झारखंड में साफ हो रहा लेफ्ट का सूपड़ा, तीन बार से नहीं खुला खाता; लगातार गिरते ग्राफ की 3 वजह

झारखंड बनने के बाद आम चुनावों में वाम दलों का वोटिंग ग्राफ लगातार गिर रहा है. साल 1999 के चुनाव में एकीकृत बिहार में वाम दल अभी के झारखंड की जिन सीटों पर लड़े वहां उनका वोटिंग शेयर 31. 3 फीसदी था, पर 2019 के चुनाव में घटकर यह 1. 5 फीसदी रह गया. यानी 20 सालों में इनका वोटिंग शेयर 29. 8 प्रतिशत तक गिर गया, जबकि साल 2000 से पहले वाम दल की सभी सहयोगी पार्टियां वोट शेयर में काफी मजबूत रहीं. आलम यह है कि पिछले तीन लोकसभा चुनाव में वाम दलों का खाता भी नहीं खुला है.

साफ हो रहा लेफ्ट का सूपड़ा?
धनबाद, जमशेदपुर, हजारीबाग जैसी संसदीय सीटों पर इन्होंने अपनी धाक जमा रखी. 2004, 2009, 2014 और 2019 के संसदीय चुनावों में वाम दल की सहयोगी पार्टियां 14 लोकसभा सीटों में से 12 पर चुनाव लड़ीं, लेकिन जीत केवल एक बार हजारीबाग में मिली. हजारीबाग और कोडरमा ऐसी सीटें हैं, जहां वाम दलों को मजबूत माना जाता है, वहां भी वोटिंग प्रतिशत काफी गिर गया है.

तीन बार से नहीं खुला खाता
2004 के लोकसभा चुनाव में वाम दलों ने 11 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे लेकिन जीत केवल हजारीबाग सीट पर मिली. लेकिन पिछले तीन चुनाव से यानी 2009, 2014 और 2019 में वाम दलों का खाता भी नहीं खुला. इस दौरान वोट शेयर लगातार गिरता रहा.

गिरते ग्राफ की 3 बड़ी वजह
सीपीआई (एम) के राज्य सचिव प्रकाश विप्लव ने वाम दलों के गिरते वोट शेयर तीन कारण बताए हैं. पहला, संसदीय चुनावों में वर्तमान में धर्म, जात-पात और स्थानीय पहचान की राजनीति हावी है. ऐसे में किसान, मजदूर आदि के सवालों को तरजीह नहीं मिलती है. वाम दल यहां पिछड़ जाते हैं. दूसरा, वामदलों में भी एकता की कमी आई है. अपने-अपने क्षेत्र में मिलकर जनमुद्दों को उठाते तो निश्चित रूप से सफलता मिलेगी. लेकिन वे अलग-अलग होकर चुनाव लड़ते रहे हैं. तीसरा, वामदलों का सबसे बड़ा कैडर बेस विश्वविद्यालय होता था. मजदूर, किसान के अलावा यूथ और स्टूडेंट मजबूत आधार होते थे. कॉलेजों में छात्र आंदोलनों कम होने और कमजोर पड़ने से वाम दलों को नुकसान पहुंचा.

Web Title : LEFTS SUPADA IS BEING CLEANED IN JHARKHAND, ACCOUNT NOT OPENED FOR THREE TIMES; 3 REASONS FOR THE CONTINUOUSLY FALLING GRAPH

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