जियोस की बैठक व्यवस्था पर निगम अध्यक्ष ने जताई नाराजगी,मान-मनोव्वल केे बाद सांसद की कुर्सी सरकाकर बैठे,सम्मान नहीं दे सकते तो दे देता हूॅं स्तीफा-प्रदीप जायसवाल

बालाघाट. महिनोें बाद जिले के प्रभारी मंत्री हरदीपसिंह डंग, 23 मई को एक दिवसीय प्रवास पर बालाघाट पहुंचे और यहां उन्होंने कलेक्ट्रेट मंे जिला योजना समिति की बैठक ली. इस दौरान प्रोटोकॉल के तहत बैठक व्यवस्था में नाम के अनुसार स्थान नहीं मिलने से खनिज निगम अध्यक्ष प्रदीप जायसवाल ने भारी नाराजगी जाहिर की.  

जिला योजना समिति की बैठक में खनिज निगम अध्यक्ष की नाराजगी को देखकर आयोग अध्यक्ष गौरीशंकर बिसेन और आयुष मंत्री रामकिशोर कावरे ने उन्हें मनाया और मान-मनौव्वल के बाद सांसद की कुर्सी को खिसकाकर, आयुष मंत्री के बगल मंे निगम अध्यक्ष की कुर्सी लगाई गई. जबकि इससे पूर्व आयुष मंत्री के बगल वाली कुर्सी पर सांसद डॉ. ढालसिंह बिसेन मौजूद थे.

प्रोटोकॉल को लेकर खनिज निगम अध्यक्ष प्रदीप जायसवाल के नाराजगी जाहिर करने पर प्रशासन के माथे पर पसीना छलकने लगा. हालांकि प्रभारी मंत्री ने स्थिति को संभालते हुए यह आश्वस्त किया कि दोबारा ऐसा नहीं होगा.

कलेक्टेªट में आयोजित जिला योजना समिति की बैठक में प्रोटोकॉल में उनका नाम नहीं होने के चलते अध्यक्ष जायसवाल नाराज होकर पीछे की सीट पर जाकर बैठ गये और जिला प्रशासन के विरुद्ध नाराजगी जाहिर की और प्रोटोकॉल दिखाने की बात कही है. जिसके बाद आयुष मंत्री रामकिशोर कांवरे, पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग अध्यक्ष गौरी शंकर बिसेन सहित अन्य ने उन्हें मनाया और आगे की कुर्सी में बैठाया है. इस पर प्रभारी मंत्री ने भी इस गलती में सुधार करने की बात कही है. बता दें की यहां जिला प्रशासन की गलती का खामियाजा न सिर्फ खनिज निगम अध्यक्ष को भुगतना पड़ा है बल्कि प्रभारी मंत्री सहित अन्य को भी गलती को स्वीकार करना पड़ा.

तो क्या निगम अध्यक्ष की हो रही अनदेखी, संगठन का दबाव तो नहीं

23 मई को कलेक्ट्रेट कार्यालय मेें जिला योजना समिति की बैठक में जो कुछ नजारा देखने को मिला. वह क्या अनायास था? या फिर इसकी भूमिका तैयार हो गई थी और बिलकुल भूमिका की तरह ही ऐसा किया गया है? अन्यथा जानकारों का कहना है कि प्रशासन, इतनी हिमाकत नहीं कर सकता.

भले ही विधानसभा चुनाव को अभी लंबा समय है, लेकिन भाजपा सरकार और संगठन पंचायत एवं निकाय चुनाव के माध्यम से आगामी वर्ष में होने वाले विधानसभा चुनाव में जुट गया है. चूंकि भाजपा सरकार में संगठन ही सत्ता की चॉबी है, इसलिए सरकार स्तर पर भले ही कितने ही समझौते करने पड़े हो लेकिन संगठन स्तर पर समझौता, परिस्थितिवश ही होता है.

बालाघाट कलेक्ट्रेट कार्यालय में जिला योजना समिति में खनिज निगम अध्यक्ष केबिनेट मंत्री दर्जा प्राप्त प्रदीप जायसवाल, प्रशासन के किसी अधिकारी के लिए अपरिचित चेहरे नहीं है, फिर प्रशासन से इतनी गंभीर त्रुटि कैसे हो गई हैै, या फिर यह एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है. चूंकि कांग्रेस सरकार केे जाने के बाद भाजपा प्रत्याशी को हराकर निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में विधानसभा पहुंचे प्रदीप जायसवाल, ने जिस तरह सेे भाजपा सरकार को समर्थन देने में जल्दबाजी दिखाई और भाजपा ने भी उन्हें सहयोग का प्रतिफल दिया. उससे आज वह केबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त निगम अध्यक्ष के पद पर बने हैं. जिसके बाद से सरकार को समर्थन देने वाले प्रदीप जायसवाल से उन्हें जिताने वाले कांग्रेसी खफा हो, लेकिन उन्हें आस थी कि भाजपा संगठन उनके साथ नजर आयेगा, लेकिन वह दिन है और आज का दिन है, भाजपा संगठन ने कभी भी वारासिवनी में प्रदीप जायसवाल को स्वीकार नहीं किया. यही कारण है कि भले ही शासन केे जनकल्याणकारी कार्यक्रमों की बात हो या फिर सरकार से जुड़े कार्यक्रम हो, वारासिवनी में भाजपा संगठन और प्रदीप जायसवाल दोनो ही नजर आये है.  

