बालाघाट. वैश्विक महामारी कोविड-19 का कहर बालाघाट जिले में भी बढ़ रहा है. जिले में पॉजिटिव मरीजों की संख्या 1400 तक पहुंच चुकी है. पॉजिटिव मरीजों के इलाज की बात करें तो सरकारी सुविधाओं और व्यवस्थाओं पर सवाल उठने लगे हैं. वैसे तो सीएमएचओ डॉ. मनोज पांडेय इलाज के समुचित सुविधाओं के दावे करते नजर आते हैं किंतु हकीकत इससे अलग है.
कोविड-19 के मरीजों को समय पर इलाज मिले ये वक्त की जरूरत है जिसके लिए समय पर रिपोर्ट मिलना अति आवश्यक है. कोरोना प्रोटोकाल के मुताबिक यदि किसी व्यक्ति को सर्दी, खांसी, बुखार हो और सांस लेने में तकलीफ हो रही हो तो इसे कोरोना के प्रारंभिक लक्षण माना जाता है. स्वास्थ्य विभाग इसके लिए कई तरह के संचार माध्यमों का उपयोग कर जन-जन तक अपनी बात पहुंचा रहा है. सबसे बड़ी परेशानी जो सामने आ रही है, वह है लिये गये सेंपल की रिपोर्ट में देरी. जिसकी वजह से मरीज के ईलाज में समस्या हो रही है, और जब मामला क्रिटिकल हो जाता है. सरकारी अस्पताल हों या निजी अस्पताल के डॉक्टर कोरोना संक्रमण का इलाज करने से इंकार कर देते हैं जिसका खामियाजा मरीज और उसके परिजनों को भुगतना पड़ता है. बात सही भी है कि ‘जब तक पता नहीं होगा मर्जे, तो डॉ इलाज करे किस दर्जे’
जिले के वरिष्ठ डॉक्टर तथा हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. सी. एस. चतुरमोहता ने इस विषय पर चिंता जताते हुए बताया कि कोविड-19 के मरीजों का इलाज संभव है बशर्ते कि इसकी पहचान समय पर हो सके. अभी हाल ही में निजी चिकित्सकों और प्रशासन की एक बैठक पूर्व मंत्री गौरीशंकर बिसेन की अध्यक्षता में हुई थी. वहां भी इस विषय पर विस्तृत चर्चा हुई थी. जिले में एक भी ऐसी लैब नहीं है जहां बड़े स्तर पर टेस्टिंग हो सके. ये भी देखा गया है कि कई बार अपना टेस्ट कराने आये संदिग्ध मरीज जिला अस्पताल में लंबी लाइन देखकर वापस हो जाते हैं. हमने प्रशासन से रजिस्टर्ड निजी पैथोलॉजी को कोरोना का टेस्ट करने की अनुमति देने का सुझाव दिया था जिसे नियमों का हवाला देते हुए नकार दिया गया. श्री चतुरमोहता ने आगे बताया कि कोरोना टेस्ट की छिदवाड़ा में जो आरटीपीसीआर लैब है वहां से रिपोर्ट आने में दो से तीन दिन लग जाते हैं ऐसे में अन्य बीमारी से ग्रसित मरीजों के इलाज में देरी हो जाती है जो खतरनाक साबित हो सकती है. डॉ चतुरमोहता वैसे तो यहां मरीजों के इलाज की सुविधाओं की सराहना करते हैं किंतु रिपोर्ट आने में हो रही देरी को आड़े हाथ भी ले रहे हैं.
नया मामला जिले के एक वरिष्ठ पत्रकार उमेश बागरेचा के मामले में कुछ ऐसा ही हुआ है जिसके चलते उन्हें गंभीर हालत में विदिशा के मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया है. श्री बागरेचा को कुछ दिन पहले सांस लेने में तकलीफ होने पर उन्होंने 01 अक्टूम्बर को जिला अस्पताल जाकर कोरोना संबंधी सेंपल दिया था. जिसकी रिपोर्ट छह दिन बाद आई, इसके पहले ही उनकी तबियत और बिगड़ गई. डॉ. चतुरमोहता और अपने एक रिश्तेदार जो डॉक्टर हैं से सलाह ली तो, उन्होंने बगैर कोरोना रिपोर्ट के इसका इलाज नहीं करने की सलाह दी. रिपोर्ट में हो रही देरी को लेकर जब उन्होंने जिला अस्पताल के एक डॉक्टर से बात की तो उन्होंने बजाय समस्या का समाधान निकालने के छिदवाड़ा लैब से रिलेटेड डॉक्टर का मोबाईल नंबर देते हुए उनसे बात करने कह दिया. जब उनसे बात की तो संबंधित डॉक्टर ने रिपोर्ट की जानकारी देने से साफ इंकार कर दिया. श्री बागरेचा जो हृदय रोगी हैं और 65 साल की उम्र पार कर चुके हैं ऐसे में उनके कोरोना पॉजिटिव होने की संभावना बढ़ जाती है. जिसकी संपूर्ण जानकारी सीएमएचओ डॉ. पांडेय को फोन पर दी गई थी, इसके बावजूद डॉ. पांडेय ने लापरवाही बरतते हुए कोई कारगर सलाह नहीं दी. आखिरकार श्री बागरेचा के डॉक्टर रिश्तेदार की सलाह पर आनन-फानन में उन्हें विदिशा के अटल बिहारी बाजपेयी शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय में भर्ती कराया गया.
इस पूरे मसले पर जब सीएमएचओ डॉ. मनोज पांडेय से बात की गई तो उन्होंने कोरोना मरीजों के लिए बनाए गए कोविड सेंटर और अन्य व्यवस्थाओं का बखान करते हुए अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ते हुए मरीज द्वारा उनसे संपर्क नहीं करने की बात कही. ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि जब जिले के वरिष्ठ पत्रकार को ऐसी परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा है तो आम आदमी का तो ईश्वर ही मालिक है ?