बालाघाट. विगत कई वर्षो से बालाघाट शहर शासकीय तालाबों की बदहाली और अतिक्रमण को लेकर सुर्खियों में है. बालाघाट शहर के ऐसे शासकीय तालाबों जिनमे प्रमुख रूप से बालाघाट के ह्रदयतल में स्थित बेशकीमती शासकीय देवी तालाब और उपनगरी बूढी में स्थित मेहरा तालाब को अतिक्रमण और प्रदुषण से मुक्त कर उनके मूल स्वरूप में स्थापित किये जाने के संबंध में लंबी न्यायालयीन लड़ाई बालाघाट शहर के स्थानीय जागरूक नागरिकों ने लड़ी और अंत में विभिन्न न्यायालयों के साथ एनजीटी ने भी आदेश जारी करते कलेक्टर बालाघाट के साथ साथ मुख्य नगर पालिका अधिकारी नगरपालिका परिषद बालाघाट को निर्देश किया कि शासकीय देवी तालाब एवं मेहरा तालाब को अतिक्रमण और प्रदुषण से मुक्त कर उनके मूल स्वरूप में स्थापित करे किन्तु इन तालाबों में बालाघाट शहर के धन्ना सेठो और सत्तासीन भारतीय जनता पार्टी के पदाधिकारियों का अतिक्रमण है. जिनके सामने जिला प्रशासन और नगरपालिका परिषद बालाघाट खुद को बौना महसूस कर रही है और ऐसे अतिक्रमण को हटाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही है. जिससे आहट होकर याचिकाकर्ताओं को पुनः एनजीटी के शरण में जाना पड़ा है. ऐसी परिस्थितियों में एनजीटी को भी कड़ा कदम उठाना पड़ा और एनजीटी ने स्वयं के आदेशों की अवमानना के मामले अब अपने आदेशों के क्रियान्वयन के लिए जिला न्यायाधीश जिला न्यायालय बालाघाट को अवमानना प्रकरण स्थानांतरित किया है. जिससे शहर के नागरिकों को एक बार फिर उम्मीद जागी है कि जिला न्यायाधीश बालाघाट शहर के शासकीय तालाबों की दशा और दिशा सवारेंगे एवं ऐसे शासकीय तालाबों को उनके भविष्य के लिए संरक्षित करेंगे.
जिला न्यायाधीश को प्रकरण स्थानांतरित
एनजीटी द्वारा बूढी स्थित शासकीय मेहरा तालाब पर अतिक्रमण के संबंध में मूल आवेदन संख्या 01/2018 (सीजेड) में इस ट्रिब्यूनल द्वारा पारित आदेश दिनांक 24. 09. 2021 को निष्पादित करने के लिए एक निष्पादन आवेदन है राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम, 2010 की धारा 25 उप-धारा (2) में प्रावधान है कि उप-धारा (1) में किसी भी बात के होते हुए भी, ट्रिब्यूनल अपने द्वारा किए गए किसी भी आदेश या फैसला को स्थानीय क्षेत्राधिकार वाले सिविल कोर्ट को प्रेषित कर सकता है और ऐसा सिविल कोर्ट आदेश या फैसला को निष्पादित करेगा, जैसे कि यह उस अदालत द्वारा बनाई गई डिक्री हो.
सजा और जुर्माने का प्रावधान
राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम, 2010 की धारा 26 में दंड का प्रावधान है. जो कोई भी, इस अधिनियम के तहत ट्रिब्यूनल के किसी आदेश या निर्णय या निर्णय का पालन करने में विफल रहता है. उसे कारावास से दंडित किया जा सकता है. जिसे तीन साल तक बढ़ाया जा सकता है या जुर्माना जो दस करोड़ रुपये तक हो सकता है या दोनों के साथ और यदि विफलता या उल्लंघन जारी रहता है तो अतिरिक्त जुर्माना के साथ जो हर दिन पच्चीस हजार रुपये तक हो सकता है. जिसके दौरान ऐसी विफलता या उल्लंघन पहली ऐसी विफलता या उल्लंघन के लिए दोषी ठहराए जाने के बाद भी जारी रहता है बशर्ते कि यदि कोई कंपनी इस अधिनियम के तहत ट्रिब्यूनल के किसी आदेश या निर्णय का पालन करने में विफल रहती है तो ऐसी कंपनी जुर्माने से दंडनीय होगी जो पच्चीस करोड़ रुपये तक हो सकती है और यदि विफलता या उल्लंघन जारी रहता है तो अतिरिक्त जुर्माने के साथ जो प्रत्येक दिन के लिए एक लाख रुपये तक हो सकता है. जिसके दौरान ऐसी विफलता या उल्लंघन पहली ऐसी विफलता या उल्लंघन के लिए दोषी ठहराए जाने के बाद भी जारी रहता है दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) में किसी बात के होते हुए भी, इस अधिनियम के तहत प्रत्येक अपराध को उक्त संहिता के अर्थ में असंज्ञेय माना जाएगा.
याचिकाकर्ता को निर्देश
उपरोक्त प्रावधानों के मद्देनजर यह निष्पादन आवेदन बालाघाट पर निर्णय लेने के लिए क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र वाले जिला न्यायालय को स्थानांतरित किया जाता है. राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम 2010 की धारा 25(2) और धारा 26 में निहित प्रावधानों के मद्देनजर आवेदक को आवेदन की प्रति और सभी प्रासंगिक रिकॉर्ड जिला बालाघाट में सक्षम क्षेत्राधिकार न्यायालय या जिला न्यायाधीश के न्यायालय में प्रस्तुत करने का निर्देश दिया जाता है जो दिनांक 24. 09. 2021 के आदेश के निष्पादन के लिए सक्षम न्यायालय को निर्णय या स्थानांतरित कर सकता है.
जिला न्यायालय से उम्मीद
कलेक्टर बालाघाट और मुख्य नगरपालिका परिषद बालाघाट विभिन्न न्यायालयों से जारी आदेशों और प्रशासनिक निर्देशों के अनुरूप बालाघाट नगर के शासकीय तालाबों से जल निकायों और पर्यावरण के दुश्मनों से ऐसे तालाबों को बचाने में पूर्ण रूप से विफल रहते हुए अपने पदीय का निर्वहन करने में अक्षम रहे है. इन्हें ऐसे तालाबों की बदहाली से कोई मतलब नहीं है या ये भी सत्तासीन भूमाफियाओं के दबाव में आकर अपना फर्ज निभाना भूल चुके है. अब देखना होगा कि जिला न्यायाधीश बालाघाट द्वारा प्रकृति और जल संरक्षण के ऐसे ज्वलंत मुद्दे को कैसे निपटाते है क्योंकि बालाघाट नगर में स्थित तालाबों की बदहाली का मामला है तो स्थानीय मुद्दा होने के कारण स्वयं भी मौके का निरिक्षण कर तालाबों की संरक्षित कर सकते है.