भले ही निगम अध्यक्ष और विधायक प्रदीप जायसवाल, क्षेत्र के विकास कोे लेकर सरकार को समर्थन का दावा करते हो, लेकिन उनके राजसी सुख की पाने की लालसा भी दिखाई देती है. जिसके लिए उन्होंने अपनो की बलि दे दी. आज केवल सरकार के समर्थन के कारण वह क्षेत्र में सक्रिय है अन्यथा संगठन के नाम पर उनके पास कोई नहीं है. वहीं आगामी विधानसभा में भी उन्हें कांग्रेस और भाजपा से कड़ी चुनौती मिल सकती है. जिससे राजनीति में आगामी समय में उनकी राहे, आसान नहीं है, वे भी यह अच्छे से जानते है, इसलिए वह गीदड़ भभकी देते रहते है.  

उनका कलेक्ट्रेट में आयोजित बैठक में प्रोटोकॉल के तहत सम्मान नहीं दिये जानेे पर स्तीफा दिये जानेे की बात कहना और दूसरी तरफ मुख्यमंत्री से कोई दिक्कत नहीं होना, शब्दोें में विरोधाभाष को पैदा करता है, जानकार कहतेे है कि वह स्तीफा नहीं दे सकते है, हालांकि ऐसी धमकी देना, उनकी हिम्मत नहीं बल्कि उनका मजबूरी है, ताकि वह यह जता सके कि वह वारासिवनी-खैरलांजी विधानसभा की जनता से जुड़े है, जिनके लिए सरकार के साथ रहना या नहीं रहना फर्क नहीं है, लेकिन वह यह भी अच्छे से जानतेे है कि वर्ष 2008 में सहानुभूति की लहर, अब उनके साथ नहीं रहने वाली है और विकास के नाम पर वोट से ज्यादा संगठन की ताकत से चुनाव जीतेे जाते है, जिसको लेकर उनका हाथ अभी तंग है.  

हालांकि कलेक्ट्रेट में उनकी नाराजगी की घटना के बाद बैठक में बेवजह स्थिति न बिगड़े, इसे देखतेे हुए तत्काल उन्हें मना भी लिया गया और वह मान भी गये. हालांकि बैठक के बाद विधायक प्रदीप जायसवाल ने बैठक की अंदर के हालत को लेकर सीधे जिला प्रशासन पर ठीकरा फोड़ दिया और कहने लगे कि यह प्रशासन का दायित्व है कि वह प्रोटोकॉल के तहत बैठक व्यवस्था को बनाये. साथ ही यह जरूर कहा कि वह वारासिवनी-विधानसभा जनता के निर्दलीय विधायक है और उनका अपमान बर्दाश्त नहीं कर सकते. एक सवाल के जवाब मंे उन्होने कहा कि मुख्यमंत्री से कोई नाराजगी नहीं हैं. विकास के लिए मैने समर्थन किया है. विकास के लिए मुझे उनका समर्थन मिल रहा है, मैं उनके समर्थन से क्षेत्र चला रहा है, वह मेरे समर्थन से सरकार चला रहे. हालांकि एक सवाल के जवाब में उन्होेंने भाजपा संगठन को लेकर तो कुछ नहीं कहा लेकिन कांग्रेस संगठन को लेकर जरूर यह बात कही कि मैं कांग्रेस में नहीं हुॅं, लेकिन मैं कहां जा रहा क्या कर रहा है, इसको लेकर कांग्रेस के पेट नहीं दुखना चाहिये. उन्होनेे कहा कि उन्हें विरोध से फर्क नहीं पड़ता, बस मेरी विधानसभा में काम हो रहा है और 2023 का जो दायित्व क्षेत्र के विकास के लिए मिला है, उसे पूरा करवा लु और मेरा केवल विकास को लेकर मुख्यमंत्री को सहयोग है.


Web Title : CORPORATION CHAIRMAN EXPRESSES DISPLEASURE OVER GEOSS MEETING ARRANGEMENT, AFTER MAN MANOWAL, SITTING IN MPS CHAIR, IF YOU CANT PAY RESPECT, THEN I GIVE IT TO STIFA PRADEEP JAISWAL