बालाघाट. कोरोना महामारी संकट के दौरान बालाघाट जिले में एक लाख 10 हजार से अधिक मजदूर एवं अन्य लोग देश के विभिन्न्ा राज्यों एवं शहरों से वापस आये है. बाहर से जिले में वापस आये लोगों की जांच कर कोरोना के संदिग्ध मरीजों की पहचान करने में राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (आरबीएसके) के पूरा अमला कठिन परिश्रम कर रहा है. आरबीएसके की महिला चिकित्सकों को ऐसे कठिन समय में अपने परिवार की जिम्मेदारियों के साथ जनसेवा के कर्त्तव्य का निर्वहन भी करना पड़ रहा है. आरबीएसके की महिला चिकित्सक सही मायनों में एक कोरोना योद्धा के रूप में मैदान में डटी हुई है और कोरोना संक्रमण के खतरे के बीच बाहर से आये लोगों की निरंतर जांच के साथ उनका फालोअप भी ले रही है.
तीन माह से परिवार से दूर है डॉ. बीना वरकड़े
परसवाड़ा विकासखंड की आरबीएसके मेडिकल आफिसर डॉ. बीना वरकड़े पिछले तीन माह से अपने परिवार से दूर रहकर कोरोना के संदिग्ध मरीजों की पहचान के लिए कार्य कर रही है. डॉ बीना का कहना है कि अपने परिवार से लंबे समय से दूर रहने के कारण मन व्यथित हो जाता है, लेकिन मेरे लिए अपने परिवार से भी बढकर मेरा कर्त्तव्य है. हर दिन सुबह बाहर से आये लोगों की जांच के लिए निकल जाते है. लोगों को समझाते है कि इस वैश्विक महामारी कोरोना का सामना हमें बड़े धैर्य से करना है. लोगों को मास्क लगाने एवं फिजिकल डिस्टेंशिंग का पालन करने एवं स्वच्छता पर विशेष ध्यान देने की सलाह देते है.
12 माह के बच्चे को घर पर छोड़ जाती हैं डॉ. नूतन टेंभरे
डॉ. नूतन टेंभरे आरबीएसके मेडिकल आफीसर बैहर विकासखंड में अपनी सेवायें दे रही है. उनके लिए यह मुश्किल एवं चुनौती भरा समय है. डॉ. नूतन को अपने 12 माह के बच्चे को छोडकर प्रतिदिन अपने कार्य पर जाना पड़ता है. डॉ. नूतन बताती है कि एक तरफ मेरा छोटा बच्चा है, वहीं दूसरे ओर मेरे बूढे़ सास ससुर है. जिनकी देखरेख भी मुझे ही करनी होती है. अपनी इन पारिवारिक जिम्मेदारियों के साथ मैं अपने कर्तव्य का पालन में जुटी हुई हूॅं. डॉ. नूतन द्वारा अपनी टीम के साथ बैहर विकासखंड में बाहर से आये 3020 व्यक्तियों का स्वास्थ्य परीक्षण किया गया है.
वृद्ध माता-पिता की जिम्मेदारी भी उठा रही है डॉ. तृप्ती पाठक
कोरोना महामारी संकट के इस दौर में डॉ. तृप्ति पाठक आरबीएसके मेडिकल आफीसर लालबर्रा को दोहरी जिम्मेदारी निभाना पड़ रहा है, लेकिन वे हिम्मत के साथ अपनी जिम्मेदारियों को निभा रही है. डॉ. तृप्ती पाठक ने बताया कि उनके द्वारा प्रतिदिन ग्रामीण क्षेत्रों में जाकर पायलन कर लौट रहे लोगों की स्क्रीनिंग कर इन्हें कोविड-19 से बचाव की जानकारी दी जा रही है. उनकी टीम द्वारा घर-घर जाकर जांच परीक्षण भी किया जा रहा है. जिसमें निरंतर हमें भी संक्रमण का खतरा बना रहता है फिर भी मैं हिम्मत नही हार रही हूं. घर पर मेरे वृद्ध माता-पिता है. जिनकी जिम्मेदारी भी मेरे पास ही है. ड्यूटी पर निकलने से पहले माता-पिता के लिए भोजन तैयार करना पड़ता है और उन्हें भोजन कराने के बाद ही ड्यूटी पर जाना होता है. डॉ तृप्ती अपनी इन दोनों जिम्मेदारियों को अच्छी तरह से निभा रही है और अपने माता-पिता की सेवा के साथ ही जन सेवा भी कर रही है.
डॉ. सविता भगत आरबीएसके मेडिकल आफीसर किरनापुर एवं डॉ. भारती ठाकरे आरबीएसके मेडिकल आफीसर बैहर की स्थिति भी ऐसी ही है. उन्हें भी एक महिला होने के नाते अपने घर-परिवार की जिम्मेदारी के साथ एक कोरोना योद्धा होने का कर्तव्य भी निभाना पड़ रहा है. डॉ. सविता भगत एवं डॉ. भारती ठाकरे अपनी टीम के साथ क्षेत्र में लगभग तीन हजार लोगों की स्वास्थ्य जांच कर चुकी है. यह भी हर दिन सुबह गांवों में बाहर से आये लोगों की जांच के लिए निकल जाती है और सर्दी-खांसी, बुखार के हर मरीज का फालोअप करती है.
आरबीएसके की महिला चिकित्सकों ने कोरोना महामारी के इस संकट में अपनी क्षमताओं का उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है और दिखाया है कि वे सही मायने में कोरोना योद्धा है. इन महिला चिकित्सकों का अथक परिश्रम प्रेरणा देने वाला है और अनुकरणीय है.