झारखंड में लोकसभा चुनाव का माहौल तैयार

झारखंड की सियासत में इस बार सरना धर्म कोड, ओबीसी आरक्षण और 1932 खतियान आधारित स्थानीयता नीति बड़ा चुनावी मुद्दा बनता दिख रहा है. खास तौर पर इंडिया गठबंधन इस पर मुखर होगा. सत्तारूढ़ झामुमो की राजनीति इन मुद्दों पर सवार रही है, लेकिन सत्ता पर काबिज रहते हुए इन विषयों पर कदम बढ़ा चुका इंडिया गठबंधन आगामी लोकसभा चुनाव में भी इन मसलों को भुनाएगा. पक्ष और विपक्ष के साथ कई संगठन भी जुड़ चुके हैं, जो इन मुद्दों को ज्वलंत बना रहे हैं. दूसरी ओर भाजपा ने भी पलटवार की रणनीति बना ली है.

आदिवासी बहुल झारखंड में एकतरफ आदिवासी वोटरों में बिखराव को लेकर सियासत हो रही है तो दूसरी ओर इन्हें एकजुट रखने में कई संगठन जुट गए हैं. झारखंड में संताल, उरांव, हो, खड़िया, मुंडा जैसी बड़ी जनजातियों के अलावा कुल 32 जनजाति समूह के लोग निवास करते हैं. इनकी आबादी करीब 86. 45 लाख आंकी गई है. वोट प्रतिशत बढ़ाने और घटाने में इनकी भूमिका अहम है.

मुद्दे पर आमने-सामने
गोलबंदी की कोशिश

जनजातीय समूह गोलबंद रहें, इसके लिए कई तरह के अभियान, वैचारिक और बौद्धिक आंदोलन हो रहे हैं. उलगुलान संघ, झारखंड आंदोलनकारी सह जंगल बचाओ संगठन, आदिवासी एकता मंच, आदिवासी जनाधिकार मंच एकता को लेकर आंदोलनरत हैं. रैली कर रहे हैं. वहीं सरना धर्म गुरुओं की ओर से सरना धर्म कोड की मांग बुलंद करने के लिए महारैली का आयोजन भी देखा जा रहा है.

इधर, विरोध में सक्रियता बढ़ी

दूसरी ओर धर्मांतरित आदिवासियों को जनजातीय समुदाय के आरक्षण, विभिन्न तरह के सरकारी लाभ से वंचित करने की मांग भी तेजी से जोर पकड़ रही है. इसे लेकर विभिन्न शहरों में डिलिस्टिंग महारैली का आयोजन किया जा रहा है. जनजाति सुरक्षा मंच खास सक्रिय है. रैलियों में आदिवासी समुदाय की उपस्थिति से झारखंड की सियासत में तपिश बढ़ी है. झामुमो राष्ट्रपति से मिलकर आदिवासियों के हित में आदिवासी/सरना धर्म कोड पारित कराने का आग्रह करेंगे. पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने पीएम को पत्र लिख कर यह आग्रह किया था.

क्यों बना रहे मुद्दे
1. सरना कोड अधिकार के साथ संरक्षण का आश्वासन

झामुमो का कहना है कि परिस्थितियों के मद्देनजर हिन्दू, मुस्लिम, सिख, इसाई, जैन धर्मावलम्बियों से अलग सरना या प्रकृति पूजक आदिवासियों की पहचान के लिए और उनके संवैधानिक अधिकारों के संरक्षण के लिए अलग आदिवासी/सरना कोड बहुत जरूरी है. अगर यह कोड मिल जाता है तो इनकी जनसंख्या का स्पष्ट आकलन हो सकेगा. ऐसा होने के बाद आदिवासियों की भाषा, संस्कृति, इतिहास का संरक्षण एवं संवर्द्धन हो पाएगा तथा हमारे संवैधानिक अधिकारों की रक्षा की जा सकेगी. 1951 की जनगणना के कॉलम में इनके लिए अलग कोड की व्यवस्था थी, लेकिन कतिपय कारणों से बाद के दशकों में यह व्यवस्था समाप्त कर दी गई.

2. 1932 खतियान आदिवासी-मूलवासी की अस्मिता से जोड़ा

सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा के महासचिव विनोद पांडेय का कहना है कि 1932 

Web Title : LOK SABHA ELECTION ATMOSPHERE READY IN JHARKHAND

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