राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने विचाराधीन कैदियों को न्याय सुलभ कराने की जरूरत को दोहराया. साथ ही अदालतों में लंबित मामलों में चिंता जताई. वे बुधवार को रांची में झारखंड हाईकोर्ट के नए भवन के उद्घाटन के बाद समारोह को संबोधित कर रहीं थीं. राष्ट्रपति ने कहा कि अदालतों पर अत्यधिक बोझ है, जो न्याय तक पहुंच को भी नुकसान पहुंचाता है. बड़ी संख्या में लोग वर्षों तक विचाराधीन कैदियों के रूप में जेलों में सड़ते हैं. जेलें खचाखच भरी हुई हैं, जिससे उनका जीवन और भी कठिन हो गया है. उन्होंने कहा कि समस्या के मूल कारण का समाधान किया जाना चाहिए. यह देखना अच्छा है कि इस मुद्दे पर बहस हो रही है और कानूनी बिरादरी के कुछ बेहतरीन जानकार इस मामले को समझ रहे हैं. उन्हें यह जानकर खुशी हुई कि न्याय प्रणाली को अधिक सुलभ और समावेशी बनाने के लिए विशेष रूप से महिलाओं के लिए कई कदम उठाए गए हैं. उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि हम सब मिलकर जल्द ही इसका समाधान निकाल लेंगे.
लोग केस जीत गए लेकिन वास्तव में नहीं मिला न्याय! राष्ट्रपति ने कहा कि वह एक छोटे से गांव से आती हैं. उन्होंने फैमिली काउंसलिंग सेंटर में सदस्य के रूप में काम किया है. इस दौरान वह न्याय पाने वाले परिवारों के बीच जाती थीं. तब उन्हें ऐसे कई मामले मिले जिसमें लोग केस तो जीत गए, लेकिन उन्हें न्याय वास्तव में नहीं मिला. राष्ट्रपति ने कहा कि ऐसे बहुत सारे लोग उनके पास आते रहे हैं. अब वेलोग नहीं पहुंच पाते, लेकिन ऐसे लोगों को वह मुख्य न्यायाधीश के पास भेजेंगी. उन्होंने सरल, सुलभ, सस्ते और त्वरित न्याय के लिए प्रक्रिया को आसान बनाने पर जोर दिया.
हाईकोर्ट के नए भवन का उद्घाटन एतिहासिक क्षणराष्ट्रपति ने कहा कि हाईकोर्ट के नए भवन का उद्घाटन एक ऐतिहासिक क्षण है. यह इमारत आधुनिक सुविधाओं और अत्याधुनिक भौतिक बुनियादी ढांचे के साथ प्रभावशाली है. पूरे परिसर को ऊर्जा संरक्षणको ध्यान में रख बनाया गया है. कई पेड़ों की मौजूदगी इसे हरा-भरा परिसर बनाता है. उन्होंने विश्वास जताया कि यह भवन अन्य सार्वजनिक और निजी संगठनों को समान प्रकृति की अपनी परियोजनाओं में पर्यावरण केंद्र में रखने के लिए प्रेरित करेगा.
अदालतो को दी गई है गलत को ठीक करने की शक्तिराष्ट्रपति ने कहा कि अदालत न्याय का मंदिर है. इस देश के लोग अदालतों को आस्था की नजर से देखते हैं और कानून की भाषा भी उस भावना को दर्शाती है, जब हम ‘प्रार्थना’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल करते हैं. लोगों ने खुद अदालतों को न्याय देने और गलत को ठीक करने की शक्ति दी है. उन्होंने कहा कि यह वास्तव में एक बहुत ही गंभीर जिम्मेदारी है. राष्ट्रपति ने कहा कि न्याय तक पहुंच के सवाल के कई पहलू हैं. लागत इनमें सबसे महत्वपूर्ण है. यह देखा गया है कि मुकदमेबाजी का खर्च अक्सर न्याय की खोज को कई नागरिकों की पहुंच से बाहर कर देता है. विभिन्न प्राधिकरणों ने निशुल्क कानूनी परामर्श प्रकोष्ठ खोलने सहित कई स्वागतयोग्य पहल की हैं.