धान फसल में लगी पोंगा (गंगई कीट) एवं करपा(ब्लास्ट) बीमारी, फसलों मंे बीमारी को लेकर कलेक्टर ने ली बैठक, किसानों को मार्गदर्शन देने के निर्देश

बालाघाट. बालाघाट जिला मध्यप्रदेश राज्य का सर्वाधिक धान उत्पादक जिला है. इस वर्ष जिले में धान फसल के अनुकूल वर्षा हो रही है. लेकिन धान की फसल में पोंगा (गंगई कीट) एवं करपा (ब्लास्ट) की बीमारी का प्रभाव दिखाई दे रहा है. इसी सिलसिले में आज 26 अगस्त को कलेक्टर दीपक आर्य ने कृषि विभाग के अधिकारियों एवं कृषि महाविद्यालय मुरझड़ एवं कृषि विज्ञान केन्द्र बड़गांव के वैज्ञानिकों की बैठक लेकर धान फसल में पोंगा एवं ब्लास्ट के नियंत्रण के संबंध में चर्चा की. बैठक में कृषि महाविद्यालय मुरझड़ के अधिष्ठाता डॉ. जी. के. कौतू, उप संचालक कृषि सी. आर. गौर, कृषि विज्ञान केन्द्र बड़गांव के प्रमुख डॉ. आर. एल. राउत, डॉ. उत्तम बिसेन, डॉ. राजू पांसे एवं डॉ. दिनेश पंचेश्वर उपस्थित थे.

कलेक्टर श्री आर्य ने बैठक में कृषि वैज्ञानिकों एवं कृषि विभाग के अधिकारियों को निर्देशित किया कि वे जिले के ग्रामों का सतत भ्रमण कर किसानों से संपर्क करें और उन्हें धान फसल में आयी कीट व्याधियों से बचाव के लिए सलाह एवं मार्गदर्शन दें. धान फसल की कीट व्याधियों से बचाव में उपयोग होने वाली देशी, जैविक व कीटनाशक औषधियों एवं सावधानियों का व्यापक प्रचार-प्रसार किया जाये. जिससे किसान समय रहते दी गई सलाह पर अमल कर सकें और धान फसल को पोंगा व ब्लास्ट जैसी बीमारियों से बचा सकें.

बैठक में उप संचालक कृषि सी. आर. गौर ने बताया कि बालाघाट जिले के लगभग 20 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में गंगई कीट (पोंगा)का प्रकोप देखा गया है. बैहर, बिरसा एवं परसवाड़ा क्षेत्र में धान फसल में ब्लास्ट करपा रोग का प्रकोप देखा जा रहा है.

बैठक में वैज्ञानिक डॉ उत्तम बिसेन ने बताया कि इस वर्ष वर्षा जल्दी होने और फिर लंबे समय तक बारिश नहीं होने से वातावरण में अत्यधिक आर्दता का बनना और फिर लंबे समय तक लगातार बारिश होने से धान में लगने वाले गंगई कीट (पोंगा) के लिए अनुकूल परिस्थितियों का निर्माण हुआ है. इस कारण से इस वर्ष धान फसल में पोंगा का प्रकोप दिखाई दे रहा है. किसानों को सलाह दी जा रही है कि फसल के प्रभावित रकबे को ध्यान में रखते हुए दवाओं का उपयोग करें. सामान्यतरू गंगई कीट पुराने तने को प्रभावित नहीं करता है, वह नये निकल रहे कंसे को प्रभावित करता है. जिन किसानों का परहा 40 से 45 दिनों का हो गया है और पर्याप्त कंसे आ गये हैं तो वे क्लोरोपायरीफास 50 प्रतिशत नामक दवा का 350 से 400 मिली प्रति एकड़ की दर से छिड़काव कर कीट का नियंत्रण कर सकते है.   जिन किसानों का परहा 30 दिनों से कम का है उन्हें गंगई कीट के नियंत्रण के लिए तुरंत प्रयास करना होगा.

डॉ. बिसेन ने बताया कि गंगई कीट (पोंगा) के नियंत्रण के लिए किसानों को सलाह दी गई है कि वे खेत का पानी तत्काल निकालें और कार्बोफुरान 3-जी दवा का 10 किलो या क्लोरोपायरीफास 50 प्रतिशत दवा का एक लीटर 20 से 25 किलो रेत में मिलाकर खेत में डालें. खेत की मेढ़ों को बांध कर रखें. इस दवा का उपयोग तनाछेदक कीट के लिए भी किया जा सकता है. इसी प्रकार करपा या ब्लास्ट रोग में धान की पत्तियों पर कत्थई रंग छींटे दिखाई देते है. इसका समय पर नियंत्रण नहीं करने पर गलघोंटू रोग में परिवर्तित हो जाता है. किसान इसके नियंत्रण के लिए जैविक दवा स्योडोमोनास फलोरोसेंस एक लीटर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें या रासायनिक दवा में टेबुकोनोजोल 50 प्रतिशत के साथ ट्राईफलोपसी स्ट्रोबीन मिक्स दवा का 100 ग्राम या कीटाजीन 250 मिली या ट्राईसायक्लाजोल 120 ग्राम या प्रोफिकोनोजोल 250 मिली, इनमें से किसी एक का उपयोग प्रति एकड़ कर सकते है. धान फसल में गभोट अवस्था में भूरा माहो कीट आता है. इसके लिए किसानों को अपने खेतों की सतत निगरानी करने की सलाह दी गई है और अपने क्षेत्र के कृषि विभाग के अधिकारियों, कृषि विज्ञान केन्द्र या कृषि महाविद्यालय मुरझड़ के वैज्ञानिक से सम्पर्क कर सकते है.


Web Title : COLLECTORS MEETING ON PADDY CROP, PONGA (GANGAI INSECT) AND KARPA (BLAST) DISEASE, CROP DISEASE, DIRECTS FARMERS TO GUIDE THEM