जिले के शिक्षित दिव्यांगो के जीवन में एक तरफ कुंआ तो दूसरे तरफ खाई, शासन-प्रशासन की अनदेखी तोड़ रही दिव्यांगो का मनोबल

बालाघाट. दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 की धारा 8 दिव्यांगजनों के लिए समान संरक्षण और सुरक्षा की गारंटी देती है. भारतीय संविधान के नीति निर्देशक तत्व में अनुच्छेद 41 में दिव्यांगों की सहायता का प्रावधान है. इसके साथ अनुच्छेद 21 में गरिमामय जीवन का प्रावधान है, बावजूद इसके दिव्यांगजन, शासन-प्रशासन की अनदेखी से समाज की मुख्य धारा से अलग, जीवन जीने मजबूर है, जिले में दिव्यांगो के लिए पूरा एक प्रशासनिक अमला होने के बावजूद, दिव्यांग अपने हक और अधिकारों से वंचित है.

एक ओर कुदरत ने उनके साथ अन्याय किया है तो दूसरी ओर उनके जीवन में उन्हें न्याय नहीं मिल रहा है. दिव्यांग संगठनो के द्वारा एक बार नहीं बल्कि कई बार आंदोलन के माध्यम से शिक्षित दिव्यांगो को प्रशासनिक विभाग के अलग-अलग कार्यालयो में रखे जाने की मांग की गई और हर बार उन्हें केवल अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों ने आश्वासन देकर चलता कर दिया. आलम यह है कि अब शिक्षित दिव्यांग जाए तो कहां जाए. शासन और प्रशासन उनकी सुन नहीं रहा है और घर की हालत ऐसी नहीं है कि दिव्यांग, एक सम्मानजनक जीवन जी सके.  

बात करें जिला मुख्यालस से करीब 10 किमी दूर ग्राम भरवेली के हीरापुर निवासी मंगरू कंसरे की दो दिव्यांग  पुत्रियों के पिता के जाने के बाद मां ने किसी तरह अपनी बेटियों को शिक्षित तो किया लेकिन आज वह बुजुर्ग हालात में अपनी बेटियों को शिक्षित करने के बाद भी घर में बैठे देखकर तड़प उठती है, बनिस्मत यही स्थिति है कि शिक्षित दिव्यांग बेटियांे की है, जो मां की हालत में उनका सहारा नहीं बन पाने के कारण व्यथित है.  

जानकारी के अनुसार दिवंगत मंगरू कंसरे के द्विव्यांग बेटी राजकुमारी कंसरे ने एमए तक शिक्षा हासिल की है लेकिन उसकी दिव्यांगता की लाचारी के कारण, आज उसे यह पढ़ाई बोझ लग रही है. बकौल दिव्यांग राजकुमारी कंसरे की मानें तो वह कई दफा कलेक्टर के पास आवेदन कर चुकी है कि उन्हें रोजगार दिलाया जाए, लेकिन ना ही प्रदेश सरकार, द्विव्यांगो के लिए कोई पहल कर रही है और ना ही जिला स्तर पर कोई पहल की जा रहीं है, ताकि शिक्षित द्विव्यांगजनों को रोजगार मिल सके और वह अपना जीवन चला सके. द्विव्यांग बेटियों की बुजुर्ग मां जानकीबाई कंसरे बताती है कि किस तरह की तकलीफ से उसने बेटियों को पढ़ाया और उनका लालन-पालन किया लेकिन अब कोई करने वाला नहीं होने के कारण उन्हें परेशानी हो रही है. यदि जिला प्रशासन से शिक्षित बेटियों कोई रोजगार देता है तो निश्चित ही इसे परिवार की गाड़ी किस तरह चल सकती है.   

आलम यह है कि महिला हितैषी होने का दावा करने वाली भाजपा सरकार, एक ओर लाडली बहनों को एक हजार रूपए दे रही है लेकिन दिव्यांग लाडली बहनो को केवल 600 रूपये पेंशन दे रही है, वह भी उन्हें महिनों से मिलती है.  

द्विव्यांग राजकुमारी कंसरे ने बताया कि हमें मात्र 600 रूपये प्रतिमाह दोनों बहनों को पेंशन मिलती हैं, वह भी कभी-कभी तीन से चार माह में एक बार आती हैं. वहीं मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सरकार के द्वारा चुनाव के पहले लाड़ली बहना योजना अंतर्गत बहनों के खातें में रूपये डाले गये लेकिन हमें इनका कोई लाभ नहीं दिया हैं. राजकुमारी की मानें तो तकरीबन जिले में 21 हजार द्विव्यांग है जो सभी बेरोजगार है. पूर्व में कई बार रोजागर के लिए कलेक्टर कार्यालय के सामनें में जिले भर के द्वियांगजनों के साथ आंदोलन किया गया था, लेकिन केवल आश्वासन दिया गया था कि इस विषय पर सोचा जायेगा और रोजगार के साधन तलाशे जायेगें, लेकिन आज तक कोई भी पहल ना तो शासन स्तर पर की गई और  ना ही जिलास्तर पर. कलेक्टर को व्यथा बताने के बाद भी वह समस्या को अनसुना कर रहे है. जिससे लगता है कि शासन-प्रशासन दिव्यांगो को इंसान नहीं समझता है, हम बहने शिक्षित है, लेकिन हमारे पर ध्यान देने वाला कोई नहीं है, जिससे हमें अपने जीवन से तकलीफ होने लगी है, यदि हमें भी रोजगार मिलता तो निश्चित ही हम सम्मानपूर्वक जीवन जी पाते, लेकिन शासन, प्रशासन और विभाग, जिस तरह से जिले में दिव्यांगजनों के साथ कर रहा है, उससे लगता है कि उन्हें दिव्यांगजनों से कोई सरोकार नहीं है. हमारी मांग है कि हमारे भविष्य को देखते हुए शासन, प्रशासन हमें रोजगार के साधन उपलब्ध कराए और हमें भी सम्मानजनक जीवन जीने का अवसर प्रदान करे.  


Web Title : IN THE LIVES OF THE EDUCATED DISABLED OF THE DISTRICT, THERE IS A WELL ON ONE SIDE AND A DITCH ON THE OTHER SIDE, THE MORALE OF THE DISABLED IS BREAKING THE NEGLECT OF THE ADMINISTRATION