रतन टाटा बनाम मिस्त्री: क्यों खत्म नहीं हो रही है यह अदावत, जारी है जंग

नई दिल्ली : नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्राइब्यूनल (NCLAT) ने साइरस मिस्त्री को फिर से टाटा सन्स के चेयरमैन पद पर बहाल कर दिया है. यह रतन टाटा के लिए एक बड़ी शर्मिंदगी की बात है जो अपने सुनहरे करियर के अंतिम दौर में हैं. साइरस मिस्त्री और रतन टाटा की यह अदावत पिछले कई साल से चल रही है और इसकी जड़ें टाटा के कारोबारी विरासत की कई समस्याओं से जुड़ी हैं.

अक्टूबर 2016 में टाटा सन्स के बोर्ड से साइरस मिस्त्री को बाहर कराने में रतन टाटा की ही मुख्य भूमिका मानी जाती है. उन्होंने टाटा सन्स के बोर्ड में प्राइवेट इक्विटी इनवेस्टर अमित चंद्रा, उद्योगपति अजय पीरामल और वेणु श्रीनिवासन जैसे स्वतंत्र निदेशकों को शामिल किया और बोर्डरूम में तख्तापलट करते हुए मिस्त्री को किनारे लगा दिया. मिस्त्री को टाटा समूह की सभी कंपनियों के निदेशक पद से भी बाहर कर दिया गया.

गौरतलब है कि मिस्त्री परिवार के शापूरजी पालोनजी (SP) समूह की टाटा समूह में 18 फीसदी हिस्सेदारी थी, लेकिन मॉइनॉरिटी हिस्सा होने की वजह से वह कुछ नहीं कर पाए. उनका मुकाबला टाटा ट्रस्ट जैसे दिग्गज से था जिसकी टाटा सन्स में 66 फीसदी हिस्सेदारी थी.   टाटा सन्स असल में पूरे टाटा समूह की होल्डिंग कंपनी है.

लेकिन कंपनी से बाहर होने के बाद भी साइरस मिस्त्री पस्त नहीं हुए. उन्होंने हार नहीं मानी और उन्होंने बेहर चतुराई से इस लड़ाई को मेजॉरिटी शेयरहोल्डर बनाम मॉइनॉरिटी शेयरहोल्डर की लड़ाई में बदल दिया और टाटा ग्रुप को नेशनल कंपनी लॉ ट्राइब्यूनल (NCLT) में घसीट लिया. लेकिन उन्हें यहां कोई राहत नहीं मिली. जुलाई 2018 में उन्हें यहां हार का सामना करना पड़ा. इसके बाद वह इससे भी ऊंची अदालत नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्राइब्यूनल (NCLAT) की शरण में गए. हर चरण में साइरस ने अपने को पीड़ि‍त दिखाने की कोशि‍श की.  

बुधवार को NCLAT ने न केवल मिस्त्री को फिर से टाटा सन्स का चेयरमैन बनाने का आदेश दिया, बल्कि रतन टाटा और उनके करीबियों के खिलाफ कई टिप्पणि‍यां भी कीं.

अभी यह लड़ाई पूरी तरह से खत्म नहीं हुई है. साइरस मिस्त्री 18 जनवरी तक चेयरमैन नहीं बन पाएंगे, क्योंकि तब तक टाटा सन्स को सुप्रीम कोर्ट का शरण लेने का अधिकार है, लेकिन बाकी तीन कंपनियों के डायरेक्टर बनाने के आदेश को तत्काल लागू करना होगा.

