अहंकार से जीवन में पाया भी सब खो देता है इंसान-प्रवर पूज्य प्रवीण ऋषि म.सा.

बालाघाट. बालाघाट की पावन धरा पर पधारे उपाध्याय प्रवर पूज्य प्रवीण ऋषि म. सा. द्वारा महावीर जन्म कल्याण महोत्सव के तहत महावीर गाथा के गुणगान में 29 मार्च की रात्रि भगवान महावीर के तीसरे जन्म की कथा में भगवान ऋषभदेव और मारीची के प्रसंग के बारे मंे बताया.  प्रवर पूज्य प्रवीण ऋषि म. सा. ने कहा कि जब मरीची को भरतदेव ने दादा भगवान ऋषभदेव के बारे में बताया तो उनसे मिलने की उत्सुकता में मरीची, भगवान ऋषभदेव के पास पहुंचा. जिन्हें देखकर उनमें डूबकर, मरीची उनका हो गया है. वह केवल प्रभु को देखता रहता, उसे लगने लगा कि उसे प्रभु मिल गये तो अब किसी की जरूरत नहीं है. मरीची की दीक्षा हो गई. जैसे ही मरीची ने दीक्षा ली, वैसे ही उसने प्रभु से सवाल पूछा कि आपके पास जो वैभव है, उसका राज क्या है, मुझे भी ऐसा ही बनना है. प्रभु ने मरीची के तरफ देखकर बताया कि इसके 20 रास्ते है. बढ़िया से बढ़िया तपस्या करो, ज्ञान साधना करो और कई मार्ग बताये लेकिन मरीची के गले वह रास्ते उतर नहीं रहे थे. फिर प्रभु ने बताया कि शत-प्रतिशत भक्ति कर ले तो मेरे जैसा हो जायेगा. भक्ति हो तो हनुमान जैसी, देश में प्रभु श्रीराम के मंदिर कम है और भक्त हनुमान के मंदिर बिना कोई गांव नहीं है. यही भक्ति का राज है, वह भक्त को भगवान से भी आगे पहंुचा देती है, वैसी ही मरीची ने समर्पण की भक्ति की. अहोभाव से वह प्रभु की भक्ति में लग गया. एक दिन प्रभु के साधना का मार्गदर्शन देते हएु कहा कि विकट परिस्थित जीवन में, मौत को गले लगा लेना, लेकिन साधना छोड़ देना. वह प्रभु की भक्ति तो करता लेकिन उनके पास जाने का हौंसला नहीं था. जो प्रभु के पास नहीं आते थे, वह उन्हें प्रभु के पास लाता था. मरीची लोगों से कहता कि मुझे साधु नहीं मुझे भक्ति करनी है. जिसने प्रभु से हजारों को जोड़ा, जो प्रभु से जोड़ता है, वह स्वयं प्रभु बन जाता है. एक दिन भरतदेव, ने प्रभु से सवाल पूछा इतने सब लोग है, जो आपकी आराधना कर रहे है, जो आप जैसे कब हो जायेंगे. सभी के साथ मरीची को भी उत्सुकता थी. भगवान ऋषभदेव मेरा ही नाम लेगे. यह मरीची ने सुन लिया और मरीची ने प्रभु से कहा कि भले ही यह भरतदेव का सवाल है पर मेरी जिंदगी का सवाल है. जीना है या नहीं जीना, यह आपके निर्णय पर तय होगा. जैसे आपने मुझे साधना दी है तो सिद्धी भी तुम्हें ही देनी है, तब प्रभु ने कहा कि ऐसा कोई नहीं धर्मसभा में जो मेरे जैसा तीर्थंकर हो जाये लेकिन  मरीची ना केवल तेरे जैसा चक्रवती होगा बल्कि वह मेरे जैसा तीर्थंकर होगा, जो तुम और मैं नहीं बन ना सके, वह, वह वासुदेव होगा. वहीं आने वाले तीर्थंकर होगा. जिसे सुनकर मरीची ने हर भाव में कृतज्ञता व्यक्त की, जो उसे प्रभु से वरदान मिला. पथ भटके मुझ जैसे राही को तीर्थंकर होने का वरदान किया है. जिसके लिए मरीची ने नमन किया. मरीची को वरदान मिला. जिसे मरीची को एक अहंकार का स्पर्श हो गया और मरीची अहंकार की मस्ती पर झूमने लगा, भाषा, नूर और भाव बदल गये. जिस तरह हम दूध को नमक से बचाते है, उसी तरह हमें अहंकार से बचना चाहिये, लेकिन मरीची को प्रभु के दिये गये जवाब से चक्रवती बनने, तीर्थंकर बनने, वासुदेव बनने और मुझ जैसा कोई नहीं है का अहंकार आ गया. आज इस धरती पर मुझ जैसा कोई नहीं है. यह अहंकार आ गया. पुण्डलिग गंधर्व ने मारीज के पास आये और बोले कि वरदान के पलो में क्यों अहंकार करता है. जो तुझे मिला प्रभु से प्रभु को समर्पण कर दो, क्यो बोझ बढ़़ाता है उतार बोझ को. जीवन में जो देव, गुरू, और मा-बाप के साथ अहंकार करता है, उसे कभी देव, गुरू और मां-बाप नहीं मिलते है. गुरूभक्ति सीखनी हो तो सिक्खो से सीखो, जिनके सामने यदि गुरूग्रंथ आ जाये तो उनकी गर्दन झुकी रहती है. अपने एक अनुभव को पूज्य प्रवीण ऋषि म. सा ने सभा से साझा करते हुए बताया कि सिक्खों की गुरू भक्ति का कोई सानी नहीं. एक अनुभव बताया सरदार, के गुरूभक्ति का. वही प्रभु मिलते है. यदि किसी ने अहंकार किया है, रास्ता मिलना मुश्किल हो जाता है. मरीची बीमार पड़ा, तो किसी ने पूछा नहीं. मरीची ने प्रभु की राह छोड़कर, अहंकार की राह पकड़ ली थी. मरीची कहता था कि जैसा धर्म प्रभु के पास है, वैसा धर्म मेरे पास है, ऐसा जो असत्य कहता है उसे चेले तो मिल जाते है लेकिन लेकिन प्रभु खो जाते है और मरीची के साथ भी ऐसा ही हुआ. कहां संतो के सानिध्य में उसने प्रभु को पाया, लेकिन प्रभु के कुल में आकर अहंकारी बन गया है. गलती को स्वीकार नहीं किया. अहंकार ने उसे खाई में गिरा दिया. जो व्यक्ति अहंकार करता है, वह उससे अपना पाया भी खो जाता है. योगी अरविंद कहते है कि साधना के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा अहंकार की है, अहंकार जहां आ गया, वहां सारी साधना स्वाहा हो जाती है. यदि हमें साधना को संभालना है तो अहंकार को त्यागना होगा. अहंकार ने हमेशा रूलाया है. दूसरों को भी और स्वयं को भी. इसलिए आज हम अहंकार को तिलाजंलि दे दे. तभी जाकर महावीर गाथा के सुनने का आनंद ले पायेंगे.  

