बिहार में 75 प्रतिशत आरक्षण: किस जाति समूह का कितना कोटा; पास हो गया तो भी कोर्ट से कैसे बचेगा?

बिहार में जातीय गणना की रिपोर्ट और उसमें सभी जातियों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति के डेटा से लैस नीतीश कुमार की सरकार ने जाति आधारित आरक्षण को 65 प्रतिशत तक बढ़ाने का प्रस्ताव पास कर दिया है. कैबिनेट की 7 नवंबर की मीटिंग में महागठबंधन सरकार ने आरक्षण का दायरा बढ़ाकर 75 परसेंट करने का प्रस्ताव पास कर दिया है जिसमें आर्थिक कमजोर तबके को मिल रहा 10 परसेंट आरक्षण भी शामिल है.

भारतीय जनता पार्टी के हिन्दुत्व के नारे की काट में मंडल की राजनीति के दूसरे दौर के सूत्रपात के तौर पर दिख रहे इस कदम का अभी विधायी और कानूनी बाधाओं को पार करना बाकी है. सबसे बड़ा सवाल है कि अगर राजनीतिक दबाव में केंद्र सरकार का साथ मिल भी जाए तो क्या 50 फीसदी आरक्षण सीमा के आधार पर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में नीतीश सरकार का यह फैसला टिक पाएगा?

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मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अध्यक्षता में मंगलवार को कैबिनेट की बैठक में आरक्षण का दायरा बढ़ाने के प्रस्ताव पर मुहर लगी. इसके लिए कैबिनेट ने बिहार आरक्षण बिल 2023 पर मुहर लगा दी. विधानमंडल के दोनों सदनों में 9 नवंबर को इस पर मुहर लग सकती है.  नीतीश कैबिनेट से पास आरक्षण विधेयक में जाति समूहों के कोटा की तस्वीर कुछ इस तरह होगी. इसमें पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए 18 फीसदी, अति पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) के लिए 25 फीसदी, एससी के लिए 20 फीसदी, एसटी के लिए 2 फीसदी आरक्षण का प्रावधान किया गया है. कैबिनेट ने इसके अलावा सतत जीवकोपार्जन योजना की राशि बढ़ाने को भी मंजूरी दी है. इसके तहत सहायता राशि एक लाख से बढ़ाकर दो लाख करने का प्रस्ताव है.

बिहार में आरक्षण दायरा बढ़ाने के विधेयक पर आगे क्या होगा?

कैबिनेट से पास विधेयक को नीतीश सरकार पहले विधान मंडल में पेश करके वहां से पारित कराएगी. दोनों सदन इस समय शीत सत्र के लिए चालू हैं और 10 नवंबर को आहूत सत्र का आखिरी दिन है. संभावना है कि सरकार 9 नवंबर को दोनों सदनों में विधेयक को पेश करके उस पर बहस के बाद उसी दिन या अगले दिन इसे पारित करा सकती है. इसके बाद विधेयक राज्यपाल की मंजूरी के लिए जाएगा.

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राज्यपाल विधेयक को मंजूरी देने से पहले कानूनी सलाह मांग सकते हैं. अगर गर्वनर ऐसा करते हैं तो केंद्र सरकार की भूमिका शुरू हो जाएगी. राज्यपाल अगर इस मसले पर केंद्र के अटॉर्नी जनरल या सॉलिसिटर जनरल से राय मांगते हैं तो विधेयक पर केंद्र सरकार का रुख भी साफ हो जाएगा. हालांकि बिहार में मुख्य विपक्षी दल भाजपा ने सरकार के विधेयक का समर्थन करने की घोषणा की है.

क्या कोर्ट से बचाने के लिए बिहार के आरक्षण को संविधान की नौवीं अनुसूची में डालेगा केंद्र?

सबसे ज्यादा संभावना इस बात की है कि नीतीश सरकार विधानसभा और विधान परिषद से आरक्षण दायरा बढ़ाने का प्रस्ताव पारित करने के बाद केंद्र सरकार से इसे राष्ट्रपति की मंजूरी दिलाने और संविधान की नौवीं अनुसूची में डालने की अपील कर सकती है. इसी तरह का रास्ता अपनाने की वजह से तमिलनाडु सरकार का 69 परसेंट आरक्षण अब तक लागू है जबकि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट उसके बाद कई राज्यों में जाट, मराठा जैसे आरक्षण को 50 फीसदी आरक्षण सीमा से बाहर होने के कारण रद्द कर चुका है.

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बिहार के नए आरक्षण प्रावधानों को कोर्ट में चुनौती से बचाने के लिए उसे संविधान संशोधन के जरिए नौवीं अनुसूची में डालना जरूरी होगा. यह पूरी तरह से केंद्र सरकार पर निर्भर है. केंद्र में बीजेपी की सरकार है जिसने बिहार में इस कदम को समर्थन दिया है. अगले साल लोकसभा चुनाव है. बीजेपी सरकार पर दबाव तो होगा लेकिन अगर वो किसी वजह से ऐसा नहीं करती है तो बिहार में आरक्षण का दायरा बढ़ाने का मुद्दा चुनावी हथियार बन सकता है.

केंद्र सरकार का साथ मिलने के बाद भी क्या कोर्ट बिहार के नए आरक्षण को रद्द कर सकता है?

केंद्र सरकार अगर बिहार के बढ़े हुए आरक्षण प्रावधान को संविधान संशोधन के जरिए संविधान की नौवीं अनुसूची में डाल देती है तो भी इसके रद्द होने का खतरा रहेगा. सुप्रीम कोर्ट तमिलनाडु के आरक्षण समेत कई मामलों में ये साफ कह चुका है कि किसी भी कानून को नौवीं अनुसूची में डालना न्यायिक समीक्षा से परे नहीं है. नौवीं अनुसूची को पहले संविधान संशोधन के जरिए 1951 में जोड़ा गया था जिसके तहत 13 कानून को न्यायिक समीक्षा से सुरक्षित किया गया. तमिलनाडु आरक्षण कानून को 1994 में 76वें संविधान संशोधन के द्वारा नौवीं अनुसूची में डाला गया था.  आज ऐसे कानूनों की संख्या 284 हो चुकी हैं जिन्हें कोर्ट-कचहरी से बचाने के लिए नौवीं अनुसूची में डाला गया है.

Web Title : 75 PER CENT RESERVATION IN BIHAR: HOW MUCH QUOTA FOR WHICH CASTE GROUP; EVEN IF IT IS PASSED, HOW WILL HE ESCAPE FROM THE COURT?

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