साइरस मिस्त्री और टाटा के बीच की यह लड़ाई भारत के कॉरपोरेट बोर्डरूम की सबसे बदतर लड़ाइयों में से है. इससे कई तरह के सवाल खड़े हुए हैं जैसे टॉप एक्जीक्यूटिव्स को अचानक हटाने के प्रमोटर के अधि‍कार (साइरस के मामले में पहले तो कोई वजह नहीं बताई गई और बाद में नॉन-परफॉर्मेंस का आरोप लगाया गया) और रिटायर होने के बाद बड़ा कद हासिल कर चुके एग्जीक्यूटिव्स (जैसे रतन टाटा) का ग्रुप से फिर से जुड़ने के बाद उसके दिन-प्रतिदिन के कामकाज में दखल का कितना अधिकार है, इसके अलावा कॉरपोरेट गवर्नेंस और माइनॉरिटी बनाम मेजॉरिटी शेयरधारक के अधिकार से जुड़े कई सवाल भी खड़े हुए हैं. अब अगर टाटा समूह सुप्रीम कोर्ट में जाता है तो इन मसलों पर वहां फिर से चर्चा होगी.

इस लड़ाई में काफी कुछ दांव पर लगा है, क्योंकि आखिरकार मसला टाटा समूह पर नियंत्रण का है जिसकी आय करीब 7. 8 लाख करोड़ रुपये की है, जिसके तहत 29 लिस्टेड कंपनियां आती हैं और 160 देशों में फैले इसके कारोबार में 6. 60 लाख से ज्यादा कर्मचारी काम करते हैं.

मिस्त्री की जीत से उनके इस आरोपों को फिर से बल मिला है कि टाटा ग्रुप की कंपनियां विरासत संबंधी कई समस्याओं से जूझ रही हैं. उन्होंने कहा था कि उन्होंने कंपनी के बोर्ड और रतन टाटा के सामने कई बार इन मसलों को उठाया था और इनसे निपटने के लिए एक ढांचा बनाने की भी कोशिश की थी.

टाटा सन्स बोर्ड से हटाए जाने के तत्काल बाद मिस्त्री ने एक लेटर लिखकर टाटा स्टील और उसकी यूरोप ईकाई, इंडियन होटल्स, टाटा कैपिटल और टाटा मोटर्स के नैनो प्रोजेक्ट की समस्याओं के बारे में सवाल उठाए थे. मिस्त्री ने चेतावनी दी थी कि उन्हें विरासत में मुनाफा न कमा पाने वाले ये जो पांच कारोबार मिले थे, उनसे समूह के बहीखाते में 18 अरब डॉलर की कमी आ सकती है. मिस्त्री ने आरोप लगाए कि टाटा समूह के विदेश में अधि‍ग्रहण से कर्ज की मात्रा काफी बढ़ गई है. इसी तरह यूके और केन्या में टाटा केमिकल्स तथा टेलीकॉम कारोबार भी फिसड्डी साबित हुआ है.

टाटा का ब्रेन चाइल्ड माने जाने वाला नैनो प्रोजेक्ट भी कंपनी को काफी नुकसान पहुंचा रहा था. मिस्त्री ने यह आरोप भी लगाया कि रतन टाटा ने उन्हें एयर एशिया और सिंगापुर एयरलाइन्स के साथ पार्टनरशिप में एविएशन कारोबार में उतरने को मजबूर किया, जबकि इसमें फायदे की संभावना नहीं दिख रही थी.

हालांकि टाटा सन्स ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा था कि मिस्त्री को इन सब निर्णयों की पूरी जानकारी थी और वह टाटा सन्स से डायरेक्टर के रूप में 2011 से ही जुड़े थे. टाटा सन्स ने कहा कि चार साल तक पद पर रहने के बावजूद मिस्त्री कंपनी आखिर खुद उन समस्याओं को क्यों नहीं दूर कर पाए जिनका वे आरोप लगाते रहे हैं.

अब सबकी नजरें इस दिलचस्प लड़ाई पर हैं. क्या वह इस लड़ाई को अंतिम परि‍णति तक ले जाएंगे या अपनी प्रतिष्ठा वापस हासिल कर लेने के बाद अब कड़वाहट को दूर करते हुए कंपनी से दूर हो जाएंगे? हालांकि पिछले अनुभव को देखते हुए ऐसा लगता नहीं कि मिस्त्री इतनी आसानी से यह लड़ाई छोड़ने वाले हैं.


Web Title : RATAN TATA VS MISTRY: WHY ITS NOT GOING TO END, THIS CONTINUES TO RUST

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