सोशल मीडिया है एक खुला मंच जहाँ हर कोई रख सकता है अपने विचार

आज कल सोशल मीडिया का महत्व लगातार बढता जा रहा है,यहाँ तक कि इलेक्ट्रोनिक और प्रिंट मीडिया भी इसके प्रभाव को स्वीकारने लगे हैं. कई बार तो सोशल मीडिया पर वाइरल हुई पोस्ट्स और वीडिओ के आधार पर मीडिया की मुख्य ख़बरें बनने लगी हैं. यही कारण है कि विभिन्न राजनीतिक,सामाजिक,धार्मिक संगठनों,सरकारों,नेताओं आदि ने अपने व्यक्तिगत खातों,पेज या ग्रुप के आधार पर सोशल मीडिया में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रखी है. कई लोग सोशल मीडिया को जनमत तैयार करने का एक उपक्रम भी मान रहे हैं. शुरूआत में हर नयी चीज व कार्य से सकारात्मक उम्मीदें की जाती हैं और समय के साथ ही यह पता चल पता है कि किसी भी कार्य,योजना आदि के परिणाम कितने सकारात्मक रहे. पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा जाता है और सोशल मीडिया भी सही मायने में पत्रकारिता का ही एक ऐसा हिस्सा है जहाँ व्यक्ति स्वयं ही लेखक,सम्पादक,प्रकाशक,विज्ञापनकर्ता व वितरक है. यहाँ उसे अपने किसी लेख,कविता,व्यंग,कार्टून,पेंटिंग या समाचार को प्रकाशित कराने मीडिया हाउसों के चक्कर नहीं लगाने पड़ते,न ही किसी पत्रकार या सम्पादक आदि की सेवा-सुश्रूषा,चाटुकारिता या ख़बरें प्रकाशित करने के लिए कोई सिफारिश कराने की जरूरत पड़ती. सही मायनों में देखा जाए तो यह एक आम से ख़ास व्यक्ति के लिए अपने विचारों को सुगमता व अपनी सुविधानुसार प्रकट करने के लिए एक खुला मंच है जहाँ हम घर बैठे किसी व्यक्ति,सरकार,संस्था,राजनीतिक दल आदि की आलोचना,प्रशंसा या समालोचना कर सकते हैं. सरकारों आदि की कार्य योजनाओं का अपनी समझ के अनुसार समर्थन या विरोध कर सकते हैं और नए सुझाव भी दे सकते हैं. ऐसा कर हम समाज व देश के सर्वांगीण विकास में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका भी निभा सकते हैं.

लेकिन प्रश्न यह है कि क्या सोशल मीडिया में ऐसा ही कुछ हो रहा है या वास्तव में सोशल मीडिया से किसी सार्थक परिवर्तन की अपेक्षा की जा सकती है ? मोटे तौर पर तो इसका जवाब सकारात्मक ही होगा और होना भी चाहिये क्योंकि कोई भी नकारात्मक उत्तर स्वीकार नहीं करना चाहता भले ही उसकी अपनी भूमिका कितनी भी नकारात्मक क्यों न हो. जहां तक सोशल मीडिया के असर की बात है कई बार किन्हीं घटनाओं आदि  की अत्यधिक आलोचना के कारण सरका र या प्रशासनिक संस्थाओं पर काफी दबाव पड़ता है तथा सरकार को अपंजी नीति तक बदलनी पड़ जाती है. कई बार सोशल मीडिया में डाली गयी गलत पोस्ट,छेड़-छाड़ कर डाले हुए वीडियो आदि से समाज के विभिन्न समुदायों के बीच तनाव भी उत्पन्न हो जाता है. लेकिन अगर सोशल मीडिया के वर्तमान रूप पर वृहद दृष्टि डाली जाये तो पूरा मीडिया विभिन्न विचारधाराओं के समर्थक व विरोधी व्यक्तियों के विभिन्न खेमों में बंटा हुआ नजर आता है,विशेषकर राजनीतिक विचारधाराओं व नेताओं के समर्थक या विरोधियों के रूप में. जिस प्रकार से बाहरी दुनिया में राजनीतिक नेता एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाते हैं,मीडिया चैनलों पर होने वाली गरमागरम बहसों के दौरान विभिन्न दलों और विचारधाराओं के समर्थक एक दूसरे से भिड़ते नजर आते हैं वैसा ही हाल यहाँ  भी देखने को मिलता है. बस फर्क इतना है कि यहाँ शारीरिक हाथापाई व एक दूसरे पर अच्छे-बुरे शब्दों से किये जा रहे तीखे प्रहारों को प्रत्यक्ष देखा-सुना नहीं जा सकता लेकिन गाली गलौज, भद्दे,अपमानजनक व अन्य तरह के अपशब्दों का प्रयोग  ठीक उसी तरह देखा जा सकता है. चंद अँगुलियों पर गिने जा सकने वाले तटस्थ रूप से अपने विचार प्रकट करने वाले व्यक्तियों को छोड़ दिया जाय तो अमूमन हर व्यक्ति अपनी विचारधारा से इतर विचारधारा के प्रति पूर्वाग्रह से ग्रसित नजर आता है. अगर आपके विचार दूसरे की विचारधारा से मेल नहीं खाते तो तत्काल आपको उसका विरोधी या किसी विचारधारा विशेष का भक्त या दलाल साबित कर दिया जाएगा और आपकी पोस्ट पर बिना कुछ सोचे समझे निंदनीय अपशब्दों का प्रयोग किया जा सकता है. कई बार तो अश्लील गालियाँ तक पढ़ने को मिल जाती हैं. यद्यपि यह आवश्यक व संभव भी नहीं है कि हर व्यक्ति हर किसी के सभी विचारों से सहमत हो लेकिन अगर असहमति व्यक्त करना हो तो शालीन व मर्यादित शब्दों में व्यक्त की जा सकती है. हर किसी के हर विचार पर अपनी प्रतिक्रया व्यक्त करना जरूरी भी नहीं है.

सोशल मीडिया आगे आने वाले समय में क्या रूप धारण करेगा यह तो आने वाला समय ही बतायेगा, लेकिन इसके वर्तमान स्वरूप में इसके द्वारा व्यवस्था परिवर्तन की दिशा में किसी रचनात्मक परिणाम की उम्मीद करना बेमानी होगा,उलटे इसके द्वारा आपसी द्वेष, उत्तेजना व एक दूसरे के प्रति असहिष्णुता का वातावरण निर्मित करने में नकारात्मक योगदान अवश्य हो रहा है.

Web Title : SOCIAL MEDIA IS AN OPEN PLATFORM WHERE EVERYONE CAN PUT THEIR VIEWS