नासा का कैप्सूल ओरियन चंद्रमा के करीब पहुंच गया. 50 साल पहले अपोलो मिशन के बाद यह पहली बार है, जब नासा का कोई कैप्सूल चांद पर गया है. 401 करोड़ डॉलर की लागत वाले ओरियन की उड़ान पिछले बुधवार को शुरू हुई थी. वहां इसने अपना काम शुरू कर दिया है. नासा की भविष्य की योजनाओं के मद्देनजर इस कैप्सूल की कामयाबी खासी महत्वपूर्ण है.
धरती से 3,70,000 किलोमीटर दूर ओरियन से ह्यूस्टन में बैठे उड़ान नियंत्रकों का संपर्क आधा घंटे के लिए कट गया था. इसके कारण उन्हें पता नहीं चला कि महत्वपूर्ण ‘इंजन फायरिंग’ कितनी ठीक रही. कैप्सूल चंद्रमा के पीछे से सामने आया तो इसमें लगे कैमरों ने धरती की तस्वीर भेजी. इसमें कालेपन से घिरा एक छोटा नीला गोला दिख रहा है. मिशन कंट्रोल कमेंटेटर सांड्रा जोन्स ने कहा, हमारा नीला बिंदु और आठ अरब निवासी अब इसमें दिखाई दे रहे हैं.
नासा ने कहा, कैप्सूल 8,000 किलोमीटर प्रतिघंटा से ज्यादा गति से ठीक तरह चल रहा था, जब इससे दोबारा रेडियो संपर्क हुआ. आधा घंटे से भी कम समय में वह ट्रेंक्वालिटी बेस पहुंच गया, जहां 20 जुलाई 1969 को नील आर्मस्ट्रांग और बज अल्ड्रिन उतरे थे. सब कुछ ठीक रहा तो इसे सही कक्षा में रखने के लिए शुक्रवार को एक और ‘इंजन फायरिंग’ की जाएगी.
चंद्रमा के करीब बिताएगा एक हफ्ता
धरती पर लौटने से पहले कैप्सूल चंद्रमा की कक्षा में करीब एक हफ्ता बिताएगा. इसे 11 दिसंबर को प्रशांत महासागर में गिराने की योजना है. ओरियन में कोई लैंडर नहीं है और इसका चांद से कोई स्पर्श भी नहीं होगा. इस मिशन के सफल होने पर नासा 2024 में चांद के करीब अंतरिक्ष यात्रियों को भेजने पर काम करेगा. इसके बाद नासा 2025 में एक यान चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास उतारने का प्रयास करेगा.
चांद पर 2030 तक बनेगी मानव बस्ती
अमेरिकी अतिरिक्ष एजेंसी नासा के वरिष्ठ अधिकारी और ओरियन लूनर स्पेसक्राफ्ट प्रोग्राम के प्रमुख होवॉर्ड हू ने कहा है कि मनुष्य 2030 से पहले चांद पर सक्रिय हो जाएगा. इसके तहत यहां उनके रहने की जगहें होंगी और उनके काम को साथ देने के लिए रोवर्स होंगे.