क्या पूर्व प्रधानमंत्री और पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के अध्यक्ष इमरान खान अब खुद अपने पांव पर कुल्हाड़ी मार रहे हैँ? अपनी ही पार्टी की दो प्रांतीय सरकारों को गिराने और सभी प्रांतीय असेंबलियों से पीटीआई सदस्यों से इस्तीफा दिलवाने के उनके फैसले के बाद सियासी हलकों में ये सवाल उठा है. विश्लेषकों के मुताबिक इन दोनों प्रांतों की सरकारें पीटीआई की ताकत का एक बड़ा जरिया रही हैं. उनकी वजह से पंजाब और खैबर पख्तूनवा प्रांत पीटीआई नेताओं और कार्यकर्ताओं के लिए अपेक्षाकृत एक सुरक्षित जगह बने रहे हैं.
पीटीआई के नेतृत्व ने सोमवार को पंजाब और खैबर पख्तूनवा की असेंबलियों के भंग कराने के फैसले को मंजूरी दे दी. इसका एलान पार्टी के नेता फव्वाद चौधरी ने किया. इमरान खान ने जल्द आम चुनाव की अपनी मांग पर जोर डालने के लिए फैसला किया है कि उनकी पार्टी सभी असेंबलियों से अलग हो जाएगी. बीते शनिवार को पीटीआई के लॉन्ग मार्च को खत्म करने का एलान करने के साथ ही उन्होंने कहा था- ‘हमने भ्रष्ट सिस्टम से खुद को अलग करने और सभी असेंबलियों से इस्तीफा देने का निर्णय लिया है. ’
फव्वाद चौधरी ने बताया कि पार्टी नेतृत्व के फैसले के मुताबिक पंजाब असेंबली की बैठक इस शुक्रवार और खैबर पख्तूनवा असेंबली की बैठक शनिवार को होगी. उसमें सदन को भंग करने के प्रस्ताव पारित किए जाएंगे. इस बीच सोमवार को सिंध प्रांत में प्रांतीय असेंबली के पीटीआई के सभी 26 सदस्यों ने अपना इस्तीफा विधायक दल नेता खुर्रम शेर जमां सौंप दिया. खुर्रम ने इसकी पुष्टि करते हुए कहा कि वे जल्द ही इन इस्तीफों को मंजूरी के लिए असेंबली के सामने रख देंगे.
पंजाब प्रांत के मुख्यमंत्री परवेज इलाही ने रविवार को कहा था कि उनकी सरकार इमरान खान के निर्देश का पालन करेगी. सोमवार को असेंबलियों को भंग कराने के निर्णय पर पीटीआई नेतृत्व की मुहर के बाद खैबर पख्तूनवा के मुख्यमंत्री महमूद खान ने कहा कि वे मंगलवार को इलाही से मुलाकात कर असेंबलियों को भंग कराने की प्रक्रिया पर विचार-विमर्श करेंगे.
पीटीआई पंजाब और खैबर पख्तूनवा के अलावा कथित आजाद कश्मीर और गिलगिट-बालटिस्तान में भी सत्ता में है. बाकी दो क्षेत्रों के बारे पार्टी ने क्या फैसला किया है, इस बारे में अभी सूचना नहीं मिली है. पीटीआई समर्थकों ने असेंबलियों से इस्तीफे के फैसले को इमरान खान का ‘मास्टर स्ट्रोक’ बताया है. लेकिन विश्लेषकों का कहना है कि इससे जल्द चुनाव का रास्ता साफ होने की संभावना नहीं है. उलटे पीटीआई के हाथ से सत्ता के केंद्र निकल जाएंगे, जिनसे उसे ताकत मिलती थी.
शहबाज शरीफ सरकार कह चुकी है कि समय से पहले आम चुनाव नहीं कराए जाएंगे. नेशनल असेंबली का कार्यकाल अगले वर्ष अक्तूबर तक है. मीडिया टिप्पणियों में कहा गया है कि लॉन्ग मार्च के जरिए सरकार को तुरंत चुनाव के लिए मजबूर कराने के अपने इरादे को कामयाब ना होता देख इमरान खान ने ये नया दांव चला है.
शनिवार को खान ने कहा था कि अगर लाखों लोग इस्लामाबाद पहुंच जाते, तो पाकिस्तान में श्रीलंका जैसी हालत बन जाती. अगर दंगे भड़कते, तो फिर हालात किसी के हाथ में नहीं रहते. खान ने कहा था- ‘मैंने देश में अफरातफरी मचाने वाले कदम से बचने की कोशिश की है. ’ लेकिन आलोचकों ने कहा है कि नए सेनाध्यक्ष की नियुक्ति के बाद बदले हालात के कारण इमरान खान ने अपना चेहरा बचाने का बहाना ढूंढा है. नए सेनाध्यक्ष असीम मुनीर के साथ इमरान खान का छत्तीस का आंकड़ा बताया जाता है.