झारखंड के कोल्हान में वन विभाग बांटेगा पलाश, ग्रामीण तैयार करेंगे रंग; हर्बल होली की मचेगी धूम

इसी महीने रंगों का त्योहार मनाया जाएगा. होली की तैयारियां हर ओर दिखने लगी हैं. रंगों में रसायनों की मिलावट लेकर हर साल संस्थाएं लोगों को जागरूक करती हैं और प्राकृतिक रूप से होली मनाने की अपील करती हैं. ऐसे में प्राकृतिक संसाधनों से संपूर्ण कोल्हान प्रमंडल के लोगों ने पलाश के फूलों से बने रंगों से होली खेलेंगे. कोल्हान में बहुतायत की संख्या में पलाश के फूल होते हैं. डीएफओ अभिषेक कुमार के अनुसार, पलाश के सूखे फूलों को जमा कर ग्रामीणों के बीच वितरित करने का निर्देश सभी रेंजरों को दिया गया है, ताकि लोग प्राकृतिक रंग तैयार कर उससे होली खेल सकें.

कोल्हान के ग्रामीण इलाकों के लोग पलाश के फूलों से हर्बल रंग तैयार करते हैं और उसी से होली खेलते हैं. वन विभाग भी इसमें सहयोग करता है. दलमा पहाड़ और जंगल इन दिनों पलाश के फूलों से लदे पड़े हैं. ग्रामीणों ने अभी से पलाश के फूलों को सुखाने का काम शुरू कर दिया है, ताकि होली तक रंग-गुलाल तैयार हो जाए. सरायकेला प्रखंड के चांडिल, चौका, पूर्वी सिंहभूम के घाटशिला, पटमदा आदि प्रखंड के गांवों में इन दिनों घरों का आंगन पलाश के फूलों से भरा है.

धूप में फूलों का सुखाने का काम हो रहा है. वन विभाग भी पलाश के इन फूलों को ग्रामीणों के बीच वितरित करेगा, ताकि उससे हर्बल रंग तैयार किया जा सके. इसके लिए सभी रेंजर को वन प्रमंडल की ओर निर्देश दिया गया है कि जंगल में पलाश के गिरे फूलों को एकत्र करें और ग्रामीणों के बीच वितरित कर दें. पलाश के फूलों से तैयार रंगों के इस्तेमाल का कोई साइड इफेक्ट नहीं होता. साथ ही रंग का प्रभाव कपड़े पर काफी गहरा होता है. दलमा की तराई में बसे गांव के लोग पलाश के फूलों से प्राकृतिक रंग बनाते हैं. खासकर आदिवासी समाज में प्राकृतिक रंगों से ही होली खेली जाती है. इसे लगाने के बाद त्वचा में किसी तरह का नुकसान नहीं होता. पलाश के फूल में कई तरह के औषधीय गुण भी पाए जाते हैं. यह भी मान्यता है कि इसके उपयोग से चिकन पॉक्स नहीं होता है.

फूलों से ऐसे तैयार होता है रंग
पलाश के फूलों से रंग तैयार करना काफी आसान है. सूखे फूल से रंग तैयार होते हैं. अगर जंगल से ताजा फूल भी लाया जाता है तो उसे धूप में रखकर पहले सुखाया जाता है. पूरी तरह सूख जाने के बाद उसे पानी में डालकर दो दिन तक छोड़ दिया जाता है. दो दिन में पानी पूरी तरह से पीले रंग का होता जाता है. इस रंगीन पानी को बोतलों में रखकर उससे होली खेली जाती है. इसके अलावा पलाश के फूल को सिलवट में पीसकर भी रंग तैयार किया जाता है. कुछ लोग फूल को पानी में उबालकर भी उससे रंग बनाते हैं.  

Web Title : IN JHARKHANDS KOLHAN, THE FOREST DEPARTMENT WILL DISTRIBUTE PALASH, VILLAGERS WILL PREPARE PAINT; HERBAL HOLI WILL BE CELEBRATED

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