मर्यादा में रहे प्रभु श्रीराम, मर्यादा पुरूषोत्तम बन गये

उपाध्याय प्रवर पूज्य प्रवीण ऋषि म. सा. ने रामनवमी पर संक्षिप्त प्रवचन देते हु कहा कि रामनवमी पर निकलने वाली शोभायात्रा मंे हम चले तो याद रखना कि आप भगवान पुषोत्तम की शोभायात्रा में चल रहे हो, इसलिए मर्यादा कभी मत छोड़ना, मर्यादा के साथ चलना. क्योंकि नेता और राम की शोभायात्रा में अंतर होना चाहिये. भगवान राम ने अपने जीवन में मर्यादा को आंच नहीं आने दी. उनका विश्वास और आस्था ही थी कि सब कुछ खोने के बाद भी उन्होंने कभी मर्यादा नहीं खोई, जिसे आज दुनिया को सीखने की जरूरत है. लेकिन  आज मर्यादा तोड़ने पर स्वयं को मर्द कहते है, प्रभु श्रीराम ने बताया कि मर्यादा में रहोंगे तो पुरूषोत्तम बनोंगे.  


Web Title : EVEN IF YOU LOSE EVERYTHING FOUND IN LIFE WITH EGO, HUMAN BEINGS ARE THE MOST POWERFUL SAGE.