसाब से 30 परसेंट वोट है. एनडीए के पास 2019 के 53 परसेंट वोट में कुशवाहा और मांझी का इजाफा हुआ है. लोकसभा चुनाव है तो वोट मोदी बनाम पड़ेगा, यह भी तय है.

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मध्य प्रदेश, राजस्थान व छत्तीसगढ़ का चुनाव जीतने और अयोध्या के भव्य राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद मोदी की लोकप्रियता और बढ़ी है. लालू यादव और तेजस्वी यादव के वोटर भी लोकसभा में अलग तरह से वोट करते हैं ये पहले भी साफ हो चुका है. नीतीश के निकलने के बाद आरजेडी और कांग्रेस चाहें जितनी सीटें लड़ें और जितनी सीटें लेफ्ट के लिए छोड़ें, वोट-गणित से 40 में 4 सीट निकालना भी विपक्ष के लिए मुश्किल होगा.

नीतीश की एनडीए में वापसी से बीजेपी की ईबीसी वोट पर मजबूत पकड़- एक्सपर्ट

पटना यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफेसर और राजनीतिक विश्लेषक प्रो. एनके चौधरी कहते हैं- नीतीश की वापसी से बिहार के खेल में बीजेपी की वापसी हो गई है और इसके ज्यादा सीट जीतने की संभावना उज्जवल हो गई है. इसके केंद्र में है हाल का जातीय सर्वे जिसके अनुसार राज्य में 36 परसेंट अति पिछड़ा (ईबीसी) और 27 परसेंट अन्य पिछड़ा (ओबीसी) हैं. 2005 से ही अति पिछड़ा पारंपरिक रूप से नीतीश के वोट बैंक हैं. यह वोट बीजेपी को 40 सीट जीतने की योजना में मदद करेगा.

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एएन सिन्हा समाज अध्ययन संस्थान के पूर्व निदेशक डीएम दिवाकर कहते हैं- राम मंदिर से पैदा उत्साह के बाद भी एनडीए कैंप नीतीश के बिना आश्वस्त नहीं था. पीएम नरेंद्र मोदी ने कोई चांस नहीं लिया. नीतीश के आने से बीजेपी को ईबीसी का समर्थन मिलने में मदद मिलेगी. दिवाकर कहते हैं कि बीजेपी जब नीतीश से गठबंधन करती है तो वोट ट्रांसफर आसानी से होता है.

Web Title : WITH NITISH LEAVING THE ALLIANCE, IT IS EASY TO DIVIDE LOK SABHA SEATS IN CONGRESS RJD LEFT, DIFFICULT TO REMOVE

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