ओपेक प्लस देशों की ओर से कच्चे तेल के उत्पादन में कटौती का फैसला, जानें भारत पर क्या असर पड़ेगा?

पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन (ओपीईसी) ने विकसित अर्थव्यवस्थाओं से कम मांग की आशंका के बीच कच्चे तेल के उत्पादन में 16 लाख बैरल प्रतिदिन की कटौती करने का फैसला किया है. इस फैसले से दीर्घ अवधि में भारत पर नकारात्मक असर पड़ सकता है. भारत अपनी 4. 9 मिलियन बैरल प्रतिदिन (mbpd) की जरूरतों का 85 प्रतिशत क्रूड ऑयल आयात करता है. क्रूड ऑयल के हर बैरल की कीमत में अगर 10 डॉलर का इजाफा होता है तो भारत का आयात बिल सालाना 15 अरब डॉलर तक बढ़ सकता है. जानकारों के अनुसार यह देश की जीडीपी का करीब 0. 51% प्रतिशत है.

जानकारों का तर्क- भारत पर नहीं पड़ेगा कच्चे तेल के उत्पादन में कटौती का असर 

भारतीय अधिकारियों का मानना है कि सउदी अरब और रूस समेत सभी ओपक प्लस देशों की ओर से पेट्रोलियम पदार्थों के उत्पादन में कटौती का देश पर कोई असर नहीं पड़ेगा. उनका तर्क है कि भारतीय रिफाइनरों को मौजूदा दरों पर ही कच्चे तेल की निर्बाध आपूर्ति के लिए पहले अी आश्वस्त कर दिया गया है. एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार वैश्विक कीमतों पर लगने के बाद कई रिपोर्ट में भारत की ओर से खरीदारी पैटर्न में बदलाव की बात कही गई है लेकिन मौजूदा हालत में भारतीय रिफाइनरों को पहले से जारी अनुकूल खरीद करार का लाभ मिलता रहेगा. 2018 के आंकड़ों के अनुसार 13 अहम तेल उत्पादक देशों के संगठन ओपेक जिनमें सऊदी अरब, ईरान, इराक और वेनेजुएला जैसे देश शामिल हैं कुल वैश्विक उत्पादन में करीब 44 फीसदी की हिस्सेदारी रखते हैं. वहीं पूरी दुनिया के तेल भंडारों में उनकी हिस्सेदारी 81. 5 फीसदी है.

भारत पर क्यों नहीं पड़ेगा असर?

भारत लगातार छह महीनों से सबसे अधिक कच्चा तेल रूस से आयात कर रहा है. लंदन की कॉमोडिटी डेटा एनालिस्ट वोर्टेक्सा के अनुसार भारत ने कच्चे तेल के अपने कुल आयात का 35 फीसदी रूस से ही हासिल किया है. भारत ने मार्च में 16. 4 बैरल रोजाना तेल का आयात किया फरवरी में आंकड़ा 16 लाख बैरल रोजाना का था. जनवरी में यह आंकड़ा 14 लाख बैरल और दिसंबर में 10 लाख बैरल रहा था. ल विपणन कंपनी के एक अधिकारी के अनुसार भारत और रूस के बीच डॉलर की बताय रुपये में कारोबार अब शुरू हो गया है. इससे दोनों देशों के बीच होने वाले कच्चे तेल के आयात-निर्यात के वॉल्यूम में बढ़ोतरी हो सकती है. ऐसे में उत्पादन में कटौती के बावजूद देश में कच्चे तेल की आपूर्ति पहले की तरह बनी रह सकती है.

लंबी अवधि में कीमतों पर दिख सकता है दबाव

हालांकि कुछ जानकारों का मानना है कि ओपेक प्लस देशों की ओर कच्चे तेल के उत्पादन में कटौती के फैसले से मध्यम से दीर्घ अवधि में ग्लोबल मार्केट में कीमतों पर दबाव बढ़ेगा. इसका असर भारतीय बाजार पर भी पड़ेगा जिससे आने समय में देश में पेट्रोल और डीजल की कीमतें उछल सकती हैं. यहां देखना दिलचस्प होगा कि सरकार इस चुनौती से कैसे निपटती है.

ओपेक क्या है?

ओपेक तेल उत्पादक और निर्यात देशों का संगठन है. इसके कुल 14 सदस्य देशों में ईरान, इराक, कुवैत, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, अल्जीरिया, लीबिया, नाइजीरिया, गैबॉन, इक्वेटोरियल गिनी, कांगो गणराज्य, अंगोला, इक्वाडोर और वेनेजुएला शामिल हैं. इसका मुख्यालय ऑस्ट्रिया के विएना में है.  

क्या है ओपेक प्लस?

यह ओपेक सदस्य देशों और विश्व के 10 प्रमुख गैर-ओपेक तेल निर्यातक देशों का गठबंधन है. इसमें ओपेक सदस्य देशों के अलावे अज़रबैजान, बहरीन, ब्रुनेई, कज़ाखस्तान, मलेशिया, मैक्सिको, ओमान, रूस, दक्षिण सूडान और सूडान जैसे देश शामिल हैं.


Web Title : OPEC PLUS COUNTRIES DECIDE TO CUT CRUDE OIL PRODUCTION, KNOW WHAT WILL BE THE IMPACT ON INDIA?

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