मैराथन आयोजकों ने पत्रकारों और धावक को समझाया समय का मोल, बुलावे के बाद भी कार्यक्रम में शामिल नहीं हो सके पत्रकार, बैगा ऑलंपिक से मैराथन तक का सफर

बालाघाट. वैसे तो राष्ट्रीय कान्हा उद्यान को किसी परिचय और पब्लिसिटी की आवश्यकता नहीं है, एशिया के इस बड़े राष्ट्रीय उद्यान में पर्यटकों की संख्या हमेशा इतनी रहती है कि पर्यटक, वेटिंग में रहते है, बावजूद इसके कान्हा टूरिज्म को बढ़ावा देने के नाम पर राष्ट्रीय कान्हा मैराथन के आयोजकों ने एक दिन के इस कार्यक्रम की एक महिने से तैयारी की और जमकर मीडिया में इसका प्रचार-प्रसार किया. जिसके प्रचार-प्रसार में पब्लिक रिलेशन ऑफिसर को जिला पंचायत के अधिकारी!, ने भी पीछे छोड़ दिया, लेकिन, जिस प्रचार-प्रसार के माध्यम से जिले, प्रदेश और नेशनल में यह खबर पहुंचती, उन्हीं पत्रकारों की अनदेखी, आयोजकों ने की. पहले तो एक मैसेज के माध्यम से छात्रावास में ठहराने की बात कहकर पत्रकारों का मैराथन में पहुंचने के उत्साह को कम करने का प्रयास किया गया और यदि पत्रकार साथियों को कई फोन कॉल के बाद यदि रूकने की थोड़ी अच्छी व्यवस्था मिली तो वह भी आयोजन स्थल से 30 किलोमीटर से दूर ठहराया गया. जो कुछ साथी प्रशासनिक इस अनूठी और प्रथम पहल को कवरेज देने पहुंचे, उन्हें भी समय  प्रबंधन के बहाने कवरेज करने से रोक दिया गया.

पत्रकारों को कवरेज नहीं करने देना, यह प्रशासन का अपना निर्णय हो सकता था लेकिन जिन धावकों के लिए यह मैराथन आयोजित की गई, उस मैराथन में सैकड़ो किलोमीटर का सफर तय करके मैराथन दौड़ने की इच्छा लेकर पहुंचे धावक को मैराथन में शामिल होने प्रवेश नहीं देना, क्या वाजिब है, इस सवाल का जवाब जिम्मेदार जनता देगी.  मैराथन के कवरेज के लिए पहुंचे पत्रकारों को आयोजन स्थल पर जाने से रोकने का मुद्दा दिनभर चर्चाओं में रहा. प्रशासन के इस फैसले का  मीडिया में जमकर विरोध देखा गया. कहा जाता है कि जिले में पहली बार हुई नेशनल लेवल कान्हा मैराथन में 4623 धावकों ने मैराथन में दौड़ने के लिए पंजीयन कराया था. जिसमें मैराथन को लेकर अव्यवस्था के कारण 

सागर से केवल मैराथन में शामिल होने पहुंचा 75 वर्षीय धावक, मैराथन में हिस्सा नहीं ले सका. मैराथन में व्यवस्थाओं की पोल एक 75 वर्षीय बुजुर्ग के साथ हुई आपबीती ने खोल दी. सागर जिले से पहुंचे 75 वर्षीय रतन सिंह मैराथन दौड़ में हिस्सा नहीं ले सके. उन्होंने बताया कि उनके पंजीयन में मैराथन में दौड़ का समय दर्ज नहीं था. इतना ही नहीं, उन्हें मैराथन के समय के बारे में भी कोई जानकारी नहीं दी गई. रतन सिंह ने दस किलोमीटर दौड़ में अपना पंजीयन कराया था, जिसके लिए वह लगभग 600 किलोमीटर का सफर तय कर कान्हा पहुंचे थे. इतना ही नहीं, धावक रतन सिंह को मैराथन के स्टार्टिंग पाइंट मुक्की गेट के पास भी जाने नहीं दिया गया. रतन सिंह को यह कहकर सुरक्षाकर्मियों एवं वालेंटियर्स ने रोक दिया कि वह समय पर नहीं पहुंचे हैं. प्रशासन की अव्यवस्था के कारण भले ही बुजुर्ग धावक मैराथन में शामिल नहीं हो सका, लेकिन इस उम्र में भी उनका सेहत को लेकर जज्बा काबिले तारीफ है. वहीं, दूसरी तरफ राष्ट्रीय स्तर के आयोजन को कवर करने पहुंचे जिलेभर से आए पत्रकारों को आयोजन के कवरेज से भी रोक दिया गया. मुख्यालय सहित परसवाड़ा, बैहर क्षेत्र से पहुंचे पत्रकारों को पुलिसकर्मियों व वालेंटियर्स ने शिव मंदिर तिराहे के पास रोक दिया. इससे पत्रकार आक्रोशित नजर आए, जिसको लेकर प्रशासन का कहना है कि पत्रकार देर से पहुंचे थे, इसलिए उन्हें वहां जाने से रोका गया था. जबकि पत्रकार हितेन्द्र चौहान की मानें तो एक तो बीते देररात में उन्हें कई फोनकॉल के बाद 35 किलोमीटर दूर का रिसोर्ट उपलब्ध कराया गया. जहां किसी तरह रात गुजरने के बाद वह प्रातः 6. 30 बजे मुक्की गेट पहुंच गए थे, बावजूद उन्हें देर से आने के कारण रोक दिया गया. जिससे हमारे, यहां पहुंचने का कोई औचित्य नहीं रहा. जिले में जिलाधीश की जिले में एक आयोजन की हमेशा ललक रही है, भले ही वह आयोजन परंपरा नहीं बन सके लेकिन तत्कालीन कलेक्टर के बाद वर्तमान कलेक्टर द्वारा आयोजन कराये जाने की परंपरा अनवरत रूप से निभाई जा रही है, जहां तत्कालीन कलेक्टर ने जिले मंे बैगा ऑलंपिक कर इसे जिले की पहचान और परंपरा बनाए जाने की बात कही थी, वहीं वर्तमान कलेक्टर बैगा ऑलंपिक से इतर मैराथन दौड़ का आयोजन कर इसे जिले की आयोजन परंपरा बनाए जाने की बात कह रहे है, लेकिन सवाल यह है कि बैगा ऑलंपिक की परंपरा जिलाधीश के बदलते ही खत्म हो गई तो क्या मैराथन आयोजन का भी ऐसा ही हाल नहीं होगा, यह एक बड़ा सवाल है.  


Web Title : MARATHON ORGANIZERS EXPLAIN THE VALUE OF TIME TO JOURNALISTS AND RUNNERS, JOURNALISTS COULD NOT ATTEND THE EVENT DESPITE THE CALL, THE JOURNEY FROM THE BAIGA OLYMPICS TO THE MARATHON