संसार में है अल्पकालिक सुख और चीरकालिक दुःख : सुरीश्वरजी महाराजा

धनबाद : जिसे मनुष्य संसार मानता है उसमें अल्पकालिक सुख और चीरकालिक दुःख है. भगवान तिर्थंकर ने भी यही कहा था. संसार में रहकर मनुष्य काम, लोभ, भोग, रोग में डूबा रहता है.

लेकिन साधना जीवन कष्टदायक है, दुःखदायक नहीं. जिसके जीवन में साधना नहीं, वह दुःखी है.

उक्त बातें आचार्य श्री विजय कीर्ति सुरेश्वरजी महाराजा ने आज अपने प्रवचन के प्रथम दिन कही.

श्री सुरेश्वरजी ने कहा कि जीवन में जितनी साधना अपनाएंगे, उतना सुख प्राप्त करेंगे.

सुख चाहने के लिए कम से कम सामग्री की चाहत रखनी चाहिए. दुःख के साधन त्याग कर मनुष्य सुखी बन सकते हैं.

कहा कि केवल बातों से नहीं, दृढ़-ईच्छाशक्ति के साथ संकल्प करें कि मुझे कुछ नहीं चाहिए. तभी सार्थक परिणाम प्राप्त होगा और मन को शांति मिलेगी.

श्री सुरेश्वरजी ने कहा कि हमें अपने आप को पहचानना है. आपको किस ओर जाना है, यह आप स्वयं ही निश्चय कर सकते हैं.

कहा कि समझदार व्यक्ति अपने जीवन का लक्ष्य तय कर लेता है.

दुनिया से विदाई लेने का समय कब आएगा, किसी को पता नहीं. लेकिन वह समय आएगा, यह निश्चित है.

यदि जीवन में साधना होगी तो देव गति को प्राप्त किया जा सकता है. संत और साधारण इंसान का जीवन एक ही है.

लेकिन संतों ने देव गति प्राप्त करने के लिए जीवन त्याग कर दिया. साधारण इंसान दुनिया में कायम है, संत कायम के लिए दुनिया के सुख से बाहर निकल गए.

श्री सुरेश्वरजी महाराजा ने कहा कि यदि धन से सुख प्राप्त होता, तो सभी धनाढ्य सुखी होते.

उन्होंने भगवान तिर्थंकर का उदाहरण देते हुए कहा कि उनके पास सारे संसारिक सुख-सुविधा थे, फिर भी उन्होंने उसका त्याग कर दिया और संत मार्ग पर चलकर देवता बन गए.

उन्होंने संसारिक होते हुए सुखी होने का गुरु मंत्र बताते हुए कहा कि अपेक्षा कम रखो, अपना काम स्वयं करो, जो भोजन मिले उसे सहर्ष ग्रहण करो, स्वाधीनता का जीवन जीने की शुरुआत करो.

उन्होंने बताया कि ये प्राथमिक कक्षा का ज्ञान भी मनुष्य को उच्च कोटी प्राप्त करने में सहायक होगा. कहा कि आत्मा में ही परमात्मा है.

साधना मार्ग से उस तक पहुंचना है. मार्ग संत बताएंगे. अमल में लाने का प्रयास आपको करना है.

श्री सुरेश्वरजी ने कहा कि शरीर अपना नहीं है. आत्मा अपनी है. शरीर का अस्तित्व मर्यादित है, आत्मा का नहीं.

कहा कि देव, गुरु और धर्म का उदय प्रचण्ड भक्ति से हुआ है. कौन सा धर्म सच्चा और कौन सा झूठा, बताने की शक्ति हममें नहीं है.

चूंकि यह हमें आसानी से मिल गया है, इसलिए हमें इसका मूल्य नहीं है.

कहा कि जन्म जन्म के उच्च कर्मों से हमें मानव जीवन मिला, जो दुलर्भ है.

इसे सार्थक बनाने की तैयारी करने का समय आ गया है.

श्री सुरेश्वरजी महाराजा 156 जैन मुनियों के संग सोमवार की सुबह झरिया से धनबाद पहुंचे.

धनसार में श्री धनबाद जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघ, श्री स्थानकवासी जैन संघ एवं दिगम्बर जैन समाज द्वारा सभी का गर्मजोशी से भावपूर्ण स्वागत किया गया.

वहां से एक विशाल शोभा यात्रा के रूप में सभी शास्त्रीनगर स्थित जैन मंदिर पहुंचे, जहां आचार्य श्री विजय कीर्ति सुरेश्वरजी महाराजा की गुरुवंदना की गई.

तत्पश्चात शास्त्रीनगर के श्री कच्छ गुर्जर क्षत्रिय समाज में प्रवचन हुआ. संध्या जैन मंदिर में 108 दिपक की महाआरती का आयोजन हुआ.

Web Title : JAIN SAINTS REACHED DHANBAD

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