आज से मॉनसून सत्र की शुरुआत हुई है. 5 जुलाई को वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण पहली बार मोदी सरकार 2. 0 के लिए बजट पेश करेंगी. बजट से पहले आर्थिक मोर्च पर जितनी भी रिपोर्ट आई हैं, वह नकारात्मक हैं. बेरोजगारी की समस्या चरम पर है, निवेश घट गया है, विकास दर में गिरावट आई है, बैंक के खजाने खाली हो रहे हैं, एनपिए का दबाव बढ़ा है.
मॉनसून अब तक कमजोर है, महंगाई में भी बढ़ोतरी दर्ज की गई है. अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए बैंकों को नकद की जरूरत है. सरकार आरबीआई से लगातार सरप्लस रिजर्व जारी करने की मांग कर रही है. बैंकों का खजाना खाली नहीं हो, इसलिए लगातार रेपो रेट में कटौती की गई है.
जानकारी के मुताबिक, बजट से पहले वित्त मंत्रालय सरकारी बैंकों के पूंजी आधार का मूल्यांकन कर रहा है और उन्हें नियम के तहत न्यूनतम पूंजी की शर्त को पूरा करने में मदद के लिए चालू वित्त वर्ष के आम बजट में 30,000 करोड़ रुपये उपलब्ध करा सकता है. बजट में वृद्धि को तेज करने की चुनौती है. इसमें बैंकिंग क्षेत्र का महत्वपूर्ण योगदान होगा.
बैंकों को मजबूत करने की दिशा में आरबीआई की तरफ से तरह-तरह के कदम उठाये गए हैं. छोटे-छोटे बैंकों के मर्जर की प्रक्रिया तेज की गई है. सूत्रों के मुताबिक, अगर सरकार बैंक ऑफ बड़ौदा की तरह कुछ अन्य बैंकों के मर्जर पर भी विचार करती है तो उसके लिए भी अतिरिक्त पूंजी की आवश्यकता होगी. बता दें, जब बैंक ऑफ बड़ौदा में विजया और देना बैंक का मर्जर किया गया था, उस समय सरकार ने 5,042 करोड़ रुपये की पूंजी नये बैंक में डाली थी. सरकार ने पिछले वित्त वर्ष में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को 1,06,000 करोड़ रुपये की पूंजी उपलब्ध कराई थी.